Kinnar: आपने कई बार ऐसे लोगों को देखा होगा जो चमकीले कपड़े पहनते हैं, गहरा मेकअप करते हैं और जिनकी चाल में एक अलग तरह की लचक होती है. कभी वे पुरुषों की तरह नजर आते हैं, तो कभी महिलाओं की तरह. इन्हें समाज में किन्नर के नाम से जाना जाता है. लेकिन इनकी ज़िंदगी आम लोगों के लिए हमेशा से रहस्य बनी रही है. किन्नरों की ज़िंदगी आम लोगों से बिल्कुल अलग होती है, उनके कायदे-कानून भी अलग होते हैं. यह सवाल अक्सर उठता है कि कोई किन्नर कैसे बनता है? समाज को इन सवालों के जवाब जानने चाहिए ताकि किन्नरों के प्रति नजरिया अधिक स्पष्ट हो सके.
किन्नरों का वर्गीकरण
किन्नर समुदाय मुख्य रूप से दो वर्गों में बंटा होता है. एक वर्ग स्त्री किन्नरों का होता है, जिनमें पुरुषों के लक्षण होते हैं और दूसरा वर्ग पुरुष किन्नरों का होता है, जिनमें स्त्रियों के लक्षण पाए जाते हैं. किन्नर अपने जेंडर को जन्म के समय ही पहचान लेते हैं और समाज में आने के बाद उन्हें अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता होती है. किन्नर समाज की आराध्य देवी ‘बेसरा माता’ मानी जाती हैं, जिनकी सवारी मुर्गा होती है. पूरा किन्नर समुदाय उनकी पूजा करता है और उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना करता है.
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किन्नर समाज के नियम और परंपराएं
किन्नरों का जीवन कुछ खास कायदे-कानूनों से बंधा होता है. वे अपने गुरु के संरक्षण में रहते हैं. गुरु किन्नरों के लिए माता-पिता और मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं. किन्नरों को अपने गुरु की आज्ञा माननी होती है और वे अपनी कमाई गुरु को सौंपते हैं. इसके बाद, गुरु हर किन्नर को उसकी जरूरत के अनुसार पैसा देता है और कुछ राशि भविष्य के लिए बचाकर रखता है. यदि कोई किन्नर गुरु की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता तो उसे समूह से बाहर कर दिया जाता है.
हर गुरु के अपने नियम होते हैं, जिन्हें सभी किन्नरों को मानना पड़ता है. इन्हें तोड़ने पर कड़ी सजा दी जाती है. किन्नरों के लिए एक निश्चित राशि कमाना अनिवार्य होता है. जो किन्नर इसे पूरा नहीं कर पाते, उन्हें अन्य कार्य करने के लिए कहा जाता है.
किन्नरों का रहन-सहन और परंपराएं
किन्नरों की जीवनशैली आम लोगों से अलग होती है. उनका अंतिम संस्कार भी गुप्त तरीके से किया जाता है. बहुत कम लोगों को यह पता होता है कि किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से वर्ष में एक बार विवाह करते हैं, हालांकि यह विवाह केवल एक दिन के लिए होता है. किन्नर समाज में नए व्यक्ति को शामिल करने से पहले नाच-गाने और सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है. यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है.
किन्नरों का ऐतिहासिक महत्व
प्राचीन काल से ही किन्नरों को विशेष स्थान प्राप्त था. राजाओं के दौर में उन्हें दरबारों में नृत्य और गायन के लिए रखा जाता था. मुगल काल में किन्नरों को कनीजों के रक्षक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. हालांकि, किसी भी युग में किन्नरों को समाज में सम्मानजनक स्थान नहीं मिला. वर्तमान में, वे शादियों, बच्चों के जन्म और अन्य शुभ अवसरों पर नाच-गाकर अपनी जीविका चलाते हैं.
ऐसी मान्यता है कि यदि किन्नर किसी को आशीर्वाद दें, तो उस परिवार में समृद्धि आती है. पहले लोग किन्नरों की झोली भरते थे और उनके आशीर्वाद को सौभाग्यशाली मानते थे. आज भी यह विश्वास कायम है कि किन्नरों का अपमान नहीं करना चाहिए.
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किन्नरों का धार्मिक महत्व
पुराणों में भी किन्नरों का उल्लेख मिलता है. महाभारत में भीष्म की मृत्यु का कारण एक किन्नर, शिखंडी को बताया गया है. इसके अलावा, पुराणों में किन्नरों को दिव्य गायक माना गया है. वायुपुराण के अनुसार, किन्नर अश्वमुखों के पुत्र थे और वे गायन व नृत्य में निपुण थे. महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने भी किन्नर समुदाय पर शोध किया और इस क्षेत्र की कई यात्राएं कीं.
दुनिया के विभिन्न हिस्सों में किन्नरों की स्थिति
दक्षिण एशिया में किन्नरों की अच्छी-खासी आबादी है, लेकिन समाज में उनके लिए कोई विशेष स्थान नहीं है. बांग्लादेश में किन्नरों की स्थिति बहुत खराब है, जिसके कारण वहाँ के कई किन्नर भारत आकर बस गए हैं. अमेरिका में किन्नरों की स्थिति अन्य देशों की तुलना में बेहतर है, लेकिन वहां भी वे सेना में भर्ती नहीं हो सकते.
भारत में 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को ‘थर्ड जेंडर’ के रूप में मान्यता दी. अब वे सरकारी दस्तावेजों में अपनी पहचान दर्ज करा सकते हैं और सरकारी नौकरियों में आवेदन कर सकते हैं. उन्हें स्कूल और कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार भी मिला है. हालांकि, भारतीय समाज में किन्नरों को अब भी समान दर्जा नहीं मिला है. कई विश्वविद्यालयों में किन्नर समुदाय के लोकगीत, इतिहास और साहित्य पर शोध किए जा रहे हैं. इसके बावजूद, समाज में समान जीवन जीने के लिए किन्नरों की लड़ाई जारी है. आम लोगों की मानसिकता अभी भी पूरी तरह नहीं बदली है.
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किन्नरों की जिंदगी आम लोगों से बहुत अलग होती है. वे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें अब भी समान अधिकार और सम्मान नहीं मिल पाया है. उनकी परंपराएं, रहन-सहन और धार्मिक मान्यताएँ अनूठी हैं. आधुनिक समय में किन्नरों के अधिकारों को लेकर काफी बदलाव हुए हैं, लेकिन उन्हें आम नागरिकों के समान दर्जा दिलाने की राह अभी लंबी है. समाज को चाहिए कि वह किन्नरों के प्रति अपनी सोच बदले और उन्हें एक समान और गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्रदान करे.
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