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कॉलेजियम सिस्टम को लेकर सरकार और अदालत आमने सामने

देश की कार्य-व्यवस्था सुचारु रूप से चल सके, इसके लिए संविधान में विधायिका, कार्यपालिका के साथ न्यायपालिका की भूमिका को भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. पर बीते कुछ दिनों से सर्वोच्च और उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच विवाद छिड़ा हुआ है.

देश की कार्य-व्यवस्था सुचारु रूप से चल सके, इसके लिए संविधान में विधायिका, कार्यपालिका के साथ न्यायपालिका की भूमिका को भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. पर बीते कुछ दिनों से सर्वोच्च और उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच विवाद छिड़ा हुआ है. सरकार जहां इस प्रक्रिया में बदलाव चाह रही है, वहीं न्यायपालिका इससे इनकार कर रही है. सर्वोच्च व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया, इसमें सरकार की भूमिका समेत इससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के पड़ताल के साथ प्रस्तुत है इन दिनों पेज…

कॉलेजियम सिस्टम को लेकर इन दिनों सरकार और न्यायपालिका आमने-सामने आ गयी हैंै. कुछ दिनों पूर्व केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम सिस्टम पर प्रश्न खड़े किये, तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्त आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को रद्द करने के लिए न्यायिक प्रणाली की आलोचना की. कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना से साफ हो गया है कि सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल होना चाहती है. उधर प्रधान न्यायाधीश ने पारदर्शिता लाने की बात कहकर इसमें किसी भी तरह के बदलाव से इनकार कर दिया है. वर्ष 2015 में जब राष्ट्रीय न्यायिक आयोग अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया गया था, तब इस पर लंबी बहस चली थी. एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय और सरकार के बीच कॉलेजियम सिस्टम और एनजेएसी को लेकर टकराव की संभावना दिख रही है.

क्या है कॉलेजियम सिस्टम

कॉलेजियम सिस्टम सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए उत्तरदायी एक फोरम है. इसका गठन शीर्ष न्यायालय द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुसार हुआ है. शीर्ष न्यायालय के कॉलेजियम का प्रमुख भारत का मुख्य न्यायाधीश होता है. सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीश इसके सदस्य होते हैं. वहीं उच्च न्यायालय कॉलेजियम का प्रमुख इस न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होता है और न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीश इसके सदस्य होते हैं. इस कॉलेजियम के सदस्यों की नियुक्ति सीजेआई और सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की स्वीकृति के बाद ही होती है. कॉलेजियम के सदस्य नियुक्ति के लिए जिन नामों का चुनाव करते हैं, उन्हें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. इन दोनों की स्वीकृति मिलने के बाद ही न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है.

कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत : कॉलेजियम सिस्टम तीन मामलों, जिन्हें थ्री जज केसेज कहा जाता है, के अदालत में आने के पश्चात अस्तित्व में आया.

पहला मामला (एसपी गुप्ता बनाम भारत सरकार, 1981)

वर्ष 1981 के एसपी गुप्ता बनाम भारत सरकार के मामले में शीर्ष न्यायालय की संविधान पीठ ने अपने निर्णय में कहा था कि न्यायाधीशों को आर्थिक या राजनीतिक शक्ति के सामने सख्त होना चाहिए और उन्हें विधि के शासन के मूल सिद्धांत को बनाये रखना चाहिए. न्यायालय ने यह भी कहा था कि न्यायिक प्रशासन को संविधान से कानूनी स्वीकृति मिली हुई है और इसकी विश्वसनीयता लोगों के भरोसे पर टिकी है. अत: उस भरोसे को बनाये रखने के लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता अपरिहार्य है. यह स्थिति 12 वर्षों तक यथावत बनी रही.

दूसरा मामला (एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत सरकार)

वर्ष 1993 में नौ न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ ने 1981 के एसपी गुप्ता मामले के निर्णय को पलटते हुए सर्वोच्च/ उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति व स्थानांतरण के लिए ‘कॉलेजियम सिस्टम’ नामक एक विशिष्ट प्रक्रिया तैयार करने की बात कही. इस निर्णय में कहा गया कि सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति में भारत के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका सर्वोपरि होगी और इसके लिए सीजेआई को अपने दो वरिष्ठ सहयोगियों की सलाह लेनी होगी.

तीसरा मामला (राष्ट्रपति के आर नारायणन प्रेसिडेंशियल रेफरेंस)

वर्ष 1998 में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने अनुच्छेद 143 के तहत वर्णित कंसल्टेशन (एडवाइजरी जुडिशियरी) के अर्थ को लेकर उच्चतम न्यायालय को प्रेसिडेंशियल रेफरेंस जारी किया. इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण को लेकर नौ दिशा-निर्देश दिये, जो वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली का आधार बना और तब से यह लागू है.

न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण पर क्या कहता है संविधान

सर्वोच्च और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 124 (2) और 217 के तहत राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी. इसके लिए राष्ट्रपति को सर्वोच्च और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से सलाह-मशविरा करना होगा. अनुच्छेद 124 (2) शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है. इस अनुच्छेद के प्रावधानों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में होगी. राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कुछ न्यायाधीशों के परामर्श के बाद ही न्यायाधीशों की नियुक्ति की जायेगी. अनुच्छेद 217 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति से संबंधित है. इसके प्रावधानों के अनुसार, उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श के बाद की जायेगी, जबकि मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश से सलाह के बाद किये जाने का प्रावधान है.

क्या है राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग

वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए संविधान के 99वें संशोधन द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम बनाया था. परंतु बनने के एक वर्ष बाद ही यानी अक्तूबर, 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया. न्यायालय ने ऐसा करते हुए यह दलील दी थी कि एनजेएसी न्यायपालिका के कामकाज में हस्तक्षेप है. इस आयोग में कुल छह सदस्यों का प्रस्ताव था और भारत के मुख्य न्यायाधीश को इसका अध्यक्ष बनाने की बात कही गयी थी. इसके अन्य सदस्यों में सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, विधि व न्याय मंत्री और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े दो प्रबुद्ध नागरिकों के शामिल होने का प्रस्ताव रखा गया था, जिनका चयन सीजेआई, प्रधानमंत्री और प्रतिपक्ष के नेता द्वारा किया जाना था. यदि यह आयोग अस्तित्व में आ गया होता, तो जजों की नियुक्ति के लिए वर्तमान में उत्तरदायी कॉलेजियम सिस्टम समाप्त हो गया होता.

जजों की नियुक्ति पर उठते रहे हैं सवाल

वर्ष 1993 से पहले कॉलेजियम सिस्टम के बिना ही न्यायाधीशों की नियुक्ति होती थी. भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से केंद्रीय कानून मंत्रालय सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता था. पर फिर नियुक्ति को लेकर कुछ ऐसे मामले सामने आये, जिनकी न्यायालय में सुनवाई के बाद कॉलेजियम सिस्टम लाया गया. तब से इसी सिस्टम के तहत न्यायाधीशों की नियुक्तियां हो रही हैं. पर कई वरिष्ठ अधिवक्ता अब ऐसा मानने लगे हैं कि इस व्यवस्था में पारदर्शिता की कमी है. इसमें कोई सचिवालय और आधिकारिक तंत्र नहीं है तथा इस सिस्टम के तहत जजों की नियुक्ति को लेकर फैसला एक बंद कमरे में किया जाता है तथा इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं होती है. कई बार तो नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम के सदस्यों के बीच सहमति का अभाव भी देखने को मिलता है. कॉलेजियम सदस्यों के बीच अविश्वास की यह भावना न्यायपालिका के भीतर की खामियों को उजागर करती है. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय इन आरोपों को नकारता आ रहा है.

आलोचना पर न्यायालय का पक्ष :कॉलेजियम सिस्टम पर देश में हो रही टिप्पणी को सर्वोच्च न्यायालय ने गलत बताया है. उसका कहना है कि यह देश का कानून है और हर किसी को इसका पालन करना चाहिए. न्यायालय देश के न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा सरकार को भेजे गये नामों की सिफारिश पर सुनवाई कर रहा था. इसी दौरान उसने कहा कि केंद्र सरकार न्यायाधीशों के नाम पर मुहर लगाने में देरी कर रही है. न्यायालय ने विशेष रूप से कहा कि हमारे संविधान की योजना के लिए आवश्यक है कि हमारा न्यायालय कानून का अंतिम मध्यस्थ हो. संसद को एक कानून बनाने का अधिकार है, पर इसकी जांच करने की शक्ति न्यायालय के पास है. इसका अर्थ यह है कि इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून का पालन किया जाता है, अन्यथा लोग उस कानून का पालन करेंगे जो उन्हें लगता है कि सही है.

उच्च न्यायालय में 332 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं

  • 25 प्रतिशत है सर्वोच्च न्यायालय के स्तर पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए अनुशंसित नामों की अस्वीकृति की दर, जो बहुत अधिक है. केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा.

  • 776 है उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या, जबकि इसकी स्वीकृत संख्या 1108 है, 30 नवंबर, 2022 तक. इसका अर्थ हुआ कि उच्च न्यायालय में अभी 332 पद रिक्त हैं.

  • 186 शेष रिक्तियों के लिए उच्च न्यायालय को सिफारिश करने की आवश्यकता है, जो रिक्तियों का 56 प्रतिशत है, शीर्ष अदालत में प्रस्तुत एक स्थिति रिपोर्ट में केंद्र सरकार ने यह बात कही.

  • 146 प्रस्तावों में से 92 (बार कोटा के तहत रिक्तियां) और 54 (सर्विस कोटा के तहत रिक्तियां) को लेकर सरकार (118 प्रस्तावों) तथा सर्वोच्च न्यायालय (28) के बीच कार्यवाही चल रही है.

  • 118 प्रस्ताव जो सरकार के पास हैं, उनमें से आठ की सिफारिश सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम (एससीसी) ने पहली बार की थी. प्रस्तावों को एससीसी द्वारा खारिज कर दिया गया था और उसे उच्च न्यायालयों को भेजा जाना था, जबकि 80 नये प्रस्ताव हाल ही में उच्च न्यायालय के कॉलेजियम से प्राप्त हुए हैं. 28 प्रस्ताव जो एससीसी के पास है, उनमें से 25 प्रस्ताव पर एससीसी को पुनर्विचार करना है और तीन प्रस्ताव एससीसी द्वारा स्थगित कर दिया गया है.

  • 43 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर के अनुसार, एक दिसंबर, 2022 से 31 मई, 2023 के बीच सेवानिवृत होनेवासे हैं. सेवानिवृत्त हो जायेंगे.

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