अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर, पाउंड, येन, यूरो जैसी कुछ मुद्राओं का वर्चस्व है. इस कारण अन्य मुद्राओं को इनकी कीमतों के अनुसार संचालित होना पड़ता है. कुछ मुद्राओं की विशिष्टता के उनके देशों का महत्व भी बहुत अधिक होता है तथा वे अपने हितों के अनुरूप कार्य करते हैं. भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में है तथा हमारा अंतरराष्ट्रीय व्यापार लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में रुपये को विनिमय के महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में स्थापित करना आवश्यक है.
भारत सरकार और रिजर्व बैंक अनेक देशों की सरकारों और केंद्रीय बैंकों के साथ इस संबंध में विचार-विमर्श कर रहे हैं तथा इसमें प्रगति भी हो रही है. कई अंतरराष्ट्रीय बैंकों ने रुपये में भुगतान के लिए विशेष व्यवस्था करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. इस क्रम में उल्लेखनीय पहल करते हुए सरकार ने व्यापारिक संगठनों और बैंकों से कहा है कि वे दूसरे देशों के साथ संबंधित संभावनाओं की तलाश करें.
रुपये में व्यापार की वर्तमान व्यवस्था रूस, मॉरीशस और श्रीलंका के साथ कार्यरत है. इसके अनुभवों का लाभ उठाया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मुद्रा के अनुरूप विशेष रूप से वोस्ट्रो खाते खोलने होते हैं. व्यापारियों का भुगतान इन्हीं खातों से होता है. अब तक ऐसे 18 विशेष रुपये खाते खोले जा चुके हैं तथा इस प्रक्रिया में 11 बैंक भागीदार हैं.
इन खातों के अलावा भारत के लेन-देन के स्थानीय तरीकों को भी अंतरराष्ट्रीय बनाने का आग्रह सरकार की ओर से किया गया है. कुछ मुद्राओं का वर्चस्व भू-राजनीतिक हितों के लिए भी जोखिम साबित हो सकता है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर जो आर्थिक पाबंदियां लगायी हैं, उनमें यह प्रावधान भी है कि रूसी मुद्रा रूबल में वे कारोबार नहीं करेंगे.
यह मसला भी वैश्विक वित्त बाजार में उठाया जाता रहा है कि मजबूत मुद्राओं वाले देश उनकी कीमतों को अपने फायदे को ध्यान में रखते हुए घटाते-बढ़ाते रहते हैं. ऐसे रवैये से भारतीय मुद्रा भी प्रभावित होती है. यदि मुद्रा की कीमत घटती है, तो निवेश पर भी प्रतिकूल असर होता है तथा बाहर की देनदारियां भी महंगी हो जाती हैं. भारत का द्विपक्षीय व्यापार निरंतर बढ़ता जा रहा है.
सरकार विभिन्न देशों के साथ या तो मुक्त व्यापार संधियां कर चुकी है या उनके संबंध में बातचीत चल रही है. जब दो देशों के बीच खरीद-बिक्री हो रही है, तो फिर किसी अन्य असंबद्ध मुद्रा में लेन-देन का कोई बहुत मतलब नहीं रह जाता है. वित्तीय स्वायत्तता को सुनिश्चित करने तथा रुपये को अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मानचित्र पर स्थापित करने में इस पहल से बड़ी मदद मिलेगी. इस प्रयास में कारोबारियों और बैंकों को अहम भूमिका निभानी है.