24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नृत्य केवल मनोरंजन नहीं, भावनाओं को व्यक्त करने का तरीका, पढ़िए सुदीपा घोष ने ऐसा क्यों कहा

Sudipa Ghosh भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से शोध के लिए फेलोशिप प्राप्त है. उन्होंने सरकार की कई योजनाओं के लिए नृत्य की संरचना की है.

Sudipa Ghosh भरतनाट्यम में विशेषज्ञता और ओड़िसी व हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन में महारत हासिल करने वाली वरिष्ठ नृत्यांगना सुदीपा घोष आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. वे नृत्य में रुचि रखने वाली बिहार की पहली छात्रा हैं, जिन्होंने चेन्नई के कलाक्षेत्र फाउंडेशन में अपना दाखिला लिया और चार साल तक नृत्य विधा की पढ़ाई की. फिर देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी वर्कशॉप लेने के साथ-साथ अपने भरतनाट्यम नृत्य की प्रस्तुति देने लगीं.

उन्हें भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से शोध के लिए फेलोशिप प्राप्त है. उन्होंने सरकार की कई योजनाओं के लिए नृत्य की संरचना की है. वर्तमान में वे विद्यापति की रचनाओं को नृत्यबद्ध कर रही हैं व भारतीय नृत्य कला मंदिर के भरतनाट्यम विभाग की शिक्षिका भी है. पढ़िए शास्त्रीय नृत्य विधा भरतनाट्यम की वरिष्ठ नृत्यांगना सुदीपा घोष से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

नृत्य के प्रति आपकी रुचि कैसे हुई? इससे कैसे जुड़ना हुआ?

— गर्दनीबाग राजकीय गर्ल्स हाई स्कूल में जब गयी, तो वहीं मैं कला से जुड़ी. फिर वहां की टीचर्स के जरिये साहित्य को कला में परिवर्तन करने का हुनर सीखा. कला मेरे अध्ययन की सहायक बनी. मैंने पहली प्रस्तुति कालीबाड़ी प्रांगण में रविंद्र नाथ टैगोर की नृत्य नाटिका से दी थी. फिर रविंद्र भवन के गीता भवन में नृत्य-संगीत का प्रशिक्षण दिया जाता है, यहां से मैंने नृत्य की प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत की.  

कलाक्षेत्र फाउंडेशन चेन्नई से कैसे जुड़ना हुआ?

— मेरा बड़ा मन था कि नृत्य में अध्ययन करूं. यहां पर कोई शैक्षणिक संस्थान नहीं था. इसके लिए मैंने एक अंग्रेजी के दैनिक अखबार के प्रधान संपादक को चिट्ठी लिख कर देश के 10 बड़े संस्थानों की लिस्ट मांगी थी. मुझे इसका जवाब भी एक चिट्ठी में मिला, जिसमें शीर्ष 10 संस्थानों का नाम था.

जिसमें सबसे पहला नाम चेन्नई स्थित कलाक्षेत्र फाउंडेशन का था. जब यहां इंटरव्यू के लिए आयी, तो मुझसे पूछा गया कि पहली बार हमारे पास बिहार की कोई कैंडिडेट आयी है. यहां से आप क्यों भरतनाट्यम सीखना चाहती है? मैंने कहा कि बचपन से डीडी नेशनल पर अखिल भारतीय कार्यक्रम को देखती थी और नृत्य हमेशा से मेरे लिए मनोरंजन का साधन न होकर डिवाइन लगा. चयन होने के बाद चार साल तक यहां के प्रसिद्ध प्रशिक्षकों से मैंने काफी कुछ सीखा और प्रस्तुतियां भी दी.

भारतीय नृत्य कला मंदिर का कैसा अनुभव रहा?


— कलाक्षेत्र फाउंडेशन से पढ़ाई समाप्त कर वापस मैं 2002 में आयी थी. 2003 में भारतीय नृत्य कला मंदिर की ओर से भरनाट्यम विभाग के लिए शिक्षिका के लिए आवेदन मांगे गये थे, जिसमें मेरा चयन हो गया. यहां बच्चों को प्रशिक्षित करने के साथ बिहार सरकार की कई योजनाओं पर नृत्य संरचना का मौका मिला.

अभी विद्यापति की रचनाओं को नृत्य बद्ध कर रही हूं, जिसमें 25 प्रस्तुति पूर्ण है, जो प्रेम रस वंदन के नाम पर है. अभी मैं बिहार के लोकनाट्य में महिला परख लोकनाट्य और नृत्य की बाहुल्यता पर शोध कर रही हूं.

ये भी पढ़ें.. Delhi Chunav Result 2025: दिल्ली चुनाव में नीतीश और चिराग की पार्टी हारी, बिहार में तेज हुई सियासी हलचल

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें