पटना. अरे द्वारपालों, चर्चा है चर्चा है, नून रोटी खायेंगे भइया को ही जितायेंगे… ठीक है, जैसे कई फिल्मी और भोजपुरी गानों की धुन पर नगर निगम चुनाव में प्रचार जोरों पर है. अलग- अलग तरीके से मतदाताओं को लुभाने की कोशिश तेज है. फिल्मी, भजन और लोकगीतों की धूम मची है. सुबह से शाम तक हर मुहल्ले, चौक-चौराहे पर चुनाव पर आधारित गाने की गूंज सुनाई दे रहे हैं. हर उम्मीदवार अपने-अपने बजट के अनुसार लोकलुभावन गाने बनवा कर प्रचार करने में लगे हैं.
अरे द्वारपालों, चर्चा है चर्चा है, टिंकू जिया , लाली पॉप लागे लू.. ठीक, खेला तो हो के रहेगा … गानों की चुनाव प्रचार में धूम है. इसमें भोजपुरी कलाकार खेसारी लाल की प्रसिद्ध गाना ठीक है, नून रोटी खायेंगे भइया को ही जीतायेंगे, सपना चौधरी का तेरी आंख का काजल… पद्मश्री शारदा सिन्हा का हरदिया- हरदिया की गूंज हर ओर गूंज रही है. साथ ही इसके अलावा चुनाव में देशभक्ति गीतों धूम मची है. इनमें जहां डाल, डाल पर सोने की …ये वतन दिल दिया है जान की देंगे… छोड़ो कल की बात.. साथी हाथ बढ़ाना, कोई नहीं है भाता जब … बल से न छल से जीतेंगे ईमानदारी से ….
चुनावी गाना गाने वाले दर्जनों कलाकर हैं, जो इस वक्त रिकार्डिंग और एक से बढ़कर एक गाने को चुनावी मुद्दे से जोड़कर अलग अंदाज में गाने गढ़ने में लगे हैं. सरस्वती स्टूडियो के प्रमुख पप्पू गुप्ता ने बताया कि चार-पांच गाने तैयार करने में तीन से छह हजार रुपये तक का खर्च आता है. ग्रामीण इलाके में चुनावी गाने की मांग बहुत अधिक होती है. इस चुनाव में फिल्मी, देशभक्ति, भोजपुरी और भक्ति गानों पर आधारित गानों को मांग अधिक है. गुप्ता ने बताया कि किसी गाने में भाषा, शब्द और संगीत का ही इस्तेमाल किया जाता है, ताकि लोकल जनता उससे खुद को जोड़ पाएं.
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विविध रिकार्डिंग स्टूडियो के प्रमुख डब्बू शुक्ला ने बताया कि उम्मीदवार की मांग और पसंद के अनुरूप चुनावी गाना तैयार करते हैं. बहुत से उम्मीदवार अपने ऊपर गाने तैयार करवाये हैं, जिसमें केवल उम्मीदवार की तारीफ-ही-तारीफ करनी पड़ती है. शुक्ला ने बताया कि गाना लिखने के बाद उसकी धुन तैयार होती है, फिर उसे स्टूडियों में रिकाॅर्ड किया जाता है. खर्च गाना ओर कलाकारों की संख्या में निर्भर करता है.