Year Ender 2022: स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए वर्ष 2022 कई चुनौतियों के साथ कुछ उपलब्धियां भी लेकर आया. कोविड-19 महामारी से मिले सबक की वजह से लोगों ने जहां ‘सेहत प्रथम’ के सूत्र को अपने जीवन का हिस्सा बनाना शुरू किया. वहीं, युवाओं में हृदयाघात के बढ़ते मामले ने हमें चिंतित भी किया. कोरोना के अलावा कई अन्य वायरस जैसे- मंकीपॉक्स, टोमैटो फ्लू आदि के संक्रमण ने हमें डराया. साथ ही लोग अपने मानसिक सेहत को संभालने में भी जूझते रहे. इनके साथ-साथ सेहत की दुनिया में कई उपलब्धियां भी हाथ आयीं, जैसे- कैंसर की नयी दवा, देश की पहली एमआरएनए वैक्सीन, मलेरिया के लिए प्रभावी वैक्सीन आदि. वर्षांत के मौके पर कुछ प्रमुख चुनौतियों व उपलब्धियों पर एक नजर डालते हैं, ताकि आनेवाले वर्ष में हम सतर्कता के साथ सेहतमंद जीवन का आनंद उठा सकें.
अपने देश में इस वर्ष सबसे ज्यादा चर्चा हार्ट अटैक के मामलों की हुई. दरअसल, इस वर्ष बड़ी संख्या में युवाओं में हृदयाघात व सडेन कार्डिएक अरेस्ट के मामले सामने आये. कई ऐसे वीडियो भी आये, जिनमें लोग व्यायाम करते-करते, डांस करते-करते यहां तक कि चलते-चलते लोग हार्ट अटैक के शिकार हो गये. बाहर से फिट नजर आने वाले आम से लेकर खास लोग तक, जैसे- अभिनेता सिद्धांत सूर्यवंशी, कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव, दीपेश भान, गायक केके आदि इसकी चपेट में आये. अचानक दिल का दौरा पड़ने से हो रही मौत, विशेषज्ञों के लिए बड़ी चिंता का कारण बनी हुई हैं.
विशेषज्ञ इसके लिए बदली हुई जीवनशैली, खान-पान की गलत आदत और कोविड-19 के दुष्प्रभावों को भी एक कारण के तौर पर देख रहे हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि कोरोना वायरस का संक्रमण धमनियों की आंतरिक सतहों को भी प्रभावित करता है, जिससे रक्त वाहिका में सूजन हो सकती है, इस तरह की स्थिति दिल का दौरा पड़ने का कारण बन सकती है. डीजे की तेज आवाज से भी लोगों में हृदय गति बढ़ने का खतरा हो सकता है, जो हृदयाघात की वजह बन सकती है. इसके अलावा विशेषज्ञों का मानना है कि जिम ज्वाइन करने से पहले हार्ट से रिलेटेड टेस्ट अवश्य करवा लेने चाहिए. साथ ही 35 वर्ष की आयु के बाद साल में एक बार हार्ट से संबंधित जांच जरूर करवानी चाहिए.
कोविड-19 महामारी के मामलों में इस वर्ष बड़ी गिरावट आयी. ऐसा लग ही रहा था कि अब इस महामारी से छुटकारा मिल जायेगा, तभी वर्ष के आखिरी सप्ताह में चीन में एक बार फिर से कोविड संक्रमितों के मामले में तेजी से वृद्धि दर्ज की गयी है. ऐसे में कोरोना महामारी का खतरा अब भी पूरी तरह टला नहीं है. खास बात है कि इस वर्ष कोरोना के अलावा मंकीपॉक्स (एम-पॉक्स), टोमैटो फ्लू, जापानी इंसेफेलाइटिस, निपाह वायरस आदि के प्रकोप ने भी दुनिया को अपनी चपेट में लिया. युगांडा में इबोला वायरस फिर से उभर आया.
वहीं, जीका वायरस का खौफ भी वर्ष भर लोगों को सताता रहा. टोमैटो फ्लू से खासकर अपने देश में केरल और महाराष्ट्र ज्यादा प्रभावित रहे. इन राज्यों में कुछ बच्चों की टोमैटो फ्लू से मौत भी हो गयी. वहीं, जापानी इंसेफलाइटिस ने उत्तर-पूर्वी भारत के अधिकांश हिस्सों में अपना पैर पसार लिया. इसके अलावा, अपने देश में लाखों मवेशी लंपी वायरस की चपेट में आये. राजस्थान में इसका सबसे ज्यादा प्रभाव देखने को मिला. लंपी वायरस की चपेट में आने के बाद गायों के शरीर पर दाने-दाने निकल आते हैं और ज्वर की वजह से जान तक चली जाती है.
इस वर्ष मानसिक सेहत एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभरी. आम लोगों से लेकर कई मशहूर लोगों ने मेंटल हेल्थ की समस्या के अपने अनुभवों को साझा किया. महामारी के काल में परिवार की जिम्मेदारी, जॉब खोने का भय, ऑफिस का वर्क प्रेशर आदि वजहों से लोग मानसिक तौर पर चिंतित रहे. इस दौरान आत्महत्या के कई सारे मामले भी सामने आये. यही वजह रही कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने देश में पहली ‘राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति’ की घोषणा की. इसके तहत आत्महत्या के कारण मृत्युदर को कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
केंद्र सरकार ने इस वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्तूबर) के दिन टेली-मानस पहल की भी शुरुआत की. इसके लिए 14416 या 1800-91-4416 पर कॉल करके रोगी, विशेषज्ञों की मदद ले सकते हैं. टेली-मानस मानसिक स्वास्थ्य परामर्श की पहल है, जिसमें विशेषज्ञ के साथ परामर्श प्राप्त किया जा सकता है. आमतौर पर अपने देश में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एक गलत धारणा बनी हुई है, जिससे लोग अपनी मन की परेशानियों को खुल कर साझा कर पाने में हिचकते हैं, ऐसे में टेली-मानस के माध्यम से बिना किसी परेशानी के विशेषज्ञों से सहायता ली जा सकती है.
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अमेरिका में डोस्टरलिमैव नाम की एक नयी दवा का कैंसर के 18 मरीजों पर प्रयोग सफल रहा. दरअसल, डोस्टरलिमैव दवा ने इन मरीजों में कैंसर को पूरी तरह ठीक कर दिया. आज तक कोई ऐसी दवा या तकनीक नहीं थी, जिसने कैंसर कोशिकाओं को पूरी तरह से शरीर से खत्म कर दिया हो, लेकिन डोस्टरलिमैव ने ऐसा किया. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, डोस्टरलिमैव दवा का ट्रायल 18 मरीजों पर छह महीने तक किया गया. छह महीने बाद इन सभी मरीजों में कैंसर के ट्यूमर पूरी तरह खत्म हो गये. हालांकि यह ट्रायल बहुत छोटा था, लेकिन इस दवा के असर से वैज्ञानिक काफी उत्साहित हैं.
इसी वर्ष वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) के कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र ने पहली स्वदेशी एमआरएनए वैक्सीन तकनीक की सफलता की घोषणा की. यह इसी वर्ष स्व-प्रतिकृति आरएनए पर आधारित जेनोवा बायो द्वारा विकसित किये गये एमआरएनए वैक्सीन से अलग है. पारंपरिक टीकों के मुकाबले इसे अधिक प्रभावी माना जाता है, साथ ही कम लागत में इसका विकास और उत्पादन किया जा सकता है. एमआरएनए, एक सिंगल-स्ट्रैंडेड मोलिक्यूल होता है, जिसमें डीएनए से प्राप्त जानकारी निहित होती है. यह वैक्सीन कोशिकाओं को जेनेटिक कोड प्रदान करती है, जिससे वह प्रोटीन रिलीज करती हैं. इस प्रोटीन से शरीर में प्रतिरक्षा (इम्यून रिस्पॉन्स) विकसित होने लगती है. इसी वर्ष अमेरिका में भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान ने एमआरएनए एचआइवी टीकों के लिए तीन अलग-अलग परीक्षण शुरू किये गये हैं.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस वर्ष सितंबर महीने में मलेरिया की ऐसी वैक्सीन विकसित कर ली, जो मलेरिया के वायरस के खिलाफ 80 प्रतिशत तक कारगर है. वैज्ञानिकों के अनुसार, वैक्सीन अगले वर्ष तक सबके लिए उपलब्ध हो सकती है. मलेरिया की वजह से पूरी दुनिया में हर वर्ष करीब चार लाख लोगों की मौत हो जाती है. मलेरिया को पूरी दुनिया में शिशु मृत्युदर में बढ़ोतरी की बड़ी वजह माना जाता है, लेकिन इसके लिए प्रभावी वैक्सीन बनाना बेहद चुनौती भरा साबित हो रहा था, क्योंकि मलेरिया के लिए जिम्मेदार वायरस बेहद जटिल प्रवृति वाला होता है. हालांकि, वर्ष 2021 में अफ्रीका में मलेरिया के लिए एक टीका तैयार किया गया था, लेकिन उसमें रोग से 40 प्रतिशत तक सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता है. ऐसे में यह वैक्सीन बड़ा अस्त्र साबित हो सकती है.
प्रसव काल कई तरह की भावनात्मक चुनौतियों वाला समय माना जाता है. इसी वजह से अक्सर महिलाओं में प्रसव के उपरांत डिप्रेशन की समस्या देखने को मिलती है. इस समस्या के लिए सही मायने में कोई प्रभावी उपचार नहीं था. अभी तक डिप्रेशन के इस रूप का इलाज हॉर्मोन थेरेपी से किया जाता था, जिससे शरीर में कई अन्य जटिलताएं हो सकती हैं. ऐसे में इस वर्ष अमेरिका के एरिजोना विश्वविद्यालय के रेड्डी रिसर्च ग्रुप के शोधकर्ताओं ने न्यूरोस्टेरॉइड्स पर आधारित प्रसवोत्तर अवसाद के लिए एक नया उपचार खोजा है. उपचार का यह रूप हॉर्मोन के माध्यम से पूरे शरीर के संतुलन को बाधित नहीं करेगा, बल्कि केवल महिला के मस्तिष्क के उन क्षेत्रों को प्रभावित करेगा, जो सीधे तौर इस अवसाद से निकलने में उनकी मदद करेगा. आमतौर पर प्रसव के बाद पहले दो से तीन दिनों के भीतर ही इस तरह के अनुभव होने शुरू हो सकते हैं. कुछ महिलाओं में ऐसी दिक्कतें लंबे समय तक भी बनी रह सकती हैं.
इस वर्ष के आखिर में एक ऐसी रिपोर्ट आयी, जिसे जानकर अधिकांश लोग आश्चर्य में पड़ गये. दरअसल, कुछ साधारण बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया ने अपने देश में वर्ष 2019 में 6.8 लाख लोगों की जान ले ली. इस खबर को जानकर पता चला कि जिस बैक्टीरियल इंफेक्शन को हम एकदम साधारण संक्रमण मानते थे, वह साइलेंट किलर निकला. यह चौंकाने वाला खुलासा इसी वर्ष लैंसेट पत्रिका में हुआ. जानलेवा साबित हुए पांच बैक्टीरिया ई कोलाई, एस न्युमोनी, के न्युमोनी, एस ओरेयस और ए बौमान्नी हैं. रिसर्च के अनुसार, दुनियाभर में मरने वाले हर आठ व्यक्ति में से एक की जान बैक्टीरिया के कारण गयी.
नये वर्ष में इससे बचने के लिए जरूरी है कि अपने हाथों को साफ रखें. जब भी जरूरी हो हाथों को धोएं. इसके अलावा, कच्चे मांस को फलों और सब्जियों से दूर रखें, इन्हें अच्छी तरह धोने के बाद ही इस्तेमाल करें.
प्रस्तुति : विवेकानंद सिंह
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.