1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता की पहचान का मुद्दा सदन में एकबार फिर गरमाया़ शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन शुक्रवार को 1932 खतियान पर सरकार के जवाब से असंतुष्ट विपक्षी भाजपा विधायकों ने हंगामा किया. विपक्षी विधायक वेल में घुसे. पिछले दिनों भाजपा विधायक अमित मंडल ने सवाल किया था कि विधि-विभाग ने 1932 के खतियान को लेकर आपत्ति जतायी थी. इसके बाद भी सदन में इसे पास कराया गया.
इसी सवाल के जवाब में मंत्री आलमगीर आलम ने सदन को बताया कि 1932 का खतियान आधारित स्थानीय नीति सदन से पारित कर संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने का प्रस्ताव पास कराया गया है. इसे राज्यपाल को भेज दिया गया है. विधि विभाग की जो भी शंका थी, उसे दूर करके ही भेजा गया है.
अब यह काम केंद्र को करना है. उन्होंने कहा कि विधि विभाग ने कहा है कि संसद के पास अधिकार है. लोक नियोजन में समानता संसद का विषय है. केंद्र सरकार द्वारा नौवीं अनुसूची में शामिल करने के बाद यह लागू हो जायेगा. इस मुद्दे पर भाजपा के विधायक सवाल पूछना चाह रहे थे. सदन में चर्चा कराने की मांग कर रहे थे.
स्पीकर रबींद्रनाथ महतो का कहना था कि सरकार की ओर से जवाब दे दिया गया है. अब इस विषय पर चर्चा नहीं करा सकते हैं. इसके बाद भाजपा के विधायक वेल में चले गये. सरकार के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. विधायकों का कहना था कि सरकार ने भ्रम पैदा किया है.
स्थानीयता से संबंधित विधेयक में यह जोड़ कर पारित कराया गया है कि पहचाने गये स्थानीय व्यक्ति ही राज्य सरकार में वर्ग-3 और वर्ग-4 के पदों के विरुद्ध नियुक्ति के लिए पात्र होंगे.
विधेयक में उपरोक्त संशोधन की समीक्षा के क्रम में विधि विभाग द्वारा यह अंकित किया गया है कि अनुच्छेद-16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता की व्याख्या करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि उपरोक्त प्रावधान लोक नियोजन में प्रतिबंधित है तथा ऐसा करना केवल संसद के अधिकार में है.
स्थानीयता से संबंधित एवं आरक्षण में संशोधन से संबंधित दोनों ही विधेयकों को संविधान के नौवीं अनुसूची में शामिल करने के बाद इसे लागू किये जाने का प्रस्ताव है. इसी क्रम में इन दोनों विधेयकों एवं प्रस्तावों को संसद से पारित कराना आवश्यक होगा.
नौवीं अनुसूची में शामिल विधेयकों को न्यायिक समीक्षा से संरक्षण प्राप्त है. वैसे तो 1973 के बाद शामिल किये गये विधेयकों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है, परंतु उनमें भी मात्र संविधान के मूल ढांचे जैसे संसदीय लोकतंत्र, संघवाद, धर्मनिरपेक्षता में उल्लंघन और अनुच्छेद 14, 19 तथा 21 में प्रदान किये गये अधिकारों के उल्लंघन तक ही यह न्यायिक समीक्षा सीमित रहेगी. वर्तमान में नौवीं अनुसूची में 284 कानून शामिल हैं, जिन्हें यह सुरक्षा कवच प्राप्त है.
उपरोक्त दोनों ही विधेयकों का संबंध संविधान के अनुच्छेद 16 से है एवं संविधान विशेषज्ञों के अनुसार नौवीं अनुसूची में इसे शामिल कर दिये जाने से दोनों विधेयकों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकेगी़
तमिलनाडु के द्वारा वर्ष 1993 में इसी प्रकार का विधेयक वहां की विधानसभा से पारित कराया गया एवं उसे नौवीं अनुसूची में शामिल कराया गया, जिसके कारण तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जाता है.
नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए इन विधेयकों को संसद से भी पारित करते हुए 9वीं अनुसूची में शामिल करने की कार्रवाई की जायेगी.
भाजपा विधायकों ने शीतकालीन सत्र के पांचवें व अंतिम दिन विधानसभा के मुख्य द्वार पर जम कर नारेबाजी की और प्रदर्शन किया. बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा कि राज्य सरकार में सिर्फ एक परिवार और उस परिवार से जुड़े लोगों का ही विकास हो रहा है. भ्रष्टाचार में सरकार आकंठ डूबी हुई है. ऐसे में सरकार को सदन चलाने का अधिकार नहीं है.
भाजपा विधायक मनीष जायसवाल ने कहा कि रोजगार का झांसा देकर हेमंत सरकार बनी लेकिन तीन वर्षों में झारखंड के युवाओं को रोजगार नहीं मिला. कहा कि पहले से जिसे रोजगार मिला था उसे भी इस सरकार ने छीनने का काम किया. पोषण सखी का मामला सबके सामने हैं. इसी तरह से गलत नियोजन नीति बनाकर इस सरकार ने युवाओं को ठगने का काम किया है.
विधायक नीरा यादव ने कहा कि झारखंड में बहु-बेटियां सुरक्षित नहीं है. जब यह मामला उठाया जाता है, तो मुख्यमंत्री का बयान आता है कि कहां नहीं होती है ऐसी घटनाएं. मुख्यमंत्री का यह बयान उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है.