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भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों में अहम मोड़

भारत और ऑस्ट्रेलिया इस वास्तविकता को भी समझते हैं कि दोनों का सामरिक क्षेत्र समान है तथा उन्हें चीन के बढ़ते वर्चस्व का सामना करना है. इस समझौते से जहां ऑस्ट्रेलिया को चीन जैसा ही बड़ा बाजार उपलब्ध हुआ है, तो भारत के लिए अपने निर्यात बढ़ाने का अवसर मिला है

द्विपक्षीय व्यापारों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौते का एक भाग 29 दिसंबर से लागू हो गया है. इसका दूसरा भाग एक जनवरी, 2023 से अस्तित्व में आ जायेगा. इस समझौते पर इस वर्ष दो अप्रैल को हस्ताक्षर हुए थे. जानकारों का आकलन है कि इस मुक्त व्यापार समझौते से आगामी पांच वर्षों में दोनों देशों का परस्पर व्यापार 70 अरब डॉलर के स्तर को पार कर जायेगा. इस समझौते को साकार करने के लिए बीते कुछ वर्षों से वार्ताओं का सिलसिला जारी था.

दोनों देशों के आपसी संबंध कुछ समय से अच्छी स्थिति में हैं और इस अवधि में रणनीतिक सहकार की दिशा में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है. इस लिहाज से यह मुक्त व्यापार समझौता एक महत्वपूर्ण मोड़ है. यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि ऑस्ट्रेलियाई संसद में इस समझौते का प्रस्ताव बहुत आराम से पारित हो गया. जब इस समझौते पर बातचीत चल रही थी, तब वहां लिबरल पार्टी की सरकार थी. इस वर्ष मई में लेबर पार्टी सत्तारूढ़ हुई, तो समझौते के भविष्य को लेकर आशंकाएं जतायी जाने लगी थीं क्योंकि दोनों दलों के आर्थिक कार्यक्रम में कुछ मसलों पर भिन्नता है. लेकिन लेबर सरकार भी इस विषय को लेकर सक्रिय रही और समझौते पर वहां की संसद ने भी अपनी मुहर लगा दी.

वर्ष 2021-22 में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 25 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का आयात-निर्यात हुआ था. भारतीय वस्तुओं के निर्यात का आंकड़ा 8.3 अरब डॉलर रहा था, जबकि ऑस्ट्रेलिया से भारत ने 18.75 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का आयात किया था. भारतीय निर्यात में कृषि उत्पाद, वस्त्र, रेल इंजन, टेलीकॉम से जुड़ी चीजें आदि हैं, तो ऑस्ट्रेलिया से मुख्य रूप से कच्चे माल और खनन उत्पादों का आयात किया जाता है.

मुक्त व्यापार समझौते के लागू होने से और बिना शुल्क के बहुत सारी वस्तुओं के आदान-प्रदान के लिए राह खुलने से व्यापार में तीव्र बढ़ोतरी की उम्मीद जतायी जा रही है. निश्चित रूप से इस व्यापारिक समझौते का आर्थिक महत्व है, लेकिन इसे रणनीतिक और सामरिक महत्व की दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए. जब इस समझौते पर विमर्श चल रहा था, तो यह विश्लेषण किया जा रहा था कि इसके लागू होने से दीर्घकालिक अवधि में कहीं-न-कहीं चीन को नुकसान हो सकता है. चीन आज दुनिया के कई देशों का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. इसमें भारत और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं.

लेकिन जब से क्वाड (हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का साझा समूह) अस्तित्व में आया है, चीन और ऑस्ट्रेलिया के संबंध बिगड़ते चले गये. लेबर सरकार भी यह मानती है कि ऑस्ट्रेलिया को चीन पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहिए. लेकिन ऐसा अचानक कर पाना संभव नहीं है. उन्हें विकल्पों की आवश्यकता है तथा उन्होंने चीन के बरक्स भारत को अपने व्यापक संभावित व्यापार सहयोगी के रूप में चुना है.

भारत और ऑस्ट्रेलिया इस वास्तविकता को भी समझते हैं कि दोनों का सामरिक क्षेत्र समान है तथा उन्हें चीन के बढ़ते वर्चस्व का सामना करना है. इस समझौते से जहां ऑस्ट्रेलिया को चीन जैसा ही बड़ा बाजार उपलब्ध हुआ है, तो भारत के लिए अपने निर्यात बढ़ाने का अवसर मिला है. इस प्रकार यह मुक्त व्यापार समझौता दोनों देशों के लिए फायदेमंद है. समझौते को लेकर भारत के लिए कुछ चिंताएं स्वाभाविक हैं. हमारे कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जो मुक्त व्यापार के माध्यम से आने वाली वस्तुओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने में अपेक्षित रूप से सक्षम नहीं हैं. इसमें दुग्ध उत्पाद सबसे उल्लेखनीय हैं. अच्छी बात यह है कि ऑस्ट्रेलिया ने भारतीय चिंताओं पर सकारात्मक रुख अपनाया है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र को देखें, तो भारत का मुक्त व्यापार समझौता आसियान समूह से भी है, जापान और दक्षिण कोरिया से भी है. हालांकि उन देशों के साथ वस्तुओं और शुल्कों के स्तर पर ऐसा विस्तृत समझौता नहीं है, लेकिन इन सभी के साथ हमारा आयात हमारे निर्यात की तुलना में अधिक है. इससे जो व्यापार घाटा होता है, वह भारत के लिए एक गंभीर मसला है. ऑस्ट्रेलिया के साथ भी हमारा व्यापार घाटे में है.

दोनों देश यह चाहते हैं कि जल्दी ही द्विपक्षीय व्यापार को दुगुना करते हुए इसे 50 अरब डॉलर से अधिक कर दिया जाए. भारत के लिए यह प्रमुख मुद्दा रहेगा कि ऑस्ट्रेलिया समेत विभिन्न देशों के साथ वर्तमान व्यापार घाटे को किस तरह से कम किया जाए. हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं लायी गयी हैं.

आत्मनिर्भरता का एक लक्ष्य तो यह है कि हम घरेलू बाजार के उपभोग के लिए अधिक से अधिक वस्तुओं का उत्पादन करें, लेकिन उसके साथ यह भी लक्ष्य है कि हम वैश्विक बाजार के लिए भी गुणवत्तापूर्ण उत्पादन करें. इसके लिए विदेशी निवेश और कंपनियों को भी भारत में आने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. बीते वित्त वर्ष में हमारा कुल वस्तु निर्यात लगभग सवा चार सौ अरब डॉलर रहा है, जो एक रिकॉर्ड है. इन कोशिशों से हम मुक्त व्यापार समझौते के साझेदार देशों को अधिक निर्यात कर व्यापार घाटे को कम कर सकते हैं तथा वैश्विक आपूर्ति शृंखला में अहम कड़ी बन सकते हैं.

अगले वर्ष मार्च में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री के भारत दौरे से भी दोनों देशों के आपसी संबंधों को मजबूती मिलेगी. अगर हम हालिया अतीत को देखें, तो दोनों देशों के संबंध उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. उल्लेखनीय है कि अपनी विदेश नीति में ऑस्ट्रेलिया बहुत हद तक अमेरिका के रास्ते पर चलता है. जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया था, तब सबसे कड़े प्रतिबंध ऑस्ट्रेलिया ने ही लगाये थे.

पर जैसे-जैसे अमेरिका से हमारे संबंध बेहतर हुए, ऑस्ट्रेलिया से भी रिश्तों में सुधार होता गया. साल 2014 में दोनों देशों के बीच परमाणु सहयोग समझौता हुआ और 2016 में परमाणु स्थानांतरण को लेकर भी एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ. अब यह मुक्त व्यापार समझौता अस्तित्व में आया है.

ऑस्ट्रेलिया ने भारत के संदर्भ में एक घोषणा पत्र भी जारी किया है जिसमें सांस्कृतिक, तकनीकी, सामरिक और आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर बल दिया गया है. दोनों देशों के बढ़ते संबंध और सहकार इसलिए भी अहम हैं कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और स्थायित्व को लेकर दोनों देश प्रतिबद्ध हैं तथा चीन की बढ़ती चुनौतियों को लेकर सचेत हैं.

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