रांची : छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 (सीएनटी एक्ट) के तहत आनेवाली जमीन की रजिस्ट्री के लिए उपायुक्त की अनुमति आवश्यक होती है. सीएनटी एक्ट के तहत आनेवाली जमीन मुख्य रूप से अनुसूचित जनजातियों की होती है. इस भूमि को गैर-आदिवासियों को बेचना प्रतिबंधित है. यदि कोई आदिवासी अपनी जमीन बेचना चाहता है, तो उसे उपायुक्त की अनुमति लेनी होगी. यह जानकारी अधिवक्ता अभय कुमार मिश्रा ने प्रभात खबर लीगल काउंसेलिंग में खूंटी निवासी राहुल की ओर से पूछे गये सवाल के जवाब में दी. उन्होंने कहा कि यदि बिना डीसी की अनुमति के कोई रजिस्ट्री होती है, तो उसे अवैध माना जायेगा.
पैतृक संपत्ति के विवाद के निबटारे के लिए आपके क्या-क्या हैं विकल्प
झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभय मिश्र ने कहा कि पैतृक संपत्ति के विवाद के निबटारे के लिए टाइटल सूट किया जा सकता है. लेकिन, टाइटल सूट के निष्पादन में काफी समय लगता है. इसमें काफी रुपये भी खर्च होते हैं. ऐसे में अगर पैतृक संपत्ति का विवाद है, तो पहले आपसी समझौते से सुलझायें. इससे बात नहीं बने, तो आप टाइटल सूट में जाने का विकल्प अपना सकते हैं. श्री मिश्र शनिवार को प्रभात खबर लीगल काउंसेलिंग में पाकुड़ निवासी विनोद चौधरी के सवाल का जवाब दे रहे थे. विनोद चौधरी का सवाल था कि नकी पैतृक संपत्ति है. उनकी मां व बहन जमीन बेच रही हैं. इसमें उनके हिस्से की भी जमीन है. ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए?
बूटी मोड़ रांची के आलोक कुमार का सवाल : मैंने जमीन के म्यूटेशन के लिए आवेदन दिया है. ऑनलाइन इंट्री में गलत रिकॉर्ड दर्ज होने के कारण म्यूटेशन नहीं हो रहा है. क्या इस मामले का लोक अदालत में निबटारा हो सकता है.
अधिवक्ता का जवाब : रिकॉर्ड में सुधार करने के लिए अंचलाधिकारी के पास जमीन के संबंधित दस्तावेज खतियान के साथ आवेदन करें. अगर इसके बावजूद सुधार नहीं किया जाता है, तो हाइकोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं. इस प्रकार के मामले का निबटारा लोक अदालत में नहीं होता है.
रांची निवासी अंजनी कुमार के सवाल : हाईकोर्ट ने मेरे मामले में स्वास्थ्य सचिव को मेरी उपस्थित में विधिसम्मत आदेश पारित करने का निर्देश दिया था. लेकिन, सचिव ने मुझे सूचित किये बिना आदेश पारित कर दिया है. क्या मैं सचिव के खिलाफ अवमानना का मामला दायर कर सकता हूं?
अधिवक्ता का जवाब : इस मामले में आप अवमानना याचिका नहीं दायर कर सकते हैं. क्योंकि, सचिव ने तर्कपूर्ण आदेश पारित कर दिया है. आपको सचिव के आदेश को चुनौती देते हुए फिर से याचिका दायर करनी होगी.
हजारीबाग निवासी नरेश मिश्रा का सवाल : मैंने अपनी जमीन मापी के लिए अंचलाधिकारी के पास आवेदन दिया. दो बार राशि भी जमा करायी. गयी इसके बावजूद जमीन की मापी नहीं करायी जा रही है. इसको लेकर मैंने उच्चाधिकारियों के पास आवेदन दिया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है?
अधिवक्ता का जवाब : अंचलाधिकारी समेत अन्य अधिकारियों को दिये गये आवेदन को आधार बना कर आप हाइकोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं.
गढ़वा निवासी वाल्मीकि चौबे का सवाल : मेरे मामले में दर्ज केस में पिछले 10 साल से आइओ नहीं आ रहे हैं. इसकी वजह से मामला लटका हुआ है. मुझे क्या करना चाहिए?
अधिवक्ता का जवाब : इसके लिए आप ट्रायल कोर्ट में आवेदन दें. कोर्ट संबंधित आइओ के वेतन को रोकने व उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई का आदेश दे सकता है. अगर इसके बावजूद आपकी समस्या का समाधान नहीं होता है, तो हाइकोर्ट में याचिका दायर करें.
हजारीबाग निवासी सुरेश तामी का सवाल : मुझसे एक व्यक्ति ने खाता में एक लाख रुपये लोन लिया, अब वह उसे वापस नहीं कर रहा है. मुझे क्या करना चाहिए?
अधिवक्ता का जवाब : अपनी राशि को पाने के लिए अप सिविल कोर्ट में सूट फाइल कर सकते हैं. साक्ष्य को देखते हुए कोर्ट संबंधित व्यक्ति को राशि वापस करने का निर्देश दे सकता है.
हजारीबाग निवासी प्रीति कुमारी का सवाल : स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने मेरे भाई के खिलाफ मारपीट का झूठा केस दायर कर दिया. इससे परेशान होकर मेरे भाई ने सुसाइड कर लिया. सुसाइड नोट में भी सारी बातों का उल्लेख किया है. थाना में केस दर्ज करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही है?
अधिवक्ता का जवाब : सारी बातों का उल्लेख करते हुए इस मामले में आप झारखंड हाइकोर्ट में याचिका दायर कर सकती हैं.
इन्होंने भी पूछे सवाल
गुमला निवासी उपेंद्र प्रसाद महतो, कोडरमा निवासी बिजू राम, रांची निवासी मनोज कुमार, धुर्वा निवासी भवेश कुमार साहू, कर्रा निवासी रमेश कुमार, रामबाबू चौरसिया, रांची निवासी बबलू केरकेट्टा, कोकर निवासी आकाश, डाल्टनगंज निवासी अनुराग मिश्रा, मो शामी अंसारी व विभाष चंद्र ठाकुर ने भी सवाल पूछे.