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बाइस्कोप से लेकर गाड़ी की सवारी तक, जानें क्यों पटना के सरस में शाम बिताने का है खास

बिहार सरस मेला के शुरुआत हुए कुछ ही दिन बीते हैं लेकिन मेले में लगे स्टॉल्स में लोगों की भीड़ दिखने लगी है. आधुनिकता के इस दौर में युवाओं के बीच ग्रामीण शिल्प एवं हस्तकला का क्रेज देखने को मिल रहा हैं. ग्रामीण उद्यमियों द्वारा निर्मित उत्पाद पहली पसंद बनी हुई हैं.

बिहार सरस मेला के शुरुआत हुए कुछ ही दिन बीते हैं लेकिन मेले में लगे स्टॉल्स में लोगों की भीड़ दिखने लगी है.आधुनिकता के इस दौर में युवाओं के बीच ग्रामीण शिल्प एवं हस्तकला का क्रेज देखने को मिल रहा हैं. आज का युवा वर्ग के लिए अपने घर के साज-सज्जा के लिए ग्रामीण उद्धमियों द्वारा निर्मित उत्पाद उनकी पहली पसंद बने हुए हैं और यही वजह है कि मेला में खरीद-बिक्री का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है. सिर्फ चार दिनों में खरीद-बिक्री का आंकड़ा 3 करोड़ 29 लाख रुपये रहा . रविवार 18 दिसंबर को 1 करोड़ 68 लाख के उत्पादों एवं व्यंजनों की खरीद-बिक्री हुई. वहीं सवा लाख से ज्यादा लोग भी आये. सोमवार को यह सिलसिला जारी रहा. कोई बाइस्कोप के जरिये बिहार के मशहूर जगहों का भ्रमण कर रहा था तो बच्चे फन जोन में अपने पसंद के झूलो और गाड़ी की सवारी कर रहे थे. पालना घर में भी बच्चों का खास ख्याल रखा जा रहा था.

विभिन्न आयोजनों ने बांधा समा

सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत महिला एवं बाल विकास निगम के सहयोग से विद्या केंद्र के कलाकारों द्वारा “दहेज से करो परहेज” लघु नाटक की प्रस्तुति की गयी. इसके बाद मुस्कान सांस्कृतिक मंच की ओर से लोक गीत की प्रस्तुति हुई. कमलेश कुमार देव और लाडली पांडे ने अपने गीतों से शमा बांधा. “कहवां के पियर माटी कहंवा के कुदाल हो” जैसे गीतों ने खरमास में शादी व्याह के मौसम की याद ताजा कर दी. वाद्य यंत्रो पर अनुज, काली राज और राजन ने सुमधुर संगीत से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया. सेमिनार हॉल में “सहकारी समितियों और सहकारिता के महत्व” पर चर्चा हुई. इस कार्यक्रम इस सेमिनार में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की श्वेता कुजूर और डीएनए के राजेश कुमार ने दर्शकों को सहकारिता के विभिन्न आयामों के बारे में भी बताया गया. इस दौरान जीविका के डॉ ऋतेश कुमार, परियोजना प्रबंधक, जीविका ने जीविका के संकुल स्तरीय संघ के निबंधन के विषय में बताया.

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