Jharkhand News: रांची के बूटी मोड़ निवासी निशांत कुमार ने 2018 में स्टार्टअप करने की ठानी. लक्ष्य था पर्यावरण से जुड़े किसी उत्पाद को राज्य में सफल कराना. शुरुआती दिनों में अगरबत्ती, मोमबत्ती, पेपर प्लेट का स्मॉल स्केल इंडस्ट्री शुरू करना चाहा, पर यह सफल न हो सका. इसके बाद एक्वापोनिक्स यानी मल्टी लेयर फार्मिंग की तैयारी की, पर बात नहीं बनी. रोजगार के विकल्पों की तलाश जारी थी और खेती-किसानी ही उद्देश्य. इस क्रम में निशांत रातू स्थित छोटानागपुर फन कैसल पहुंचे जहां तालाब में छोटी मछलियों को देख मछली पालन का विचार सुझा. इसके बाद एक्वा कल्चर विषय की जानकारी जुटानी शुरू की. इसके लिए मत्स्य विभाग पहुंचे और ट्रेनिंग पूरी कर ”किंगफिशरी” की शुरुआत 25 गुणा 12 टैंक से किया.
निशांत ने बताया कि रिवराइन फिश फार्मिंग (आरएफएफ) यानी पेन कल्चर से शुरुआती दिनों में नुकसान हुआ. नवंबर 2018 में मछलियां मर रही थी. इसका कारण था जानकारी का अभाव. जबकि, सटीक जानकारी हासिल कर निशांत अब पांच अलग-अलग विधि से नौ किस्म की मछलियों का संचयन कर रहे हैं. इससे करीब 200 टन मछलियाें का व्यापार संभव हो पा रहा है. रांची में संचयन की जा रही मछलियां अब झारखंड के अलावा बिहार के गया, सासाराम और मुजफ्फरपुर भी पहुंचाया जा रहा हैं.
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निशांत ने बताया कि मत्स्य पालन की जानकारी उन्होंने सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरी एजुकेशन ( मुजफ्फरपुर) से ली. जहां ट्रेनर डॉ मो अलकाकुर ने विभिन्न पद्धतियों की जानकारी दी. इसके बाद जनवरी, 2019 में मत्स्यपालन का हब पेकनबुरा (इंडोनेशिया) गये और एक महीने तक ””बायो फ्लॉक”” पद्धति की ट्रेनिंग लेकर रांची लौटे. इसके बाद आधे एकड़ जमीन में दो तालाब तैयार कर दो तरह की मछलियां : गिफ्ट तिलापिया और वियतनामी कोय मछली का संचयन शुरू किया. इससे छह टन संचयन का लक्ष्य पूरा हुआ. आमदनी हुई और बायोफ्लॉक पद्धति के 24 टैंक स्थापित किये. इनमें पूर्व के दो किस्म के अलावा पेंगासियस मछली का अगले आठ माह में हर टैंक से 300 केजी मछली का उत्पादन करने लगा.
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वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का लाभ निशांत को मिला. उसने 50 अतिरिक्त बायोफ्लॉक को जोड़ा. इसके अलावा 1.25 लाख लीटर के आठ टैंक रेसीक्यूलेट्री एक्वा कल्चर सिस्टम (आरएएस) स्थापित किये. यह देश का पहला ऑटोमेटेड आरएएस है. इससे एक टैंक से 20 टन मछली का संचयन हो रहा है. निशांत कहते हैं कि किंशफिशरी देश का पहला ऐसा कॉमर्शियल एक्वा फार्म बन गया है, जहां सर्वाधिक विधि से मत्स्यपालन पूरी की जा रही है. वर्तमान में किंशफिशरी पांच विधि से की जा रही है. इनमें पॉन्ड कल्चर, आरएफएफ या पेन कल्चर, बायोफ्लॉक, आरएएस और जलाशय पद्धति शामिल है. इनमें रेहू, कतला, मृगल, पेंगास, गिफ्ट तेलापिया, वियतनामी कोय, कॉमनकार, ग्रासकार और पाबदा का संचयन किया जा रहा है.परिणामत: 200 टन मछली का लक्ष्य पूरा हो रहा है.
निशांत कहते है किंगफिशरी के बैनर तले अब एक्वा टूरिज्म को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके लिए छोटानागपुर फन कैसल को नये अंदाज में तैयार किया गया है. जहां सात कॉटेज और दो डोरमेट्री तैयार किया गया है. इसके अलावा लोग वाटर फन गेम, नाइट स्टे के दौरान बॉन फायर व म्यूजिक इव का लुत्फ उठा सकेंगे. इनकी बुकिंग वेबसाइट से की जा रही है. एक्वा टूरिज्म के तहत लोगों को न केवल मत्स्यपालन दिखाया जा रहा. साथ ही इसकी जानकारी भी दी जा रही है. निशांत के स्टार्टअप से सैकड़ों लोगों को रोजगार तो मिल ही रहा है, साथ ही व्यवसाय का टर्नओवर करोड़ों में पहुंच चुका है.
किंगफिशरी आनेवाले समय में सीड बैंक के रूप में तैयार होगा. निशांत ने कहा कि अभी मौजूदा नौ किस्म की मछलियों के 13 लाख जीरा तैयार किया जा चुका है, जिसे मत्स्य पालन के इच्छुकों के बीच उपलब्ध कराया जायेगा. इसके अलावा आनेवाले िदनों में फिश पैकेजिंग कर उसका एक्सपोर्ट भी करने की तैयारी है.
रिपोर्ट : अभिषेक रॉय, रांची