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भागलपुर सिल्क सिटी में रेशमी कपड़ों में धड़ल्ले से हो रही मिलावट, तभी बचा पा रहे रोजगार और प्याेर सिल्क कपड़े ढूढ़ना पड़ रहा

भागलपुर प्रक्षेत्र अंतर्गत

भागलपुर प्रक्षेत्र अंतर्गत बुनकर अब प्योर सिल्क की बजाय मिक्स सिल्क के कपड़े तैयार करने को विवश हैं. धड़ल्ले से मिलावट हो रही है. इससे ही अपना रोजगार बचा पा रहे हैं. प्योर सिल्क की कीमत अधिक लोग नहीं दे पाते हैं. प्योर सिल्क का बाजार सिमटता जा रहा है. इसका मूल कारण लगातार धागों की कीमत में बढ़ोतरी है. पहले की तरह अपना धागा नहीं होना और दूसरे स्थानों से धागा लाकर कपड़ा तैयार करने की परेशानी है. उक्त बातें बांका कटोरिया से आये बुनकरों ने पदाधिकारियों के समक्ष समस्याओं से अवगत करते हुए कही. मौका था केंद्रीय रेशम बोर्ड, वस्त्र मंत्रालय-भारत सरकार अंतर्गत रेशम तकनीकी सेवा केंद्र की ओर से रेशम भवन, जीरोमाइल सभागार में भागलपुर रेशम उद्योग के विकास के लिए हितधारकों व निवेशकों की बैठक का. बैठक में अमरपुर, भगैया, कटोरिया, धौरेया, शाहकुंड, जगदीशपुर, पुरैनी, मिर्जाफरी, चंपानगर, लोदीपुर, शाहजंगी, नाथनगर, हुसैनाबाद के बुनकर, रिलर आदि ने हिस्सा लिया.

बैठक की अध्यक्षता जिला उद्योग केंद्र की जीएम खुशबू कुमारी ने की. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि केंद्रीय रेशम बोर्ड के सदस्य पी शिव कुमार थे, तो विशिष्ट अतिथि जिलाधिकारी डॉ नवलकिशोर चौधरी थे. बैठक में भागलपुर बांका के 125 बुनकर, इंवेस्टर, निर्यातक, रिलर व मास्टर विभर्स शामिल हुए. बैठक में निवेशकों के साथ बैठक का जिक्र किया गया था, लेकिन उद्योग विभाग से जुड़े कर्मियों ने खुद बताया कि इसमें निवेशक नहीं पहुंचे हैं.

केंद्रीय रेशम बोर्ड के सदस्य सचिव पी शिव कुमार ने कहा कि बेंगलुरु से आकर सिल्क सिटी की पहचान लौटाना चाह रहे हैं. बुनकरों की मूल समस्या क्या है. यहां प्रोडक्शन क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए. एक-एक समस्या व समाधान की जानकारी दें, ताकि उनकी समस्या का समाधान करा सकेंगे. इससे पहले जिला उद्योग केंद्र की महाप्रबंधक खुशबू कुमारी ने कहा कि क्यों ऐसी परिस्थिति आ रही है कि बुनकर बुनकर बनकर 10 लोगों को रोजगार नहीं दे पा रहे हैं और खुद मजदूर बनने के पायदान पर खड़े हो रहे हैं. ऐसी परिस्थिति से उबारने के लिए उद्योग विभाग व सरकार क्या कर सकती है. समस्याओं से खुद अवगत कराएं.

एक्सपोर्टर पांड्या ने कहा कि गांव-गांव में सिल्क धागा बनवाते हैं. बिक्री के लिए बाजार की जरूरत है. खासकर हैंडलूम धागा को तैयार करने में कई प्रकार की कठिनाई का सामना करना पड़ता है. सिल्क बोर्ड के पदाधिकारी एमबी चौधरी ने कहा कि अपना ब्रांड बनाना है कि कोकून बैंक बनाना है. धागा में चमक फीका पड़ रहा है. दूसरों पर धागे के लिए निर्भर हो रहे हैं. बुनकरों को धागे की आत्मनिर्भरता पर ध्यान देना होगा.

केंद्रीय सिल्क बोर्ड के सदस्य सचिव पी शिव कुमार ने पंखा टोली स्थित डिजाइन स्टूडियो एवं क्षेत्रीय बुनकर सहयोग समिति कार्यालय परिसर को विजीट किया. आसपास के बुनकरों से उनकी समस्या को जाना और प्रोडक्शन से अवगत हुए. देर रात परिसदन में जिलाधिकारी व वस्त्र उद्योग से जुड़े पदाधिकारियों से गोपनीय बैठक होती रही.

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