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क्रिप्टोकरेंसी पर ठोस फैसले की जरूरत

हाल में भारतीय रिजर्व बैंक ने ‘डिजिटल रुपी' की शुरुआत की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत उन कुछ पहले ऐसे देशों में है, जो ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित नवाचार और डिजिटल करेंसी को भी बढ़ावा दे रहे हैं

ट्यूलिप मेनिया, जिसे इतिहास के पहले वित्तीय बुलबुले के रूप में भी जाना जाता है, की शुरुआत सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप में हुई. कैरोलस क्लूसियस ने 1590 के दशक में लीडन यूनिवर्सिटी के अपने निजी बागीचे में ट्यूलिप की खेती शुरू की, जो धीरे-धीरे पूरे नीदरलैंड में फैल गयी. इसके बाद क्लूसियस ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा इस रहस्यमयी परिघटना ट्यूलिप विखंडन को समझने में लगा दिया, जिसमें ट्यूलिप फूल की पंखुड़ियां बहुरंगी पैटर्न में बदल जाती हैं.

इस परिघटना के बाद ट्यूलिप की मांग में बेतहाशा वृद्धि हुई. ट्यूलिप को अपने यहां उगाना सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया. अगर मुद्रास्फीति का हिसाब लगाकर देखा जाए, तो एक समय ट्यूलिप की कीमत पचास हजार से डेढ़ लाख डॉलर के बीच पहुंच गयी थी, ठीक उसी तरह जैसे बिटक्वाइन के दाम बहुत अधिक बढ़ गये थे. हालांकि कई वर्षों बाद यह पता चला कि ट्यूलिप के फूल में दिखने वाली अजीबो-गरीब घटना फूलों को संक्रमित करने वाले वायरस के कारण हुई थी.

उस घटना की तुलना वर्तमान के क्रिप्टोकरेंसी को लेकर दुनियाभर में फैले उन्माद से की जा सकती है. रहस्यमयी सतोशी नाकामोतो द्वारा बिटक्वाइन की शुरुआत के बाद से ही क्रिप्टोकरेंसी की मांग भी बढ़ती गयी है और इसके प्रति लोगों का आकर्षण भी बढ़ा है. तकनीक के वर्तमान दौर में क्रिप्टोकरेंसी को एक विनियमित सत्ता विरोधी मुद्रा के रूप में देखा जाता है, जो लोगों को शक्ति देता है. क्रिप्टो समर्थक यह दावा करते हैं कि मुद्रा का यह स्वरूप मुद्रा की अस्थिरता, मुद्रास्फीति, ब्याज दर और खर्च करने की शक्ति को सत्ता से स्थानांतरित कर लोगों को दे देता है,

जो ब्लॉकचेन तकनीकों के माध्यम से करेंसी का खनन कर सकते हैं. लेकिन यह बात सच्चाई से दूर है. बिटक्वाइन में सीमित सिक्के होते हैं, जिनका खनन (तकनीक से) हो सकता है तथा जैसे-जैसे खनन का काम बढ़ता है, प्रक्रिया कठिन होती जाती है और पर्यावरणीय जटिलताएं बढ़ती जाती है. कैंब्रिज सेंटर फॉर ऑल्टरनेटिव फाइनेंस के एक अध्ययन के अनुसार, 2021 में, जब बिटक्वाइन चरम पर था, तब इसमें लगभग 110 टेरावॉट घंटे बिजली की खपत प्रतिवर्ष हुई थी.

यह वैश्विक विद्युत उत्पादन का 0.55 प्रतिशत हिस्सा था और इतनी विद्युत ऊर्जा मलेशिया की पूरी खपत है. वर्तमान ऊर्जा संकट को देखते हुए बिजली की ऐसी बर्बादी असहनीय है. पर यह क्रिप्टो के बुरे प्रभाव का एक उदाहरण है. साल 2009 से इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से डार्क व डीप वेब में खरीदारी, हवाला, नशीले पदार्थ, रिश्वत आदि में किया जाता रहा है. तेज डिजिटलीकरण में ट्यूलिप मेनिया की तरह क्रिप्टो बबल भी बढ़ा.

साल 2016 के बाद नयी करेंसियां, क्रिप्टो एक्सचेंज, टोकन आदि आये और इन्हें खूब प्रचारित करने की कोशिश की गयी. भारत में भी इसके निवेशक बढ़ाने के प्रयास हुए, लेकिन लोगों को धीरे-धीरे यह समझ में आने लगा है कि क्रिप्टो कितना खतरनाक है. पिछले साल क्रिप्टो का बाजार मूल्य दो ट्रिलियन घट गया, जो 2021 में तीन ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया था. हाल में भारतीय रिजर्व बैंक ने ‘डिजिटल रुपी’ की शुरुआत की है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत उन कुछ पहले ऐसे देशों में है, जो ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित नवाचार और डिजिटल करेंसी को भी बढ़ावा दे रहे हैं और साथ ही आम लोगों को क्रिप्टो मेनिया के प्रति आगाह भी कर रहे हैं. मेरे समेत कई सांसदों ने वर्ष 2017 में भारत में क्रिप्टोकरेंसी पर पाबंदी लगाने की मांग की थी. उसी समय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने रिजर्व बैंक के साथ वार्ता कर क्रिप्टो के अध्ययन तथा डिजिटल करेंसी जारी करने के लिए एक समिति का गठन किया था.

एक व्यवस्था के तौर पर यह समझने में हमारी इस असफलता कि क्रिप्टोकरेंसी एक धोखाधड़ी के अलावा कुछ नहीं है, से लोगों को नुकसान ही होगा. हाल में क्रिप्टो एक्सचेंज एफटीएक्स के डूबने से ऐसे लोग तबाह हुए हैं, जिन्होंने अपनी जमा-पूंजी क्रिप्टो में निवेशित कर दी थी. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार के निर्णयों के कारण भारतीय निवेशकों को ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा है.

वर्ष 2018 में रिजर्व बैंक ने सभी विनियमित संस्थाओं को क्रिप्टो कारोबार में शामिल होने की मनाही कर दी थी, पर सर्वोच्च न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया था. फिर देश में कई क्रिप्टो एक्सचेंज खुल गये. जोखिमों के साथ हमें ऐसी मुद्राओं की पूरी अर्थव्यवस्था और आबादी पर असर के बारे में सोचना चाहिए. हाल में एम्स के सर्वरों को हैक करने वाले क्रिप्टो में फिरौती मांग रहे थे. वित्तीय बुलबुलों के इतिहास को देखें, तो पाते हैं कि विनियमन के कारण ट्यूलिप मेनिया से लेकर 2008 के वित्तीय संकट तक, जैसे अनेक बुलबुले पैदा होते रहे हैं.

विनियमन के किसी भी कानून को अंतरराष्ट्रीय सहयोग से ही प्रभावी रूप से लागू किया जा सकता है. इसमें जोखिमों और लाभों का आकलन तथा सामंजस्यपूर्ण कराधान प्रणाली जैसे पहलू शामिल हैं. क्रिप्टो के नुकसान और खतरे से निपटने के लिए हमें या तो क्रिप्टोकरेंसी का विनियमन करना होगा या इस पर पूरी पाबंदी लगानी होगी.

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