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फैज : तरक्कीपसंद तहरीक का एक अहम शायर

Faiz Ahmad Faiz : फैज ने जो संतुलन काइम रखा है जमालियात और सियासियात के दरमियां, वो बहुत कम लोग रख पाते हैं और शायद इसलिए अपनी महबूबा से फैज कहते हैं- 'मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग/और भी दुख हैं जमाने में मुहब्ब्त के सिवा/राहते और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा.'

Faiz Ahmad Faiz : तरक्कीपसंद तहरीक की रहगुजर में फैज अहमद फैज एक ऐसा नाम है जिसका परचम अदब की दुनिया में हमेशा बुलंदियों पर फहराता रहेगा, क्योंकि वो शायर कोई मामूली शायर नहीं था. उसने शायरी को महज इश्क व रूमानियत का जरिया नहीं बनाया, बल्कि इंकिलाब व क्रांति का वाहक भी बनाया. फैज एक ऐसा कवि… एक ऐसा शायर है जो अपनी शायरी से… अपनी तख्लिकात से एक तरफ रूमानियत की खुशबू बिखेरता है, तो दूसरी ओर इंकिलाब की आवाज भी बुलंद करता है और यह आवाज उनके मुल्क पाकिस्तान की सरहद को पार करती हुई हिंदुस्तान सहित कई मुल्कों में पहुंचती है. फैज जैसा शायर हमेशा इंसानी मूल्यों व तकाजों को अव्वल रखता है और यह तभी संभव होता है जब कोई सियासी व समाजी सरोकारों से लगातार जूझता है. इसलिए अगर यह कहा जाए कि फैज रूमानियत परस्त बागी हैं, तो शायद गलत नहीं होगा.


फैज ने जो संतुलन काइम रखा है जमालियात और सियासियात के दरमियां, वो बहुत कम लोग रख पाते हैं और शायद इसलिए अपनी महबूबा से फैज कहते हैं- ‘मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग/और भी दुख हैं जमाने में मुहब्ब्त के सिवा/राहते और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा.’ या फिर वे कहते हैं- ‘हम जीते जी मसरूफ रहे/कुछ इश्क किया कुछ काम किया.’ उर्दू अदब में फैज का जो मकाम है, वह निसंदेह बहुत ऊंचा और मुख्तलिफ है. फैज की मकबूलियत इतनी अधिक थी कि तानाशाही हुक्मरान भी उनसे खौफ खाते थे. दुनिया के किसी भी कोने में तानाशाही जुल्म होता, फैज उससे मुतास्सिर हुए बगैर नहीं रहते और अपने कलाम के जरिये उसकी मुखालफत करते.

पाकिस्तान के फौजी तानाशाही के खिलाफ वे ‘लाजिम है’ जैसी नज्म लिखते हैं, तो बेरूत में हुए नरसंहार के खिलाफ भी वे ‘एक नगमा कर्बला-ए-बेरूत के लिए’ उनवान से नज्म लिखते हैं. उनकी कई इंकिलाबी नज्मों में एक नज्म ‘लाजिम है’ बेहद खास है. यह वही नज्म है जिसने पाकिस्तान में भूचाल ला दिया था और फैज को पाकिस्तान छोड़ना पड़ा था. जरा ‘लाजिम है’ नज्म का तेवर देखिए, जिसे पाकिस्तान में साड़ी पहनने पर पाबंदी लगा देने के बाद खूब गायी गयी- ‘हम देखेंगे/लाजिम है कि हम भी देखेंगे/वे दिन कि जिसका वादा है/जो लौह-ए-अजल में लिक्खा है/जब जुल्म-ओ सितम के कोह-ए-गिरां/रूई की तरह उड़ जायेंगे…’

फैज की शायरी में प्रगतिशील चेतना व तेवर आखिर तक काइम रही. पर ऐसा नहीं है कि रूमानियत व मुहब्बत को वे अलविदा कह देते हैं. उसमें भी ऐसा रंग भरते हैं कि पढ़ने वाले अचंभित रह जाते हैं- ‘गुलों में रंग भरे बादे नौबहार चले/चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले.’ साथ ही वे यह भी कहते हैं- ‘बोल, कि लब आजाद हैं तेरे/बोल, जबां अब तक तेरी है/तेरा सुतवां जिस्म है तेरा/बोल, कि जबां अब तक तेरी है.’


वर्ष 1941 में ‘नक्शे फरियादी’ के छपने के साथ ही फैज का नाम उर्दू अदब के अहम शायरों में शुमार होने लगा. एक इंकिलाबी शायर के तौर पर वे पूरे मुल्क में उभरने लगे और उनकी शायरी के तेवर लोगों को झिंझोड़ने लगे. उनका एक शे‘र है- ‘अब जुल्म की मियाद के दिन थोड़े हैं/इक जरा सब्र कि फरियाद के दिन थोड़े हैं.’ देश के बंटवारे के बाद जब चारों तरफ फसाद का खूनी मंजर था तब फैज ने कराहते हुए लिखा- ‘ये दाग-दाग उजाला ये शब गजीदा सहर/वे इंतिजार था जिसका ये वो सहर तो नहीं/ये वो सहर तो नहीं जिसकी आरजू लेकर/ चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं/ फलक के दश्त में आखिरी मंजिल…’ पाकिस्तान जाने के बाद भी फैज वहां की सरकारों की गलत नीतियों की मुखालिफत करते रहे और नतीजतन, उन्हें कई दफ‘अ जेल हुई. पर जेल में भी उनके हौसले पस्त नहीं हुए. उन्होंने अच्छी से अच्छी और बेहतरीन से बेहतरीन रचनाएं जेल में लिखीं.

जी हां, फैज की शख्सिय के कई रंग थे और ये रंग उनकी शायरी में झलकते हैं जहां मुहब्बत, इश्क के साथ-साथ सत्ता द्वारा दमनकारी नीतियों के खिलाफ गुस्सा भी दिखायी पड़ता है. उर्दू शायरी में फैज एक ऐसे मोतबर नाम हैं जो खास-ओ-आम में बहुत ही मकबूल थे. उनकी शायरी कई भाषाओं में अनूदित हुई और केवल रूसी भाषा में उनकी शायरी की दो लाख, दस हजार प्रतियां प्रकाशित हुईं. आखिर में फिर वही कहूंगा कि फैज ने इंकिलाबी नज्मों के अलावे जो इश्किया नज्में व गजलें लिखी हैं, वे भी बेमिसाल हैं. जैसे वे कहते हैं- ‘आपकी याद आती रही रात भर/चांदनी दिल दुखाती रही रात भर/कोई खुशबू बदलती रही पैरहन/कोई तस्वीर गाती रही रात भर.’ या फिर ‘तुम्हारी याद के जब जख्म भरने लगते हैं/ किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं.’फैज के यौमे पैदाइश पर उन्हें बार-बार सलाम.

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