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बिहार के इस गणेश मंदिर में आराधना कर मनाए नए साल का जश्न, राजा हरिश्चंद्र के बेटे ने करवाया था निर्माण

Bihar News: रोहतासगढ़ दुर्ग त्रेतायुग का है और इसे अयोध्या के महाराजा त्रिशंकु के पौत्र और सत्यवादी सम्राट महाराजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने बनवाया था. जैसे महाराजा भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा, वैसे ही महाराजा रोहिताश्व के नाम पर ही जिले का नाम रोहतास पड़ा है.

रोहतास: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वाराछ संरक्षित इमारतों की कितनी दुर्दशा है, यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है. बिहार के रोहतास में भी एक अति प्राचीन किला है जिसका नाम है रोहतासगढ़ का किला, जो देख-रेख के अभाव जर्जर होता रहा है. राजा मान सिंह के काल में अपने वैभव पर रहा यह दुर्ग वर्तमान समय में अपने अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है.

त्रेतायुग का है दुर्ग

कहा जाता है कि यह रोहतासगढ़ दुर्ग त्रेतायुग का है और इसे अयोध्या के महाराजा त्रिशंकु के पौत्र और सत्यवादी सम्राट महाराजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने बनवाया था. जैसे महाराजा भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा, वैसे ही महाराजा रोहिताश्व के नाम पर ही जिले का नाम रोहतास पड़ा है. इस किले का वर्णन कई प्राचीन हरिवंश पुराण एवं ब्रह्मांड पुराण सहित कई शास्त्रों एवं पुराणों में है. लाखों वर्ष बितने के बाद इसके प्रमाण आज मौजूद नहीं है, लेकिन दुर्ग से संबंधित सबसे पुराना ऐतिहासिक ऐतिहासिक अभिलेख एक शिलालेख है, जो 7वीं शताब्दी का है. इस अभिलेख के अनुसार,उस समय रोहतास पर महाराजा शशांक देव गौड़ का शासन था.

यहीं हुआ था भगवान विष्णु का वामन अवतार

वाल्मीकि रामायण के बालकांड में कहा गया है कि सिद्धाश्रम कैमूर की तलहटी में स्थित सहसराम में था. यहां पर भगवान विष्णु ने एक हजार वर्ष तक तपस्या की थी. इसी धरती पर महर्षि कश्यप और पत्नी अदिति के गर्भ से वामन अवतार हुआ था.

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दुर्ग पर चढ़ाई करने में लगता है दो से अधिक घंटे का समय

बता दें कि विंध्य पर्वत श्रृंखला की कैमूर पहाड़ी पर रोहतासगढ़ दुर्ग स्थित है. यह समुद्र तल से लगभग 1500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस दुर्ग पर चढ़ाई करने में डेढ़ से दो घंटे का समय लगता है. 28 वर्गमील क्षेत्र में फैले इस दुर्ग में 83 दरवाजे हैं. रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है. 28 वर्गमील क्षेत्र में फैले इस दुर्ग के कुल 83 दरवाजों में मुख्य चारा हैं. इनके नाम हैं.

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1.घोड़ाघाट

2. राजघाट

3.कठौतिया घाट

4.मेढ़ा घाट

चारों प्रवेश द्वार बता रहा अपनी भव्यता

इन चारों प्रवेश द्वारों पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग अद्भुत हैं। यह किसी के भी मन को मोह लेने में सक्षम हैं. दुर्ग महल में रंगमहल , शीश महल. पंच महल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, राजा मान सिंह की कचहरी सहित कई इमारतें आज भी बुलंदी से इतिहास को बताते हुए सीना चौड़ा किया खड़ा है. परिसर में कई और भव्य इमारतें भी हैं. जिनकी भव्यता देखकर यह साफ तौर पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब यह दुर्ग आबाद रहा होगा, तो इसकी शान-ओ-शौकत कैसी रही होगी.

मंदिर में आदिकाल से स्थित है रोहितेश्वर महादेव का मंदिर

इस अति भव्य दुर्ग के उत्तर पूर्व में लगभग एक मील की दूरी पर दो मंदिरों का खंडहर है. यहां 28 फीट के एक विशाल शिलाखंड पर भगवान रोहतेश्वर महादेव का मंदिर. यह मंदिर देवों के देव महादेव को समर्पित है. माना जाता है कि यह मंदिर राजा हरिश्चंद्र के समय में अस्तित्व में है. जानकार यह भी कहते हैं कि रोहिताश्व इस मंदिर में अपने पूरे परिवार के साथ विधि-विधान से महादेव की पूजा-अर्चना किया करते थे.

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इस मंदिर में शिखर नहीं है. इसमें एक मुख्य भवन और 84 सीढ़ियां बची हैं. इसके पुख्ता प्रमाण नहीं हैं कि मंदिर किन वजहों से नष्ट हुआ है. हालांकि 625 ई. में बंगाल के राजा शशांक देव गौड़ द्वारा मंदिर के जीर्णोद्वार कराने का प्रमाण इतिहास में मिलता है. इन सीढ़ियों के कारण इस मंदिर को चौरासन मंदिर भी कहा जाता है. इसके अलावा, इसे रोहितासन मंदिर भी कहा जाता है. सावन के महीने के आलावे यहां नये साल पर पूजा करने के लिए यहां भारी भीड़ लगती है. दूर-दराज के इलाकों से लोग यहां जल चढ़ाने के लिए आते हैं.

शिलाखंड के पास स्थित है भगवान गणेश का मंदिर

इस मंदिर के पास कई अन्य देवी-देवताओं के मंदिर है. जिसमें राजा मान सिंह के बनवाए महल के करीब आधे किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा में भगवान गणेश का खूबसूरत मंदिर है. इस मंदिर को राजपूताना शैली में बनवाया गया है. मंदिर की सबसे खास बात यह है इस मंदिर में भगवान शिव के वाहक नंदी से लेकर मां पार्वती और उनके दोनो पुत्र गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमाएं मौजूद है. जहां मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है तो ऊपर मध्य में गणेश की छोटी सी प्रतिमा. इसके अलावे मंदिर के बाहर कार्तिकेय और नंदी के स्थान और बगल में मां पार्वती का पवित्र मंदिर की. धर्म के जानकार बताते हैं कि इस अति प्राचीन मंदिर में दर्शन-पूजन करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ पहुंचती है. यहां भक्तों को शिव परिवार के साथ कई देवी-देवताओं का एक साथ पूजन करने का सौभाग्य मिलता है.

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