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धुमकुड़िया 2022: ‘मदैत’ और आदिवासी समाज में महिलाओं की स्थिति पर हुई चर्चा, दो दिवसीय कार्यक्रम संपन्न

दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में शोद्यार्थी डॉ. दीपक मांझी ने घुमन्तु जनजाति बहेलिया समुदाय के पारम्परिक चिकित्सा ज्ञान के बारे में विस्तृत जानकारी दी और उसके दस्तावेजीकरण पर जोर दिया. युवा शोधार्थी आशीष उराँव ने वर्तमान समय में 'मदैत' की सार्थकता पर प्रकाश डाले और अपने लेख प्रस्तुत किये.

आदिवासियों के वार्षिक गोष्ठी धुमकुड़िया 2022 के दो दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन का आगाज शनिवार 24 दिसंबर को 2022 को हुआ. इस बार इस पारम्परिक गोष्ठी का शुभारम्भ ऑनलाइन किया गया. इस महोत्सव के पहले दिन विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक, युवा शोद्यार्थी, समाज सेवी, और सामाजिक कार्यकर्ता सम्मिलित हुए. इस कार्यक्रम में आदिवासी समाज की वर्तमान दशा और दिशा पर गंभीर विचार विमर्श किया गया.

‘मदैत’ ‘धुमकुड़िया’ और ‘सेंदरा’ पर रखे विचार

दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में शोद्यार्थी डॉ. दीपक मांझी ने घुमन्तु जनजाति बहेलिया समुदाय के पारम्परिक चिकित्सा ज्ञान के बारे में विस्तृत जानकारी दी और उसके दस्तावेजीकरण पर जोर दिया. युवा शोधार्थी आशीष उराँव ने वर्तमान समय में ‘मदैत’ (गांव में मदद करने की एक परंपरा जो सादियों से चली आ रही है) की सार्थकता पर प्रकाश डाले और अपने लेख प्रस्तुत किये. बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से युवा शोधार्थी शुचिस्मृति बाखला ने ‘धुमकुड़िया’ और ‘सेंदरा’ की परंपरा पर अपने लेख पढ़े. पहले सत्र की अध्यक्षता जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में प्राध्यापक डा. गोमती बोदरा ने की. उन्होंने शोधकर्ताओं की आलोचनात्मक समझ की सराहना की.

आदिवासी समाज में महिलाओं की स्थिति

द्वितीय सत्र में आई.आई. टी. जोधपुर के प्राध्यापक डा. गणेश मांझी ने ऐतिहासिक रूप से हुए अन्याय के बदले हजारों साल बाद माफ़ी मांगने या हर्जाना भुगतान की सार्थकता पर आदिवासीय विश्लेषण पर बातें रखी. डा. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ के शोधार्थी अरबिंद भगत ने आदिवासी समाज में स्त्री उत्तराधिकार और लिंग समानता के प्रश्न पर अपने विचार रखे. आई.आई. टी. ग्रेजुएट अभिषेक बिलकन आइंद ने लिपि के वैश्विक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ ही मुंडा लिपि की जरुरत पर अपनी बात रखी.

‘उराँव सृजन कथा’ पर विस्तृत जानकारी

युवा शोधार्थी श्रेय समर्पण खलखो ने ‘खोदा’ (टैटू) के पारम्परिक और ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डाला. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की युवा शोधार्थी अंजू उराँव ने ‘उराँव सृजन कथा’ पर विस्तृत जानकारी दिया. सिमडेगा से युवा चित्रकार दीपक मांझी ने अपने पेंसिल स्केच और वाटर कलर में रंगे गोंडी और पारम्परिक चित्रों को प्रस्तुत किया. इस सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक डा. आयेशा गौतम उराँव ने किया और आदिवासी समाज में उभर रहे ज्वलंत मुद्दों से सम्बंधित दर्शन पर प्रकाश डाला. मिशेल फूको के प्रभुत्व के दर्शन के अनुसार लिखे गए इतिहास का कटाक्ष और आदिवासी इतिहास के विकल्प पर प्रकाश डाला.

‘मैंने उन्हें देखा दिकु बनते हुए’

अंतिम सत्र में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें अरबिंद भगत ने दो कविताएँ — ‘मैंने उन्हें देखा दिकु बनते हुए’, और ‘मैंने देखा पेड़ को लाश बनते हुए” का कविता पाठ किया. शुचि स्मृति बाखला ने ‘औरत’ शीर्षक नामक कविता का कविता पाठ किया. अंत में श्रेय समर्पण खलखो ने ‘प्रकृति और जीवन’ पर कविता पाठ किया. काव्य पाठ सत्र की अध्यक्षता झारखण्ड रत्न से सम्मानित प्रख्यात कवि महादेव टोप्पो ने किया, साथ ही युवा कवियों और कवयित्रियों को महत्वपूर्ण सुझाव दिए. पहले दिन के धुमकुड़िया-2022 के वैचारिक गोष्ठी के सञ्चालन में डा. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में प्राध्यापक मंजरी राज उराँव, अजीम प्रेम जी विश्वविद्यालय ग्रेजुएट प्रवीण उराँव, सेंट पाल्स कॉलेज के छात्र आशीष उराँव की महत्वपूर्ण भूमिका रही.

हर गांव में हो धुमकुड़िया का निर्माण

धुमकुड़िया-2022 के बौद्धिक परिचर्चा के दूसरे दिन की शुरुआत राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के अध्यक्ष श्री संजय कुजूर जी ने हर गांव में धुमकुड़िया निर्माण और सांस्कृतिक अभ्यास के साथ-साथ पुस्तकालय की स्थापना पर अपनी बात रखी. तत्पश्चात, अधिवक्ता निशी कच्छप सरना धरम के संविधानिक पहचान के साथ-साथ क़ानूनी शिक्षा और अवसर के बारे में बताया. साथ ही डिप्टी कलेक्टर दीपा खलखो ने परम्पराओं के क्षरण और उसके संरक्षण की जरुरत पर बल दिया.

प्रख्यात कवि महादेव टोप्पो ने रखे विचार

इस परिचर्चा में डा. पार्वती तिर्की, प्रख्यात कवि महादेव टोप्पो ने भी अपनी बातें रखी. बिशुनपुर विधायक चमरा लिंडा जी ने आदिवासी समाज में शिक्षा, परंपरा और प्रशासनिक व्यवस्था — यथा, धुमकुड़िया, पड़हा को मजबूती प्रदान करने पर बल दिया.

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राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा ने किया था आयोजन 

बता दें कि धुमकुड़िया-2022 का आयोजन ‘राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा, रांची महानगर’ ने किया. इस कार्यक्रम को सफल बनाने में पंकज भगत, कृष्णा धर्मेस लकड़ा, ब्रजकिशोर बेदिया, कुणाल उराँव, प्रतीत कच्छप, संजीत कुजूर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 25 दिसंबर धुमकुड़िया-2022 का संचालन संगीता तिग्गा, निरन उराँव, प्रतिमा तिग्गा, श्वेता उराँव, स्नेहा उराँव, रौनक उरांव, अरुण उरांव, दीपिका खलखो, वर्षा उराँव ने किया. वैचारिक बात-चीत के साथ-साथ विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, धुमकुड़िया बेजांग, धुमकुड़िया कोट्टाम, हाई स्कूल टोटो, धुमकुड़िया डिबडीह का बेहतरीन प्रदर्शन रहा.

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