Budget 2025 : जब आर्थिक विकास दर में आयी कमी से चिंता उपजे, उपभोग की मांग कम हो जाये और अर्थव्यवस्था पर्याप्त रोजगार सृजन न कर पाये, तब केंद्रीय बजट पेश करना बहुत आसान नहीं होता. इन दृष्टि से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में सही कदम उठाये. आर्थिक विकास दर को गति देने के व्यापक मुद्दे, समावेशी विकास, निजी निवेश और मध्यवर्ग की क्रयशक्ति में वृद्धि करने के उपाय बजट में दिखे.
कृषि, ग्रामीण समृद्धि, एमएसएमइ, निवेश और निर्यात की दिशा में कदम उठाने की बात उनके बजट संबोधन में थी. अलबत्ता इन तमाम उपायों पर सालाना 12 लाख रुपये कमाने वाले लोगों के लिए शून्य आयकर की बजटीय घोषणा दूसरी तमाम घोषणाओं पर भारी पड़ी.अगर 75,000 रुपये की मानक कटौती को भी जोड़ लें, तो 12.75 लाख रुपये पर कोई आयकर नहीं देना पड़ेगा. हालांकि इस आयकर छूट के साथ एक शर्त भी है. जो आयकरदाता नये टैक्स रिजीम के तहत आयकर अदा करते हैं, सिर्फ वही इस आयकर छूट के हकदार होंगे.
वर्ष 2023 के बजट में वित्त मंत्री ने नये टैक्स रिजीम की शुरुआत की थी. यह आयकर छूट उसी नये टैक्स रिजीम में है. आयकरदाताओं को लाभ देने के लिए स्लैब में भी बदलाव किये गये हैं. इन दोनों लाभों को मिला देने पर 12.75 लाख की सालाना आय वाले लोगों को 80,000 रुपये का फायदा (टैक्स स्लैब में बदलाव से 20,000 रुपये और आयकर छूट बढ़ाने से 60,000 रुपये) मिलेगा. अगर किसी का वेतन 12.75 लाख सालाना से एक रुपया भी अधिक होगा, तो उसे इस बजट में बढ़ायी गयी आयकर छूट का लाभ नहीं मिलने वाला, हां टैक्स स्लैब में किये गये बदलाव का फायदा उसे जरूर मिलेगा.
जहां तक बजट के आकार की बात है, तो 2025-26 के बजट का कुल खर्च बढ़ाकर 50.65 लाख करोड़ किया गया है, जबकि पिछले बजट का खर्च 48.21 लाख करोड़ रुपये था. यानी पिछले बजट की तुलना में इस बजट का खर्च 5.1 प्रतिशत बढ़ा है. इसे अगर व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें, तो 2024-25 के पहले अग्रिम आकलन में आर्थिक विकास दर उससे पहले के वित्त वर्ष की आर्थिक विकास दर 8.2 फीसदी से घटकर 6.4 प्रतिशत रह गयी. सरकार के बजट का खर्च बढ़ना और उस अनुपात में आर्थिक विकास दर के कम होने पर सांख्यिकीय दृष्टि से विचार किया जाना चाहिए.
आज की अनिश्चित आर्थिक स्थिति में बजट के आकार में की जाने वाली वृद्धि पर सवाल उठाया जाना बिल्कुल स्वाभाविक है. यह अलग बात है कि वित्तीय सुदृढ़ीकरण के नाम पर बजट का आकार बढ़ाने के अपने फैसले का सरकार स्वाभाविक ही बचाव करेगी. लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि भारत में कारोबार करने के लिए आने वाली कंपनियां वैश्विक पूंजी बाजार से कर्ज लेती हैं. ऐसे में, वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां भारतीय अर्थव्यवस्था का अपने स्तर पर आकलन करेंगी ही.
लिहाजा अपनी अर्थव्यवस्था की रेटिंग ठीक रखने के लिए सरकार को राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाना ही पड़ेगा. इस बजट में भी इसका असर दिख रहा है, जहां राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 4.4 प्रतिशत रखा गया है. जबकि 2024-25 के बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 4.9 फीसदी रखा गया था, यह अलग बात है कि यह और कम होकर संशोधित आकलन में 4.8 प्रतिशत रह गया. ऐसा इसलिए संभव हो पाया, क्योंकि बजट आकलन की तुलना में संशोधित आकलन में ब्याज भुगतान में 2.1 प्रतिशत की कमी आयी. जाहिर है, वित्तीय सुदृढ़ीकरण के नाम पर बजट का आकार बढ़ाया जाता है. अगर पिछले बजट की बात करें, तो उसके संशोधित आकलन में कुल कर राजस्व के मोर्चे पर भी अच्छी चीज देखने को मिली.
दरअसल पिछले बजट में कुल कर राजस्व का जो आकलन किया गया था, वास्तविक कुल कर राजस्व उससे 13,000 करोड़ रुपये अधिक रहा. कर राजस्व में यह वृद्धि कॉरपोरेट टैक्स में 3.9 फीसदी की गिरावट के बावजूद हुई. पिछले बजट के संशोधित आकलन में कॉरपोरेट टैक्स संग्रह में कुल 40,000 करोड़ रुपये की कमी दिखायी गयी है. बजट के दिन वित्त मंत्रालय ने यह आंकड़ा दिया कि व्यक्तिगत आयकर संग्रह पिछले बजट आकलन से 5.9 प्रतिशत अधिक हुआ है. पिछले बजट में व्यक्तिगत आयकर संग्रह के मद में 70,000 करोड़ रुपये की प्राप्ति का आकलन था. लेकिन संशोधित आकलन में इसमें वृद्धि दिखायी गयी है.
चूंकि अधिक आयकर चुकाने वालों ने ईमानदारी दिखायी, जबकि कॉरपोरेट टैक्स संग्रह में कमी आयी, ऐसे में, आश्चर्य नहीं कि सरकार ने व्यक्तिगत आयकरदाताओं को आयकर छूट और आयकर स्लैब में बदलाव का दोहरा लाभ देने का फैसला किया. निश्चित रूप से वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के ध्यान में यह तथ्य था कि उच्च स्तर पर आयकर की छूट देने से टैक्स संग्रह में वृद्धि होती है. पिछले बजट में वित्त मंत्री ने रोजगार सृजन के लिए निजी क्षेत्र पर भरोसा जताया था. इस बार उन्होंने अधिक आयकर चुकाने वालों पर भरोसा जताया है कि वे अर्थव्यवस्था में उपभोग मांग बढ़ायेंगे.
हालांकि इस बजट में राजनीतिक पुट भी था, जैसा कि हर बजट में होता है. बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने जब-जब बिहार का जिक्र किया, तब-तब सदन में शोर और ठहाके गूंज रहे थे. चूंकि बिहार में इस साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, जहां सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा की सहयोगी है, ऐसे में, बजट में बिहार को महत्व मिलना ही था. राज्य में मखाना बोर्ड गठित होने से इसके उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और विपणन में सुधार आयेगा. हालांकि बिहार में कई ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट्स की स्थापना की बात कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है. बजट में राज्य की पश्चिमी कोसी नहर परियोजना के लिए वित्तीय मदद देने की भी घोषणा की गयी, जिसका लाभ बड़ी संख्या में मिथिलांचल के किसानों को मिलेगा.
राजकोषीय घाटे को अंकुश में रखने का लक्ष्य लेकर चलने से कई जगह बजट आवंटन में कमी होना तय ही था. इस बजट में सामाजिक क्षेत्र ने इसका खामियाजा भुगता. शिक्षा, खाद्य सब्सिडी, ग्रामीण विकास और स्वास्थ्य क्षेत्र में किये गये पिछले आवंटन का पूरा इस्तेमाल भी नहीं हो पाया. सतत और समावेशी विकास के जरिये दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा तो ठीक है, लेकिन इसके लिए देश की आबादी का स्वस्थ और प्रशिक्षित होना जरूरी है. लेकिन बजटीय आवंटन के पैटर्न और कई क्षेत्रों में बजट आवंटन का पूरा इस्तेमाल न हो पाना कुछ दूसरी ही कहानी कहता है. उम्मीद करनी चाहिए कि अगले बजट में यह पैटर्न बदलेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)