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ट्रंपवाद की दुनिया पर नियंत्रण की कोशिश, पढ़ें प्रभु चावला का खास आलेख

Donald Trump : अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति की गिद्धदृष्टि अब युद्धजर्जर गाजा पर है. हालांकि ह्वाइट हाउस के घबराये हुए वरिष्ठ कर्मचारी अब कह रहे हैं कि ट्रंप ने कभी नहीं कहा कि अमेरिका गाजा पर कब्जा कर उसे भूमध्यसागरीय रिवेरिया में विकसित करेगा, पर खुद राष्ट्रपति ट्रंप को अपने कारोबार को आगे बढ़ाने के बारे में बताने में कभी संकोच नहीं हुआ.

Donald Trump : उपनिवेशवाद मर चुका है, उपनिवेशवाद अमर रहे. फिर अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गये डोनाल्ड ट्रंप यह समझ चुके हैं कि अमेरिकी साम्राज्यवाद को उदार लोकतंत्र के समर्थक राष्ट्रपतियों ने कमजोर कर दिया है. ट्रंप अमेरिका को द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले के दौर में वापस ले जाना चाहते हैं, जब तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट ने अमेरिका को यूरोप और बर्लिन की मुश्किलों से अलग-थलग कर रखा था. हालांकि 1940 का वह दशक ब्रिटेन और यूरोप के दुर्दिनों का दशक था, जब अमेरिकी साम्राज्यवाद का उभार हो रहा था. आज ट्रंप अमेरिका के मुकुट विहीन राजा हैं, जिनकी निगाहों में दुनिया का सारा कुछ है. चुनाव जीतकर आये ट्रंप उस दौर में विलय और अधिग्रहणों के जरिये अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे हैं, जब सच-झूठ पर नजर रखने वाला कोई अंपायर नहीं है. उनका सपना ही उनका मिशन है.


जब पूंजीवाद ने फिर से पैसे की ताकत साबित की है, तब ट्रंपवाद शीर्ष पर है. सब कुछ खा लेने वाले ट्रंपवाद ने दुनिया का सब कुछ अधिगृहीत कर लिया है. एक तरफ ट्रंप के विरोधी उन पर बिना सोचे-समझे कदम उठाने का आरोप लगा रहे हैं, दूसरी तरफ खुद ट्रंप ग्रीनलैंड को खरीदना चाहते हैं, पनामा नहर पर कब्जा जमाना चाहते हैं और कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाना चाहते हैं. उनके पागलपन में एक पैटर्न है.


अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति की गिद्धदृष्टि अब युद्धजर्जर गाजा पर है. हालांकि ह्वाइट हाउस के घबराये हुए वरिष्ठ कर्मचारी अब कह रहे हैं कि ट्रंप ने कभी नहीं कहा कि अमेरिका गाजा पर कब्जा कर उसे भूमध्यसागरीय रिवेरिया में विकसित करेगा, पर खुद राष्ट्रपति ट्रंप को अपने कारोबार को आगे बढ़ाने के बारे में बताने में कभी संकोच नहीं हुआ. ह्वाइट हाउस में इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मौजूदगी में ट्रंप ने अपनी गाजा योजना का खुलासा किया, ‘हम उसे ले लेंगे और उस पूरे क्षेत्र में पड़े बिना फूटे बमों व दूसरे हथियारों को हटा देंगे. ध्वस्त मकानों को गिराकर पूरे इलाके को समतल कर देंगे. हम वहां आर्थिक विकास का काम शुरू करेंगे, जिससे कि आसपास के लोगों को रोजगार और रहने की जगह मिल सके. हम कुछ अलग काम करेंगे… यह फैसला सोच-समझकर लिया गया है. मैंने जिनसे भी बात की है, उन सबको यह विचार पसंद आया है कि अमेरिका गाजा को ले लेगा, उसे विकसित करेगा तथा हजारों लोगों को रोजगार देगा.’


ट्रंप के दलाल और प्रॉपर्टी डेवलपर दामाद जरद कशनर का, जो ट्रंप के पहले राष्ट्रपति काल में पश्चिम एशिया में अमेरिका के विशेष दूत थे, और जिनके कारण इस्राइल और अरब देशों के बीच रिश्ता सामान्य बनाने वाला अब्राहम समझौता संभव हुआ था, कहना है, ‘अगर लोग रोजगार के लिए आगे आयें, तो गाजा की रिवरफ्रंट प्रॉपर्टी काफी कीमती हो सकती है.’ वर्ष 2024 में कशनर ने अरब-इस्राइल विवाद को रियल एस्टेट विवाद बताकर पूरे संकट को एक नया मोड़ तो दे ही दिया था, इस ओर भी इशारा किया था कि कॉरपोरेट भू-राजनीति वैश्विक विमर्श को नया रूप दे सकती है.

यह पहली बार नहीं है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने विस्तारवादी दुस्साहस का परिचय दिया है. अपनी नीतियों और फैसलों के बारे में अपने स्वामित्व वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ सोशल पर वह बताते हैं. इसी पर उनकी पोस्ट है, ‘कनाडा को अमेरिका हजारों डॉलर की सब्सिडी देता है. इतनी भारी सब्सिडी के बगैर एक देश के रूप में कनाडा का अस्तित्व संभव ही नहीं है.’ ग्रीनलैंड के बारे में ट्रंप ने कहा, ‘मुझे समझ में नहीं आता कि इस पर डेनमार्क के दावे का आधार क्या है, लेकिन अगर वह अमेरिका की योजना को फलीभूत नहीं होने देता, तो वह एक शत्रुतापूर्ण कदम होगा, क्योंकि ग्रीनलैंड के बारे में अमेरिका की योजना मुक्त विश्व के संरक्षण की योजना है.’


वर्ष 2019 में उन्होंने कहा था कि ग्रीनलैंड पर अमेरिकी कब्जा रणनीतिक कारणों और वैश्विक सुरक्षा के लिए जरूरी है. अब ट्रंप की टिप्पणी यह है, ‘पनामा नहर पर चीन का नियंत्रण है, जबकि वह चीन को नहीं, बल्कि पनामा को मूर्खतापूर्ण तरीके से दिया गया था (1977 में जिमी कार्टर द्वारा), लेकिन चीन ने समझौते का उल्लंघन किया, और हम वह नहर वापस लेने जा रहे हैं. जल्दी ही कुछ बड़ा होने वाला है.’ ट्रंप ने डॉलर साम्राज्यवाद को भी आक्रामक ढंग से पेश करते हुए इसे वैश्विक व्यापार और वाणिज्य की प्रमुख मुद्रा बनाये रखने का ठोस संदेश दिया है. पिछले कुछ वर्षों से चीन के नेतृत्व में कुछ देश प्रमुख वैश्विक मुद्रा के रूप में डॉलर को हटाना चाहते हैं, ताकि विश्व व्यापार को अमेरिकी नियंत्रण से मुक्त किया जा सके.

अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान का मानना है कि ब्रिक्स के मूल सदस्य देश-ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका एक वैकल्पिक वैश्विक मुद्रा पर काम कर रहे हैं. हालांकि भारत शुरू से ही इस आरोप को खारिज करता आया है. ट्रंप ने धमकी देते हुए कहा है, ‘यह ज्ञात तथ्य है कि ब्रिक्स देश डॉलर से अलग होने की कोशिश में हैं. शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने वाले इन देशों से हम यह आश्वासन चाहते हैं कि वे न तो ब्रिक्स की कोई करेंसी लायेंगे, न ही ताकतवर अमेरिकी डॉलर को विस्थापित करेंगे. अगर वे इसका उल्लंघन करते हैं, तो उन पर 100 फीसदी शुल्क लगाया जायेगा और उन्हें अमेरिकी बाजार में अपने उत्पाद बेचने से हाथ धोना होगा. ब्रिक्स द्वारा अमेरिकी डॉलर को विस्थापित करने की कोई गुंजाइश नहीं है.’


ट्रंप का नारा, ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ अब ‘मेक अमेरिका ग्लोबली मेड अगेन’ में बदल गया है. अपने विस्तारवादी अभियान में व्यापार के पारंपरिक कौशल को ट्रंप ने आधुनिक अंतरराष्ट्रीयतावाद से जोड़ दिया है. उनके कॉरपोरेट दोस्त कब के खत्म हो चुके ब्रिटिश साम्राज्यवाद से प्रेरणा ले रहे हैं. शायद उन्हें यह बताया गया हो कि अपने सामान और कारोबार के जरिये व्यापार और इलाकों को जीतना आसान है. वर्ष 1600 में ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी समुद्र के रास्ते भारत आयी थी और 1757 तक उन्होंने भारत के एक बड़े हिस्से पर कब्जा जमा लिया था. ट्रंप की विस्तारवादी महत्वाकांक्षी भले ही हू-ब-हू वह न हो, लेकिन उन्होंने एलन मस्क, मार्क जुकरबर्ग और जेफ बेजोस जैसी ताकतवर शख्सियतों को अपने प्लेटफॉर्मों के जरिये दुनिया को जोड़ने के अभियान में नियुक्त कर रखा है. मस्क यूक्रेन में जेलेंस्की से, रूस में पुतिन से और पश्चिम एशिया के नेताओं से संपर्क साधे हुए हैं. ट्रंपवाद का सपना वैश्विक नियंत्रण के उसी साम्राज्यवाद की स्थापना का है, जिसमें कभी सूर्य अस्त न होता हो. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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