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भागलपुर में शहीद का अपमान: गोरे कलक्टर याद रहे, मगर भूल गये हम मांझी को, जानें पूरी बात

करीब तीन महीने पहले देश ने आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनायी. इससे पहले एक साल से देश भर में आजादी का अमृत महोत्सव को लेकर कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू हुआ. प्रभात खबर ने गुमनाम क्रांतिवीरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की. लेकिन जब भागलपुर पर नजर जाती है, तो तकलीफ देनेवाली तस्वीर झलकती है.

संजीव कुमार झा, भागलपुर:

करीब तीन महीने पहले देश ने आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनायी. इससे पहले एक साल से देश भर में आजादी का अमृत महोत्सव को लेकर कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू हुआ. प्रभात खबर ने गुमनाम क्रांतिवीरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की. लेकिन जब भागलपुर पर नजर जाती है, तो तकलीफ देनेवाली तस्वीर झलकती है. गुलामी के प्रतीक को सजाया-संवारा जाता है और आजादी के प्रतीक के लिए पहल नहीं होती. यहां ब्रिटिश शासनकाल में हुकूमत चलानेवाले गोरे अंग्रेज के स्मारक स्थल को पर्यटन स्थल जैसा विकसित करने में ताकत झोंक दी जाती है, लेकिन ठीक उसके सामने अपने देश की आजादी के लिए लड़ते-लड़ते अपनी जान गंवा देनेवाले सेनानी भुला दिये जाते हैं.

शहर को स्मार्ट बनाने का यह कैसा फॉर्मूला

भारत की गुलामी के दौरान भागलपुर के दूसरे अंग्रेज कलक्टर रहे ऑगस्टस क्लीवलैंड को भागलपुर की स्मार्ट सिटी कंपनी ने इस कदर याद रखा है कि उसके मेमोरियल कैंपस को दर्शनीय स्थल बना दिया है. वहीं इस कैंपस के सामने स्थित चौराहे पर देश की आजादी में अपनी जान कुर्बान कर देनेवाले क्रांतिकारी तिलकामांझी इस स्मार्ट सिटी कंपनी को याद नहीं रहे. इसका असर यह हुआ है कि क्लीवलैंड मेमोरियल परिसर को देखने और यहां कुछ पल गुजारने के लिए अब छोटे-छोटे बच्चे भी जाने लगे हैं और दूसरी तरफ आजादी के वीर सपूत की प्रतिमा धूल फांक रही है.

इस तरह भव्य दिखता है क्लीवलैंड मेमोरियल

क्लीवलैंड मेमोरियल जाने के दो रास्ते तिलकामांझी चौक तरफ से और दूसरा सैंडिस कंपाउंड में प्रवेश करने के बाद. दोनों तरफ भव्य द्वार बनाया गया है. इस कैंपस में क्लीवलैंड का विशाल मंदिरनुमा स्मारक है. स्मारक के सामने फाउंटेन, उसकी खूबसूरत घेराबंदी, पार्क में बच्चों के झूले, कई बेंच, रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था की गयी है. कतारों में ऑरनामेंटल पेड़-पौधे लगे हैं. वाशरूम की भी बेहतर व्यवस्था है.

तिलकामांझी की कमान की मसक चुकी है डोरी

तिलकामांझी चौक के बीचोबीच महान क्रांतिकारी तिलकामांझी की प्रतिमा स्थापित है. उनकी प्रतिमा के हाथ में कमान की डोरी टूटी हुई है. प्रतिमा की घेराबंदी की जंजीर और पीलर भी टूटे हुए हैं. टाइल्स टूट गयी है. प्रतिमा के ऊपर छतरी नहीं होने से इस पर पक्षी गंदा फैलाते रहते हैं. प्रतिमा पर धूल जमी रहती है. इसकी सफाई भी गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, जयंती या पुण्यतिथि पर होती है.

कौन हैं तिलकामांझी

तिलकामांझी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे. महाश्वेता देवी ने भी अपने लघुकथा-संग्रह में उनका देश के प्रति योगदान का उल्लेख किया है. उन्हीं के नाम पर भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम बद में तिलकामांझी भागलपुर विवि किया गया.

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