झारखंड हाईकोर्ट के एक फैसले से 50 हजार शिक्षकों की नियुक्ति का मामला फंस गया है. इस फैसले की वजह से प्राथमिक से लेकर प्लस टू विद्यालय तक की नियुक्ति फिलहाल लटक गयी है. स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा जेएसएससी स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली 2021 के आधार पर बदलाव किया गया था.
संशोधित नियमावली में प्राथमिक, हाई स्कूल व प्लस टू शिक्षक नियुक्ति में भी अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए झारखंड से मैट्रिक, इंटर की परीक्षा पास होना अनिवार्य कर दिया गया था. झारखंड हाईकोर्ट द्वारा जेएसएससी स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली 2021 को रद्द किये जाने के बाद अब इस नियमावली के तहत होनेवाली सभी नियुक्तियां फिलहाल फंस गयीं हैं.
Also Read: झारखंड में जल्द होगी 50 हजार शिक्षकों की बहाली, किशोरी समृद्ध योजना से जुड़ेंगी 9 लाख बच्चियां :CM हेमंत
राज्य के प्लस टू विद्यालयों में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो गयी थी, वहीं प्राथमिक विद्यालयों नियुक्ति की तैयारी चल रही थी. इसके लिए जिलों को आरक्षण रोस्टर क्लियर करने को कहा गया था. जिलों द्वारा आरक्षण रोस्टर क्लियर कर प्राथमिक शिक्षा निदेशालय को भेजा गया था. स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के आरक्षण को लेकर कार्मिक विभाग से मार्गदर्शन मांगा था. कार्मिक विभाग से मार्गदर्शन के बाद नियुक्ति के लिए अधियाचना झारखंड कर्मचारी चयन आयोग को भेजी जाती. इसके पहले ही हाईकोर्ट ने यह फैसला सुना दिया.
झारखंड में पिछले पांच वर्ष से शिक्षक पात्रता परीक्षा नहीं हुई है. शिक्षा विभाग द्वारा झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा नियमावली में भी अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए झारखंड से मैट्रिक व इंटर की परीक्षा पास होना अनिवार्य कर दिया गया था. नियमावली रद्द होने के बाद अब झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा भी फिलहाल नहीं हो सकेगी. झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा के लिए स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा प्रस्ताव झारखंड एकेडमिक काउंसिल को भेजा गया था. झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा नियमावली में प्रत्येक वर्ष परीक्षा लेने का प्रावधान है.
नियुक्ति नियमावली में बदलाव को लेकर प्रक्रिया लगभग एक साल क चली थी. इसके बाद नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी थी.
Also Read: Sarkari Naukri: झारखंड में जल्द होगी 50 हजार शिक्षकों की बहाली, शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने की घोषणा
झारखंड में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय व मॉडल स्कूल में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नियमावली बनायी जा रही है. राज्य में इन विद्यालयों में शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति के लिए अब तक नियमावली नहीं बनी थी. शिक्षा विभाग के स्तर से दोनों नियुक्ति नियमावली को स्वीकृति मिल गयी है. इन दोनों नियमावली में भी अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए झारखंड से मैट्रिक, इंटर पास होना अनिवार्य किया गया था. अब इन दोनों नियमावली को तैयार करने की प्रक्रिया बाधित होगी.
स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा प्राथमिक व मध्य विद्यालय में शिक्षकों के 50 हजार पद सृजित किये थे. इन पदों पर दो चरण में नियुक्ति की घोषणा की गयी थी. प्रथम चरण में 26 हजार शिक्षकों की नियुक्ति होनी थी.
झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) द्वारा 5 परीक्षाओं का कैलेंडर जारी किया गया था. इन परीक्षाओं की तिथि भी घोषित कर दी गयी थी. झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा जारी परीक्षा का कैलेंडर वापस ले लिया गया है. जिन परीक्षाओं की तिथि घोषित की गयी थी, उनमें राज्य के प्लस टू विद्यालय में 3,120 शिक्षकों की नियुक्ति के लिए भी परीक्षा होनी थी.
-
झारखंड सचिवालय आशुलिपिक प्रतियोगिता परीक्षा- 14 दिसंबर से 16 दिसंबर
-
स्नातकोत्तर प्रशिक्षित शिक्षक प्रतियोगिता परीक्षा-21 दिसंबर 2022 से तीन जनवरी 2023
-
झारखंड सामान्य स्नातक योग्यताधारी स्तर संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा-21 जनवरी, 22 जनवरी, 28 जनवरी व 29 जनवरी
-
झारखंड नगरपालिका सेवा संवर्ग संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा-पांच फरवरी 2023
-
झारखंड तकनीकी/विशिष्ट योग्यताधारी स्नातक स्तरीय संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा-12 फरवरी 2023
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद दीपक प्रकाश ने कहा है कि हेमंत सोरेन सरकार की नियोजन नीति-2021 पर हाईकोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. श्री प्रकाश ने कहा है कि हेमंत सरकार की बनायी गयी एक भी नीति लोक कल्याणकारी नहीं है. हाईकोर्ट का फैसला हेमंत सोरेन सरकार की करारी हार है. यह झारखंड की जीत है. ऐसी नीतियों का यही हाल होना है.
दीपक प्रकाश ने कहा कि यह सरकार कानून विरोधी नीतियों के द्वारा केवल योजनाओं को लटकाने, भटकाने और अटकाने का काम करती है़ उन्होंने कहा कि झारखंड के मूलवासी हेमंत सरकार के नियोजन नीति से परेशान थे. भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि इसी प्रकार भाषा के आधार पर भी राज्य सरकार ने अनुचित निर्णय लिया है. घर-घर बोली जाने वाली हिंदी और अंग्रेजी को हटाकर इस सरकार ने चंद लोगों द्वारा व्यवहार में लायी जाने वाली उर्दू भाषा को प्राथमिकता दी थी, यह तुष्टीकरण की पराकाष्ठा थी.