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अवैध प्रवासियों को भारत भेजना नयी बात नहीं, पढ़ें पूर्व विदेश सचिव शशांक का आलेख

Illegal Immigrants : अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने जितने भी अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निकाला था, उसकी तुलना में यदि हम एक डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति का कार्यकाल देखें, विशेषकर बराक ओबामा का, तो अपने समय में उन्होंने दोगुने लोगों को निकाला था. ट्रंप के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डब्ल्यू बुश की बात करें, तो उन्होंने भी ट्रंप से कहीं अधिक अवैध प्रवासियों को अमेरिका से बाहर निकाला था.

Illegal Immigrants : अमेरिका में अवैध तरीके से रह रहे 104 भारतीयों के एक समूह को वहां के प्रशासन ने सैन्य विमान से भारत भेज दिया. इन भारतीयों को लेकर अमेरिका का सैन्य विमान बुधवार को अमृतसर उतरा. ऐसा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. राष्ट्रपति ट्रंप ने अपनी उन नीतियों पर अमल करना शुरू कर दिया है, जिसके बारे में वे अपने चुनाव के दौरान लगातार बोल रहे थे. अमेरिका में जितने भी अवैध प्रवासी हैं, उन्हें वे वहां से निकालना चाहते हैं.

हालांकि अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने जितने भी अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निकाला था, उसकी तुलना में यदि हम एक डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति का कार्यकाल देखें, विशेषकर बराक ओबामा का, तो अपने समय में उन्होंने दोगुने लोगों को निकाला था. ट्रंप के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डब्ल्यू बुश की बात करें, तो उन्होंने भी ट्रंप से कहीं अधिक अवैध प्रवासियों को अमेरिका से बाहर निकाला था. लिहाजा, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. मुझे याद आता है, जब इंटरनेशनल माइग्रेशन ऑर्गनाइजेशन थी, तो वहां 1980 के दशक में मैं भी गया था, वहां अवैध प्रवासियों को लेकर जो चर्चा होती थी, तो हमारा और अमेरिका का रवैया लगभग एक जैसा ही होता था कि हम अवैध प्रवासियों को अपने यहां रहने की अनुमति नहीं दे सकते हैं.


हालांकि हमारे जो मुद्दे हैं, वे अमेरिका के अलग हैं. अमेरिका को लगता है कि अवैध प्रवासी आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं. दूसरा, उनको लगता है कि वे नशीले पदार्थों की तस्करी करते हैं, पर ऐसा नहीं है कि केवल भारत को ही अकेला निशाना बनाया गया है. अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निकालने के लिए ट्रंप प्रशासन ने मेक्सिको की सीमा पर अपने सीमा प्रहरियों, सेना को लगा दिया है. इसी तरह से फेडरल ट्रूप्स को वे सभी राज्यों में, विशेषकर डेमोक्रेटिक या उन राज्यों में, जो अधिक उदारवादी रहे हैं, भेज रहे हैं, जिनको अवैध प्रवासियों व सस्ते श्रमिकों की जरूरत थी. ट्रंप का मानना है कि इन राज्यों ने अवैध प्रवासियों को अमेरिका में रहने के लिए प्रोत्साहित किया है.

ट्रंप अवैध प्रवासियों को लेकर इतने गंभीर हैं कि उन्होंने यहां तक कह दिया है कि उनके फेडरल ट्रूप्स या फेडरल डिपार्टमेंट उन राज्य अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करेंगे, जिन्होंने अवैध प्रवासियों को बसाने में मदद की है. पिछली बार से इस बार बस इतना अंतर है कि इस बार उन्होंने अवैध प्रवासियों को संबंधित देश में भेजने के लिए चार्टर प्लेन की जगह सैन्य विमान का इस्तेमाल किया है. यह बात भारत समेत कई देशों को खली है. अमेरिका के जो साझेदार देश हैं, उन्होंने इसे लेकर प्रश्न भी उठाया है.


प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर अवैध प्रवासियों की वापसी के लिए किराये का भुगतान कौन करेगा. यदि किराये का भुगतान भारत करता है, तो उसे अवैध प्रवासियों से कहना होगा कि वे तब तक दोबारा देश से बाहर नहीं जा सकते, जब तक वे अपना पैसा चुका नहीं देते हैं. दूसरा तरीका यह है कि अमेरिकी सरकार लोगों के यहां आने का खर्च दे. हालांकि यह बात अमेरिका के ऊपर है कि वह इसे मानता है या नहीं. अब जब 104 भारतीयों का एक समूह अमेरिका से वापस भेज दिया गया है, तो इसके बाद भारत सरकार को अमेरिका में रह रहे लोगों से बातचीत करनी चाहिए कि जो लोग भारत सरकार के खर्चे पर वापस आना चाहते हैं, उनके लिए सरकार चार्टर प्लेन भेज देगी, लेकिन वे दोबारा तब तक बाहर नहीं जा पायेंगे, जब तक सरकार का पैसा नहीं लौटा देते. तो जिनको सरकार का यह प्रस्ताव पसंद आता है, वे चार्टर प्लेन में सरकार के खर्चे पर भारत आ सकते है या फिर यह भी हो सकता है कि अमेरिका में रह रहे भारतीय समुदाय, राजनीतिक दलों के ओवरसीज ग्रुप पैसा इकट्ठा कर अपने लोगों को देश वापस भेज दें.


व्यापार संबंधों की यदि बात करें, तो अमेरिका के अधिकांश देशों के साथ एडवर्स ट्रेड हैं यानी दूसरे देशों के साथ उसका व्यापार घाटा अधिक है. इसे देखते हुए ट्रंप हमेशा नाराजगी जाहिर करते रहे हैं. यहां मुझे दो बातें कहनी हैं. पहली यह कि भारत जो सामान अमेरिका को बेचता है, वह अधिकतर लघु उद्योगों के उत्पाद होते हैं या फिर एमएसएमइ क्षेत्र के होते हैं और हम अमेरिका से जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज (जीएसपी) मांगते हैं। ये चीजें बहुत कम शुल्क के साथ उनको बेची जाती हैं. हालांकि यह बात और है कि अमेरिका के साथ हमारी रणनीतिक साझेदारी थी, तब भी ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में हमारा जीएसपी बंद कर दिया था, जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ यह चालू था. तो, यहां जीएसपी के लिए बातचीत की जा सकती है.

दूसरी बात, हम अमेरिका के साथ जो प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, वह केवल सेवा क्षेत्र में ही कर रहे हैं. अमेरिका के सेवा क्षेत्र में काम कर रहे भारतीय भी चाहते हैं कि वे शांतिपूर्वक काम करें. भारत भी चाहता है कि अमेरिका उन्हें शांतिपूर्वक काम करने दे. ऐसे में भारत सरकार अमेरिका से बातचीत कर इसका हल निकाल सकती है कि हमारे लोग जो वहां काम कर रहे हैं, उन्हें फिलहाल काम करने दिया जाए. हम धीरे-धीरे अपने लोगों को वापस बुला लेंगे, पर यह सब व्यवस्थित तरीके से होना चाहिए और इसके लिए पर्याप्त समय मिलना चाहिए.


अमेरिका अपने व्यापार घाटे को लेकर परेशान है और इसी कारण वह अपने यहां आयात होने वाली वस्तुओं पर भारी शुल्क लगा रहा है. यहां अमेरिका से पारस्परिक हितों को ध्यान में रखते हुए बात की जा सकती है. यदि एडवर्स ट्रेड है, तो हम अमेरिका से ड्यूटी फ्री व्यापार के बारे में बात कर सकते हैं कि उसके हितों से जुड़े जो सामान हैं, हम उनमें से कुछ पर शुल्क कम कर देंगे और वे हमारे उत्पादों पर शुल्क न बढ़ाए. व्यापार के मामले में भारत का दो तरफा तरीके से बात करना बेहतर होगा, क्योंकि हम अमेरिका से अपने रिश्ते और प्रगाढ़ करना चाहते हैं, रिश्तों में गिरावट नहीं चाहते हैं. चीन, मेक्सिको, कनाडा का अपना तरीका है. हालांकि मेक्सिको और कनाडा को एक महीने का समय मिल गया है. तो हम भी उनसे अधिक समय मांग सकते हैं. कुल मिला कर भारत का विदेश मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, बिजनेस एसोसिएशन सभी व्यवस्थित और संगठित तरीके से अमेरिका से शुल्क को लेकर बात करें, तो चीजें सुलझ सकती हैं, क्योंकि हमें अपना व्यापार बढ़ाना है, कम नहीं करना. बातचीत के लिए समय ले लेना चाहिए और नियमित अंतराल पर बातचीत करते रहना चाहिए.
(बातचीत पर आधारित)

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