Basant Panchmi 2025: प्रकृति करती है श्रृंगार,बुद्धि व ज्ञान की देवी सरस्वती की होती है पूजा-आराधना.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का अवतरण हुआ था. आइए जानें ज्योतिषाचार्य डॉ एन के बेरा से कि बसंत पंचमी के दिन की ग्रह स्थिति क्या है.
बंसत पंचमी वैसे तो बुद्धि और ज्ञान-विद्या,कला की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना,प्रयोग-अनुष्ठान कर देवी सरस्वती से आशीर्वाद प्राप्त करने का उपयुक्त समय है ही साथ ही यही ऋतु है जो जीवन में गीत-संगीत से संजोती है.सभी ऋतुओं में शीर्ष,एक मात्र ऋतुराज जिसके लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अपने स्वरूपों का वर्णन करते हुआ कहा-ऋतुनां कुसुमाकरः यानी मैं सभी ऋतुओं में बसंत हूं.इनका प्रारंभ माघ शुक्ल पक्ष पंचमी से होता है.कोई विद्यादायिनी सरस्वती का पूजन करता है तो कहीं-कहीं लक्ष्मी जी की भी पूजा की जाती है.इस दिन किसान नए अन्न में घी,गुड़ मिलाकर अग्नि तथा पितरों को अर्पण करते हैं.इसी दिन इस बसंत ऋतु की पहली गुलाल उड़ाई जाती है.यह गुलाल श्रीगणेश, श्रीविष्णु,सूर्य तथा शिव की प्रतिमाओं पर भी छिड़की जाती है.लीलाधारी श्रीकृष्ण ने स्वयं को ऋतुओं में बसंत बताया तो इस ऋतु का देवों का देव महादेव से भी संबंध है.भगवान शिव का वसंतोत्सव से विशेष संबंध यह है कि बसंत पंचमी के दिन उनके पांचवे मुख से एक विशेष राग निकला जिसे बसंत राग कहा जाता है.
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बसन्त पंचमी अबूझ मुहूर्त (सदैव ही शुभ मुहूर्त), विवाह,नामकरण,अन्नप्राशन,कर्णवेधः,कन्या नासिकाच्छेदनं,चौलमुण्डन, अक्षरारम्भ, सर्वदेव प्रतिष्ठा,विद्यारारम्भ,गृहरम्भ,गृहप्रवेश,वधूप्रवेश,हलप्रवहण,विपणि (व्यापार) तथा वाहन-मशीनरी एवं कृषि के उपकरण खरीदने के लिए शुभ मुहूर्त है.इस वर्ष 2025 में माघ शुक्ल पक्ष श्रीपंचमी रविवार 2 फरवरी दिवा 11.54 मिनट से प्रारंभ होगी जो अगले दिन 3 फरवरी सोमवार को सुबह 9 बजकर 36 मिनट पर समाप्त होगी.
उदया तिथि के अनुसार बसंत पंचमी 3 फरवरी सोमवार को मनाया जाएगा. जिसमें पंचमी तिथि,रेवती नक्षत्र,सिद्ध योग प्रातः 9.24 तक उपरांत साध्य योग है.सरस्वती पूजन के लिए ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 बजकर 33 मिनट से 6 बजकर 21 मिनट तक, अमृत योग सूर्योदय से सुवह 7.37 तक तथा सुबह 6.53 से 9 बजकर 58 तक,कुंभ लग्न (स्थिर लग्न) सुबह 07 बजकर 19 मि. 10 सेकण्ड से सुबह 08 बजकर 51 मि.07 से. तक तथा मेष लग्न दिवा 10 बजकर 19 मि. 54 सें. से 11 बजकर 57 मि.14 से. तक रहेगा. चौघड़िया मुहूर्त अमृत सुबह 7 बजकर 9 मिनट से 8 बजकर 32 मिनट तक,शुभ-9 बजकर 55 मिनट से 11 बजकर 17 मिनट तक,अभीजित मुहूर्त दिवा 12 बजकर 18 मिनट से 1 बजकर 03 मिनट तक रहेगा.चर और स्थिर लग्न में तथा चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार अमृत,शुभ योग में ज्ञान,शिक्षा,कला और वाणी की देवी मां सरस्वती की विधिवत पूजन करने से मां से विद्या,बुद्धि,विवेक का आर्शीवाद मिलता है.साधक के मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.इस दिन विद्यारंभ संस्कार भी किया जाता है.
ग्रहस्थिति के अनुसार इस वर्ष 2025 को श्रीपंचमी के दिन चन्द्रमा मीन राशि में,सूर्य,बुध मकर राशि में,मंगल मिथुन राशि में,बृहस्पति वृष राशि में,शुक्र,राहु मीन राशि में,शनि कुंभ राशि में,केतु कन्या राशि में है.मकर राशि में सूर्य,बुध की युति से बुधादित्य योग तथा कुभ राशि में शश राजयोग,पंच महापुरूष योग के प्रभाव से सभी राशियों के जातकों को शुभ फल की प्राप्ति होगी,इसमे से विशेष कर मेष,वृषभ,कर्क,कन्या,वृश्चिक,धनु,मकर तथा कुंभ राशिवालों जातकों के लिए इस वंसत पंचमी को मां की विशेष कृपा मिलने की संभावना.कैरियर में उन्नति,आर्थिक लाभ,आय के नये स्रोत बनेंगे,रिश्तों में सुधार होगा,भौतिक सुख-सम्पन्नता की वृद्धि,शैक्षणिक कार्य में सफलता,महत्वपूर्ण कार्य में बाधाएँ दूर होगी.
बसंत पंचमी के दिन विद्यार्थी और शिक्षक आजीवन सरस्वती-पूजन करते हैं.मां सरस्वती विद्या की सर्वमान्य देवी हैं,उस विद्या की जो कामधेनु हैं,जो अखिल कामनाओं की पूर्ति करनेवाली है,जो अमृतत्व प्राप्त कराती है (विद्या अमृतं अश्नुते) तथा जो मुक्ति प्रदान करती है(सा विद्या या विमुक्तये).वे साहित्य और संगीत का अधिष्ठात्री देवी है.साहित्य,जो हमारे मुरझाये हृदय को हराभरा कर देता है,जो हमारा अनुरंजन-मनोरंजन ही नहीं करता वरन् हमारी चित्तवृत्तियों का परिष्कार कराता है.संगीत जो टूटे हुए हृदय की महौषध है,जो देवदूतों की भाषा है,जो आत्मा के ताप को शान्त करता है तथा जिसका अनुगमन स्वयं परमात्मा करता है.जिस साहित्य और संगीत के बिना मानव पशुतुल्य है उसी वरद साहित्य और संगीत की वरदायिनी वागीश्वरी का नाम है-सरस्वती.अतः जो जितना बड़ा कवि,साहित्यकार,पंडित,ज्ञानी एवं वक्ता है उसपर माता सरस्वती की अनुकम्पा का उतना ही मेह बरसा है.
परमेश्वर की तीन महान् शक्तियाँ है—महाकाली,महालक्ष्मी तथा सरस्वती .शक्ति के लिए काली,धन के लिए लक्ष्मी तथा विद्या के लिए सरस्वती की समाराधना होती है.सरस्वती का सरलार्थ है गतिमयी.वाग्देवी या सरस्वती आध्यात्मिक दृष्टि से निष्क्रिय ब्रह्म को सक्रियता प्रदान करनेवाली हैं.इन्हें आद्या, गिरा, श्री, ईस्वरी, भारती,ब्राह्मी,भाषा,महाश्वेता,वाक्,वाणी,वागीशा,विधात्री,वागीश्वरी,वीणापाणि,शारदा, पुस्तकधारिणी,जगद्व्यापिणी,हरिहरदयिता,ब्रह्माविचारसारपरमा आदि नामों से पुकारा गया है.इससे ज्ञात होता है कि इनकी महिमा अपरम्पार एवं अकथनीय है.इनका स्वरूप इस प्रकार वर्णित किया गया है——-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमंडितकरा या श्वेतपद्मासना
या
ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिदेंवैः सदा वन्दिता
सामाम्पातुसरस्वतीभगवती निःशेषजाङचापहा .
कुन्द,चन्द्रमा,हिमपंक्ति जैसा जिनका उज्जवल वर्ण है,जो उजले वस्त्रों से आवृत हैं,सुन्दर वीणा से जिनका हाथ अलंकृत है,जो श्वेत कमल पर बैठी है, ब्रह्मा, विष्णु,महेशादि देवगण सर्वदा जिनकी स्तुति करते रहते हैं,जो सभी प्रकार की जड़ताओं का विनाश करनेवाली हैं,वही सरस्वती मेरी रक्षा करें.
इस श्लोकों में भगवती सरस्वती के बड़े ही दिव्य रूप की झाँकी प्रस्तुत की गयी है.प्रायः इसी रूप की मूर्तियाँ बनायी जाती है,चित्र निर्मित होते हैं.सरस्वती कमल के आसन पर ज्ञानमुद्रा में बैठती हैं.कमल सृष्टि का प्रतीक है.इस रूप से यही अभीष्ट है कि आद्याशक्ति सारी सृष्टि में व्याप्त हैं.
यों तो शिक्षार्थी और शिक्षक आजीवन सरस्वतीपूजन करते हैं किन्तु माघ श्रीपंचमी के दिन सांस्कृतिक पर्व के रूप में हर वर्ष सरस्वती समर्थन किया जाता है.छात्रों के बीच गलतफहमी है कि इन दो दिन पुस्तक छुने से विद्यादेवी रूष्ट हो जाती है.जो मां सरस्वती हर क्षण अपने हाथ से पुस्तक अलग नहीं करती,वहीं भला पुस्तकस्पर्श से रूठ जायेंगी सम्भव नहीं.मेरे अनुसार मां को खुश करने के लिए ऐसे समय में तो डटकर पढ़ना चाहिए.यदि इनकी कृपा हुई तो हम कालिदास की तरह विश्ववंद्य हो सकते हैं.यदि ये मति दें तो हम कैकेयी की भाँति अजस पिटारी बन जायँ.गोस्वामी तुलसीदास के अक्षय कीर्तिभाजन होने तथा उनके रामचरित मानस की सफलता का यही रहस्य है कि उन्होंने वाणीवंदना से ही अपने महाकाव्य का शुभारंभ किया,वाग्देवी के प्ररम्भिक अमृताक्षार व से ही अपने रामचरित के मणि-माणिक्य को सम्पूटित किया.
अतः मां सरस्वती के कृपाप्राप्ति के लिए इस शुभ अवसर पर इनका विधिवत पूजन करें तथा इनके वद वद वाग्वादिनि वह्निवल्लभा दशाक्षर मंत्र का जप करना चाहिए जिससे मेघा,प्रज्ञा,धी,धृति,स्मृति एवं बुद्धि का विकास हो.इनकी कृपा से ही कवित्वशक्ति आयेगी,वाणी स्फूरित होगी,राज्यफल मिलेगा एवं संसारसागर से सन्तरण होगा.
महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ने अपने समग्र राष्ट में अभिनव अमृतमंत्र भर देने के लिए मां से प्रर्थना की है.अतः हम भी महाकवि के साथ स्वर में स्वर मिलाकर मां सरस्वती की अभ्यर्थना करें-
वर दे,वीणावादिनी, वर दे .
प्रिय स्वतन्त्र रव,अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे .