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Bokaro News: आउटसोर्स के दौर में बदहाल हुई बेरमो की कई नामी-गिरामी पुरानी ट्रांसपोर्टिंग कंपनियां

Bokaro News: कोल इंडिया में आउटसोर्स के इस दौर में बेरमो की कई पुरानी व नामी गिरामी कोल ट्रांसपोर्टिंग कंपनियां पूरी तरह से बदहाल हो गई है. कई कंपनियों का वर्षो से जहां काम है बंद है तो कई कंपनियां बेरमो से पलायन कर गयी.

बता दें कि कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण से पूर्व एनसीडीसी, खानगी मालिकों तथा शुरुआती दौर में इर्स्टन रेलवे की कोलियरी के समय से बेरमो की कई पुरानी कोल ट्रांसपोर्टिंग कंपनियां यहां कोयला ट्रांसपोर्टिंग से जुडी थी. कोलियरी से कोलियरी, कोलियरी से साइडिंग, कोलियरी से वाशरी, कोलियरी से डीवीसी का बोकारो थर्मल पावर स्टेशन, चंद्रपुरा थर्मल पावर स्टेशन के अलावा राज्य सरकार के टीटीपीएस में किये जाने वाले कोल ट्रांसपोर्टिंग से बेरमो की दो दर्जन से ज्यादा कोल ट्रांसपोर्टिंग कंपनियां जुडी हुूई थी.

राष्ट्रीयकरण के बाद से 90 के दशक तक सभी पुरानी कोल ट्रांसपोर्टिंग कंपनियां का कामकाज सुचारु रुप से यहां चलता है लेकिन 2000 के बाद कोल इंडिया में तेजी से शुरु आउटसोर्स के दौर का असर बेरमो कोयलांचल की विभिन्न कोलियरियों में भी पडा.

मालूम हो कि बेरमो अंतर्गत सीसीएल की तीन बडी एरिया बीएंडके, कथारा व ढोरी है जिसके अधीन एक समय तीन दर्जन से ज्यादा माइंस हुआ करती थी. इसके अलावा एक दर्जन के करीब भूमिगत खदान थी. तीन बड़ी वाशरी थी. उस वक्त कोलियरी का उत्पादन भी ज्यादा नही हुआ करता था. लेकिन अब जहां कोयले का उत्पादन बढा है वही कोल ट्रांसपोर्टिंग व ओबी निस्तारण भी काफी बढा है.

इसलिए अब कोल इंडिया के दिये गये लक्ष्य को पूरा करने के लिए बडी-बडी आउटसोर्सिंग कंपनियां कोलियरी में काम कर रही है. पहले कोल इंडिया से ज्यादा विभागीय उत्पादन होता था तथा कोल ट्रांसपोर्टिंग व ओबी निस्तारण अलग-अलग कोल ट्रांसपोर्ट कंपनिया किया करती था.

अब जो भी आउटसोर्स कंपनियां आ रही है वह कोयला खनन के अलावा ओबी निस्तारण व कोल डिस्पैच भी खुद कर रही है. दूसरी ओर पहले ज्यादा कोल ट्रांसपोर्टिंग सड़क मार्ग से हुआ करता था लेकिन अब 80 फीसदी उत्पादित कोयले की ट्रांसपोर्टिंग रेल मार्ग से हो रहा है. देश के सभी थर्मल पावर प्लांट में रेल मार्ग से ही कोयले की ट्रांसपोर्टिंग की जाती है. इसके कारण ट्रक ऑनरों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है. वही कोयले का लोकल सेल भी पहले की अपेक्षा प्रभावित हुुआ है.

बेरमो की पुरानी कोल ट्रांसपोर्टिंग कंपनियां

एनटीसी,शिव राम सिंह एंड कंपनी, आरकेटी, एबी सिंह एंड कंपनी, बीकेबी, शर्मा एंड कंपनी, जेटीसी, एटीसी, सर्वेश्वरी इंटरप्राइचेज, एलपीएस, दुर्गा कंस्ट्रक्शन, एमडी इजरायल, ढिल्लन ट्रांसपोर्ट कंपनी, जुगनू ट्रांसपोर्ट, ज्योति ट्रांसपोर्ट, शक्ति ट्रांसपोर्ट, बीडीएस, जीएम दुबे एंड कंपनी आदि, इसमें बीकेबी व आरकेटी कंपनी का थोडा बहुत कोल ट्रांसपोर्टिंग का कार्य है. कई कंपनियों के पास अब कोई काम नही है. कई कंपनियां पलायन कर गई जिसमें जेटीसी, एलपीएस आदि मुख्य रुप से शामिल है.

बेरमो के कई लोग थे कोलियरी ऑनर

बेरमो के कई पुराने लोग यहां कोलियरी ऑनर भी थे. इसमें झरिया के मदन लाल बसमतिया, बेरमो के तारमी कोलियरी के ऑनर थे. वहीं बेरमो के जरीडीह बाजार निवासी मणिलाल कोठारी कल्याणी परियोजना के ऑनर थे.मणिलाल कोठारी के परिवार का इतिहास बेरमो में सौ साल से भी ज्यादा पुराना है. मणिलाल कोठारी के तीन लड़के थे शशिकांत कोठारी, रमणिक लाल कोठारी एवं कांति लाल कोठारी, रमणिक लाल कोठारी के पुत्र गिरिश कोठारी इस पुराने परिवार की एनटीसी कंपनी का देखरेख करते हैं.

वे कहते है कि अब इस कंपनी के पास एक भी काम नही है. इसके अलावा धनबाद और झरिया के कोलियरी ऑनर भगवान लाल चनचनी का बेरमो में एनसीडीसी के जमाने में कोल ट्रांसपोर्टिंग हुआ करता था. चनचनी के मैनेजर मुकुंद लाल चनचनी थे. हिंद स्ट्रीप माइनिंग कॉरपोरेशन में इस कंपनी की कोल ट्रांसपोर्टिंग थी. वहीं भुवनेश्वर सिंह एवं हनुमान दास कोठारी तुरियो कोलियरी, शिवराम सिंह पिपराडीह एवं ढोरी खास तथा गोपाल नारायण सिंह मकोली कोलियरी के ऑनर हुआ करते थे.

बेरमो में अब काम कर रही आउटसोर्स कंपनिया

सीसीएल बीएंडके एरिया अंतर्गत एकेके परियोजना में बीकेबी, केएसएमएल एवं ददन सिंह तथा कारो परियोजना में बीकेबी एवं हाल में ही दिव्या कॉनकॉस्ट एंड कंस्ट्रक्शन परा.लि ने यहां आउटसोर्स का काम लिया है. सीसीएल ढोरी एरिया अंतर्गत एएओडीसीएम में उबैर माइनिंग तथा एसडीओसीएम में बीएलए के अलावा कथारा एरिया अंतर्गत कथारा कोलियरी में बीकेबी एवं बीएलए, गोविंदपुर परियोजना में बीएलए तथा जारंगडीह परियोजना में एनइपीएल तथा कृष्णा इंफ्रास्ट्रक्चर नामक आउटसोर्स कंपनी काम कर रही है.

चालू वित्तीय वर्ष में बेरमो के तीन एरिया का उत्पादन लक्ष्य

चालू वित्तीय वर्ष में बेरमो के तीन एरिया का उत्पादन लक्ष्य करीब 17 मिलियन टन है. इसमें बीएंडके एरिया से 9 मिलियन टन, कथारा एरिया से 4.4 मिलियन टन तथा ढोरी एरिया से 5.4 मिलियन टन है. जबकि आज से दो दशक पूर्व तीनों एरिया मिलाकर 5 मिलियन टन के करीब उत्पादन होता था.

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