Basant Panchami, जुही स्मिता,पटना: शहर में कई ऐसे सरस्वती के साधक हैं जो सालों से अपनी साधना के बल पर अपनी कला को जिंदा रखे हुए हैं. किसी ने 9 साल की उम्र से संगीत और नृत्य सीखना शुरू किया, तो कोई क्लासिकल सिंगिग में पढ़ाई से लेकर जॉब के दौरान कभी रियाज करना नहीं छोड़ा, तो किन्हीं को लेखन के क्षेत्र में लंबा अनुभव और विशेष रूचि है. इन्होंने अलग-अलग विधाओं में न सिर्फ महारथ हासिल की, बल्कि आगे और भी बेहतरी के लिए अपने-अपने क्षेत्रों में साधनारत हैं. उनका मानना है कि साधना आपको ईश्वर और अंतर्मन को एक साथ जोड़ने का काम करते हैं. आज यह सभी अपने इस कला को दूसरे तक पहुंचाने के साथ उन्हें इससे जोड़ने का कार्य कर रहे हैं. हर कोई इनकी प्रतिभा का कायल है. विद्या की देवी सरस्वती की आराधना पर्व पर प्रस्तुत है ऐसे ही कुछ सरस्वती के साधकों की कहानी.
रमा दास : 50 सालों से संगीत और नृत्य की कर रही साधना
कंकड़बाग की रहने वाली रमा दास बताती हैं कि पिछले 50 सालों से संगीत और नृत्य की साधना करती आ रही हैं. पारिवारिक पृष्ठभूमि हमेशा से संगीत और साहित्य की रही है. पिता का संगीत से जुड़ा था और उस वक्त बड़े दिग्गज कलाकारों का हमारे घर आना हुआ करता था. यही वजह रही कि मेरी नृत्य के प्रति रुचि जगी और 9 साल की उम्र से इसे सीखना शुरू किया. मुझे जो गुरु मिले वह रोजाना रात के 8-11 बजे तक संगीत और नृत्य की तालिम देते थे. यह सिलसिला 13 सालों तक लगातार चला. जिस उम्र के बच्चे पर्व-त्योहार पर मस्ती करते थे मैं उस वक्त प्रैक्टिस किया करती थी. वहीं से मेरी साधना का सफर शुरू हुआ. गुरुजनों के आशीर्वाद से मैंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी प्रस्तुति दी. कला के लिए आपको अपनी चाहतों से दूरी बना कर कला को साधना पड़ता है जिसका नतीजा है कि मैं इतने सालों से इसमें रमी हुई हूं और हर दिन कुछ नया सीख रही हूं. इस कला को आगे बढ़ाने के लिए बच्चों को इसकी शिक्षा भी दे रही हूं.
नीरा चौधरी : राष्ट्रीय स्तर तक के मंच तक दी प्रस्तुति
पटना वीवी के कैंपस में रहने वाले प्रो (डॉ) नीरा चौधरी पिछले 40 सालों से क्लासिकल सिंगिंग में है. मगध महिला कॉलेज के संगीत विभाग में संगीत सिखाती हैं. वह बताती हैं कि यह उनकी साधना है जिसे वह लगातार करती आ रही हैं. वह बताती है स्कूल जाने से पहले सुबह एक घंटे और रात में दो घंटे रियाज करती थी. इंटर के दौरान प्रैक्टिस कम हुआ लेकिन बीएचयू में एडमिशन लेने के बाद इसमें पूरी निरंतरता आ गयी. अगर एक दिन रियाज नहीं करती हूं तो लगता है सात दिन पीछे छूट गयी हूं. पढ़ाई से लेकर जॉब के दौरान कभी रियाज करना नहीं छोड़ा. पीएचडी करने के बाद मेरे गुरु ने कहा था कि आज से आप संगीत जगत से जुड़ गयी है. राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर के मंच पर अपनी प्रस्तुति कर चुकी हूं और हर बार कुछ नया करने की ललक हमेशा बनी रहती है. कॉलेज में छात्र-छात्राओं को संगीत सिखाने के साथ खुद भी पुणे जाकर सीखती हूं.
डॉ अनामिका सिंह : 20 सालों में तबला वादन में दे चुकी है कई प्रस्तुतियां
मखनियां कुआं की रहने वाली डॉ अनामिका सिंह अभी महाराणा प्रताप विवि मोहनिया में संगीत विभाग की विभागाध्यक्ष है. वह बताती हैं कि पापा से जिद्द कर घर में तबला, हारमोनियम और गिटार मंगवाया था. तबला और गिटार भाई के लिए और हम दो बहनों के लिए हारमोनियम था. दिक्कत थी कि हमें इसे बजाना नहीं आता था. जिसके बाद राजेंद्र नगर स्थित त्रिवेणी शिक्षा केंद्र से इसे सीखना शुरू किया. आगे की पढ़ाई के लिए भाई के जाने के बाद पंडित हीरा लाल मिश्र से गायन और वादन सीखना शुरू किया. फिर बीएचयू से पीएचडी करने चली गयी. वहीं पर प्रो प्रवीण उद्भव के सानिध्य में पीएचडी के साथ तबले की तालिम ली. पिछले 20 सालों में तबला वादन में कई प्रस्तुतियां दे चुकी हूं. महिलाएं अक्सर अपनी जिम्मेदारियों के चलते अपने पसंद की चीजों से दूरी बना लेती है. इस मामले में मैं खुदकिस्मत निकली क्योंकि मेरे ससुरालवालों ने मुझे तबला वादन को लेकर कभी रोका-टोका नहीं. प्रस्तुति देते वक्त कई लोग जब मुझे तबला बजाते देखते तो आश्चर्य करते. कई ने तो मुझसे मिलकर मेरी सराहना की है. इस क्षेत्र में आपको समर्पित होना होता है जिसके लिए आप निरंतर साधना करते है.
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डॉ भावना : 1992 से जुड़ी हैं लेखन कार्य से, कई पुस्तकें हुईं प्रकाशित
बोरिंग रोड की रहने वाली डॉ भावना 1992 से लेखन कार्य से जुड़ी हुई है. हिंदी गजल के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम हैं. उन्होंने अपनी पहली कविता स्नातक दूसरे साल में लिखी और 1994 में कादम्बिनी में पहली कविता प्रकाशित हुई. घर में हमेशा से पठन-पाठन का माहौल मिला. उसी वक्त से लिखना शुरु किया. शादी के बाद मुजफ्फरपुर आ गयी और कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया. रसायन शास्त्र की शिक्षिका हूं और हिंदी में लेखन में रुचि रखती हूं. यह दोनों चीजे एक-दूसरे की बिल्कुल उलट है. कविता के अलावा गजल भी लिखती हूं जिसमें 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी है. लिखने के लिए पढ़ना जरूरी है. यहीं वजह कि मैं हर दिन पढ़ती हूं और कुछ लिखती हूं. इससे आपका विजन क्रिएट होता है और आप कई बातों को शब्दों के जरिये ब्यान करते हैं. साहित्य में आपको लगातार पढ़ना होता है और इसकी गहरायी समय के साथ आती है.
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