Year Ender 2022: वर्ष 2020 और 2021 कोविड महामारी की भेंट चढ़ गये, जिससे दुनियाभर में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित रहीं. पर संक्रमण कम होते ही, बाजारों में रौनक लौटने लगी. कारोबारी गतिविधियां शुरू हो गयीं और लोग कामकाज पर लौट आये. इसके साथ ही दुनियाभर में- कुछेक देशों को छोड़कर- आर्थिक स्थिति पटरी पर लौटने लगी. लेकिन इस वर्ष फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होते ही एक बार फिर से बाजारों में उथल-पुथल मच गयी. युद्ध के कारण रूस से खफा पश्चिमी देशों ने उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिये. इन घटनाओं ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को एक बार फिर से बेपटरी कर दिया. इस कारण विश्व के अधिकांश देश आर्थिक चुनौतियों का सामना करते रहे.
युद्ध के कारण ऊर्जा समेत अनेक जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ गये, जिससे पहले से ही आर्थिक तंगी झेल रहे लोगों के लिए जीना दूभर हो गया. केंद्रीय बैंकों द्वारा नीतिगत ब्याज दरों में वृद्धि से वैश्विक वित्तीय स्थिति तनावग्रस्त रही, जिसका असर उभरते बाजार अर्थव्यवस्था पर पड़ा. उच्च अनिश्चितता, धीमी वृद्धि, मुद्रास्फीति का दबाव और रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के ऊर्जा बाजार पर प्रभाव ने नीति-निर्माताओं को इस परेशानी में डाले रखा कि वे व्यापक आर्थिक स्थिरता को बनाये रखने और मध्यम अवधि में सतत एवं समावेशी विकास की संभावनाओं में सुधार के लिए कौन सा उपाय करें या विकल्प अपनाएं.
इस वर्ष वैश्विक स्तर पर कंपनियों, व्यापारियों ने मनमाने ढंग से वस्तुओं के मूल्य तय किये, जिससे वैश्विक वित्तीय स्थिरता पर संकट बढ़ गया. मनमाने दाम के कारण लोगों की जेब पर बोझ बढ़ा जिससे मांग में कमी आयी और इसने बाजार को प्रभावित किया. इसे देखते हुए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी चेताया है कि वस्तुओं के मनमाने दाम तय करने के कारण दुनिया पर मंदी का खतरा मंडरा रहा है.
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विश्व स्टॉक में गिरावट : इस वर्ष अक्तूबर में विश्व के स्टॉक फिसलकर दो वर्ष के निचले स्तर के करीब पहुंच गये, जबकि जापानी येन 1998 के स्तर के नजदीक पहुंच गया.
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जीडीपी में संकुचन : ब्रिटेन, अमेरिका, इटली और फ्रांस सहित दुनियाभर की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं आसमान छूती महंगाई से जूझती रहीं. कई देशों समेत अमेरिका और ब्रिटेन ने भी अपनी जीडीपी में संकुचन देखा. श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश की हालत तो महंगाई व खाद्य संकट से बदतर हो गयी.
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कच्चे तेल की कीमत बढ़ी : फरवरी में दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतें करीब 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गयीं. वर्ष 2014 के बाद पहली बार तेल कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गयीं.
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ब्याज दरों में वृद्धि : इस वर्ष की शुरुआत में अमेरिका और कुछ यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति में आयी तेज से ब्याज दरों में वृद्धि का सिलसिला शुरू हो गया. ब्रिटिश सरकार की उधार लेने की लागत (ब्याज समेत तमाम लागत) 20 वर्ष के रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गयी. वहीं दक्षिण कोरिया के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में हाफ पर्सेंट प्वाइंट की वृद्धि की. फेडरल स्टेटिकल ऑफिस के अनुसार, सितंबर में जर्मनी की उपभोक्ता कीमतें बीते वर्ष इसी महीने की तुलना में इस वर्ष 10.9 प्रतिशत अधिक थीं. मुद्रास्फीति और मौद्रिक सख्ती में तेजी के कारण ऊर्जा, खाद्य उत्पादों और उर्वरक की कीमतें आसमान छूने लगीं. आपूर्ति के मोर्चे पर जबरदस्त गतिरोध उत्पन्न हुआ.
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चीन में कोरोना की वापसी : चीन में कोरोना वायरस ने फिर से वापसी की जिससे यहां लॉकडाउन लगाना पड़ा. इस कारण आपूर्ति-श्रृंखला में व्यवधान उत्पन्न हुआ.
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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अक्तूबर के अनुमान के अनुसार, तमाम झटकों के परिणामस्वरूप वैश्विक आर्थिक वृद्धि बीते वर्ष की तुलना में कम रही और फिसलकर तीन प्रतिशत पर पहुंच गयी. वर्ष 2023 में इसके तीन प्रतिशत से नीचे जाने का अनुमान है.
इस वर्ष पूरी दुनिया ने अभूतपूर्व खाद्य संकट का सामना किया, जो आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा खाद्य संकट रहा. युद्ध, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और वैश्विक मंदी की आशंका के बीच दुनियाभर के लाखों लोग भुखमरी का शिकार हुए. यह भी सच है कि भुखमरी से जूझ रही दुनिया की आधी जनसंख्या हिंसा और युद्धग्रस्त क्षेत्रों में ही रह रही है. युद्ध के कारण लोग पलायन को मजबूर हुए और उनसे उनकी रोजी-रोटी छिन गयी. यदि इन समस्याओं का सही समाधान नहीं तलाशा गया, तो यह संकट और गहरायेगा तथा अनगिनत लोग भुखमरी व कुपोषण का शिकार होंगे.
आंकड़ों की मानें, तो 828 मिलियन लोग हर रात भूखे पेट सोने को मजबूर हैं. वर्ष 2019 से खाद्य असुरक्षा में तेज वृद्धि हुई है और यह 135 मिलियन से बढ़कर 345 मिलियन पर पहुंच गयी है. इस समय 49 देशों के 49 मिलियन लोग अकाल की कगार पर हैं. जबकि जरूरतें आसमान छू रही हैं, संसाधनों में भारी कमी दर्ज हुई है और यह निचले स्तर पर पहुंच गयी है. वर्ष 2022 में 160 मिलियन लोगों तक पहुंचने के लिए विश्व खाद्य प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) को 22.2 अरब डॉलर की जरूरत रही. चूंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था अभी भी कोविड-19 महामारी व उसके प्रभावों से जूझ रही है, लोगों की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धन की भारी कमी भी रही है. इससे पहले इस मद के लिए कभी भी धन की इतनी कमी नहीं रही.
इस वर्ष दुनिया के अधिकांश देशों ने ऊर्जा की कमी का सामना किया, क्योंकि प्राकृतिक गैस, कोयला और अन्य ऊर्जा स्रोतों की आपूर्ति मांग की तुलना में काफी कम रही. जहां यूरोप में प्राकृतिक गैस की कीमतें कई गुना बढ़ गयीं, वहीं चीन में कोयले की आपूर्ति कम होने से बिजली उत्पादन में व्यवधान आया और उसके कई कारखाने बंद हो गये. इस बीच अपर्याप्त आपूर्ति के कारण ब्रिटेन के कई ईंधन पंप खाली रहे. भारत के बिजली संयंत्रों को भी कोयले की गंभीर कमी का सामना करना पड़ा. पश्चिमी देशों द्वारा लगाये गये प्रतिबंधों से नाराज रूस ने इन देशों की गैस आपूर्ति कम कर दी. इससे इस वर्ष यूरोपीय देशों में तेल-गैस की कीमतें सर्वकालिक उच्च स्तर पर रहीं. नतीजा, सभी प्रकार के बिजली के दाम बेतहाशा बढ़ गये. प्राकृतिक गैस, तेल, कोयला और अन्य ऊर्जा संसाधनों की कीमतें भी इस वर्ष कई वर्षों के उच्चतम स्तर पर रहीं. चूंकि ऊर्जा की कीमतें आपूर्ति श्रृंखला में आर्थिक निर्णयों को प्रभावित करती हैं, कीमतों में वृद्धि का अर्थव्यवस्थाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है. यूरोप और एशिया की कई कंपनियां बंद हो गयीं हैं.
रिपोर्ट : आरती श्रीवास्तव/ अभिजीत
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