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शराबबंदी के बावजूद बिहार में मौत पर बवाल, जानें बिहार और गुजरात मॉडल में क्या है अंतर…

गुजरात में भी शराबबंदी है. लेकिन, वहां सिविल अस्पताल से हेल्थ परमिट लेकर 40 से 50 साल की उम्र वाले मरीजों को महीने में 3 यूनिट तथा 50 से 65 साल वाले मरीजों को महीने में चार यूनिट शराब का सेवन करने की अनुमति मिलती है.

राजेश कुमार ओझा

बिहार के छपरा में जहरीली शराब पीने से 80 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. कई अभी भी गंभीर हालत में विभन्न अस्पताल में भर्ती हैं.इस घटना के बाद बिहार में शराब बंदी को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. विपक्ष बिहार में भी गुजरात की तर्ज पर शराब बंदी की मांग कर रहा है. इधर, जहरीली शराब प्रकरण की जांच करने एनएचआरसी की टीम के पटना पहुंचते ही बिहार में सियासी कोहराम मच गया है. सरकार ने इसके दौरे पर सवाल खड़ा किया है. महागठबंधन के साथ साथ आप, शिवसेना सेना समेत कई बड़ी राजनीतिक दलों का भी बिहार में नीतीश सरकार को समर्थन मिला है. बहरहाल आइए जानते हैं गुजरात और बिहार में शराबबंदी में क्या अंतर है…

क्या है गुजरात मॉडल

बिहार में जहरीली शराब से मौत के बाद बीजेपी बिहार में भी गुजरात मॉडल पर शराबबंदी की मांग कर रही है. नेता प्रतिपक्ष ने सदन में छपरा में जहरीली शराब से मौत के बाद कहा कि बिहार में पूरी तरह से शराबबंदी विफल हो गई है. नीतीश सरकार को गुजरात की तर्ज पर बिहार में शराबबंदी करनी चाहिए.दरअसल, गुजरात में वर्ष 1960 से शराबबंदी है. 1960 गुजरात जब महाराष्ट्र से अलग होकर नया प्रदेश बना था. तब से ही प्रदेश में शराबबंदी लागू है. इसके बावजूद गुजरात में ग़ैरक़ानूनी ढंग से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दीव और दमन से शराब आती है. गुजरात में भी शराब से कई लोगों की जानें गई है.साल 2008 में हुई एक बड़ी दुर्घटना में शराब पीने से 150 लोग मारे गए थे. एक आंकड़े के अनुसार गुजरात में ग़ैरक़ानूनी तरीके से ज़हरीली शराब पीने से अब तक 3,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.साल 2008 की घटना के बाद गुजरात सरकार ने क़ानून में संशोधन किया और ज़हरीली शराब से मौत होने पर दोषियों के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया. इसके साथ ही स्वास्थ्य कारण बताकर सूबे में शराब पीने का परमिट की व्यवस्था किया गया. जिसे हेल्थ परमिट कहते हैं. इसके तहत आप गुजरात में शराब पी भी सकते हैं और पिला भी सकते हैं. दरअसल, गुजरात में यह परमिट हेल्थ डिपार्टमेंट देती है.स्वास्थ्य का हवाला देकर कंट्री मेड फॉरेन लिकर (देश में बनी विदेशी शराब) आप पी सकते हैं. इसके साथ ही गुजरात में यह भी व्यवस्था है कि वहां पर बाहर से आए पर्यटक शराब पी सकते हैं.

गुजरात में हेल्थ परमिट कैसे बनते हैं

गुजरात में शराब के लिए हेल्थ परमिट लेने के लिए कुछ नियम है. जिसके अनुसार हेल्थ परमिट बनता है. हेल्थ परमिट उसका ही बन सकता है कि चाहिए जिसकी उम्र कम से कम 40 वर्ष हो और उसकी महीने की कमाई कम से कम 25 हजार होनी चाहिए. जो लोग ये दोनों शर्तों को पूरा करते हैं उनका सिविल अस्पताल से चेक करवाने के ही परमिट मिलने की कार्यवाही शुरू होती है. यदि सिविल अस्पताल इस हेल्थ परमिट की सिफ़ारिश की जाती है तो भी उम्र के अनुसार उन्हें शराब की यूनिट लेने की अनुमति मिलती है. जिसमें 40 से 50 साल की उम्र वाले मरीजों को महीने में 3 यूनिट तथा 50 से 65 साल वाले मरीजों को महीने में चार यूनिट की शराब का सेवन करने की अनुमति मिलती है. हालांकि इसमें भी शर्त होती है वह शराब प्रमाणित वेंडर्स के पास से ही खरीद सकते है.

बिहार मद्य निषेध और उत्पाद संशोधन विधेयक 2022

शराबबंदी कानून संशोधन विधेयक 2022 के अनुसार बिहार में पियक्कड़ों को बहुत छूट दी गई है. नए कानून के अनुसार पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने पर मजिस्ट्रेट द्वारा केवल जुर्माना लगाकर छोड़ने का प्रावधान है.आरोपी अगर जुर्माना नहीं भर पाया तो ऐसी स्थिति में उसे एक महीने की जेल हो सकती है.लेकिन वो अगर बार-बार पकड़ा जाता है तो उसे जेल और जुर्माना दोनों होगा.राज्य सरकार उसके जुर्माने की राशि तय करेगी. पुलिस को मजिस्ट्रेट के सामने जब्त सामान पेश नहीं करेंगे. पुलिस चाहे तो इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पेश कर सकती हैं. नमूना सुरक्षित रखकर जब्त सामान को नष्ट कर दिया जायेगा. इसके लिए परिवहन की चुनौती और भूभाग की समस्या दिखाना होगा. लेकिन उन्हें अब डीएम के आदेश तक जब्त वस्तुओं को सुरक्षित रखना जरूरी नहीं होगा.इस मामले की सुनवाई एक साल के अंदर पूरी करनी होगी. बता दें कि शराबबंदी कानून संशोधन विधेयक 2022 में दंडनीय सभी अपराध धारा 35 के अधीन अपराधों को छोड़कर सुनवाई स्पेशल कोर्ट द्वारा की जाएगी.

नियमावली पर सवाल

गोपालगंज के बाद छपरा में जहरीली शराब से हुई सात दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत पर विपक्ष ने जब नीतीश कुमार पर दबाव बनाया तो उन्होंने मुआवजा देने के बदले साफ कहा कि जो पियेगा,वह मरेगा. हम एक पैसा नहीं देने वाले हैं.विपक्ष का कहना है कि नीतीश कुमार का यह बयान उनकी अपनी नियमावली पर ही सवाल खड़ा करता है.शराब को लेकर जो नियमावली है उसमें 100 प्वाइंट है.इसमें दूसरा प्वाइंट कहता है कि ‘शराब खरीद के पीने वालों की मौत पर सरकार चार लाख रुपये मुआवजा देगी.सरकार मुआवजा की राशि शराब बेचने वालों से वसूलेगी.इसी नियमावली के तहत पिछले दिनों बिहार के ही गोपालगंज के खजूरबनी में जहरीली शराब से 19 लोगों की मौत पर चार लाख रूपया मुआवजा दिया था. लेकिन, छपरा में सरकार मुआवजा की राशि देन से इंकार कर रही है.विपक्ष इसपर ही हमलावर है. बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने नीतीश कुमार के फैसले पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि नीतीश कुमार मुआवजा देने से मना नहीं कर सकती हैं.उन्होंने कहा कि बिहार उत्पाद अधिनियम 2016 की धारा 42 में 4 लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान है.हालांकि नीतीश कुमार इसका खंडन करते हैं.उनका कहना है कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.इधर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने साफ कहा कि हर हाल में नीतीश कुमार को मुआवजा देना पड़ेगा.सरकार को अपना समर्थन दे रही हम पार्टी के प्रमुख जीतन राम मांझी ने भी इस मामले पर नीतीश कुमार का साथ छोड़कर पीड़ित परिवार को चार लाख रुपया मुआवजा देने की मांग किया है.

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