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Exclusive: MS Dhoni ऑल टाइम ग्रेट हैं, सीनियर महिला स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट शारदा उगरा से खास बातचीत

Jharkhand Literary Meet में शामिल होने आईं वरिष्ठ महिला खेल पत्रकार शारदा उगरा ने Prabhatkhabar.com से खास बातचीत में कहा कि महेंद्र सिंह धोनी क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में ऑल टाइम ग्रेट हैं. उन्होंने धोनी की जमकर तारीफ की. शारदा उगरा पिछले 30 साल से खेल पत्रकार हैं.

Jharkhand Literary Meet में शामिल होने आईं वरिष्ठ महिला खेल पत्रकार शारदा उगरा ने Prabhatkhabar.com से खास बातचीत में कहा कि महेंद्र सिंह धोनी क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में ऑल टाइम ग्रेट हैं. उन्होंने धोनी की जमकर तारीफ की. शारदा उगरा पिछले 30 साल से खेल पत्रकार हैं. उन्होंने ‘मिड डे’ के आफ्टरनून अखबार से अपने करियर की शुरुआत कीं. खेल पत्रकारिता में उनका शुरुआती सफर काफी कठिनाइयों भरा रहा, लेकिन उन्होंने हर बाधा को पार कर आज यह मुकाम हासिल किया है. पेश है उनसे बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश…

आपने खेल पत्रकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत कब और कैसे की

मुंबई के संत जेवियर कॉलेज से इतिहास ऑनर्स में डिग्री हासिल करने से पहले वर्ष 1987 में पाकिस्तान के पूर्व दिग्गज क्रिकेटर और आज के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान का इंटरव्यू किया. मेरी शुरू से ही खेल में काफी रुचि थी. मेरी दो सहेलियों को भी खेल में काफी रुचि थी. इस वजह से हमारी काफी बनती थी. हमने कॉलेज की मैगजीन के लिए इमरान खान का इंटरव्यू करने का प्लान बनाया. बड़ी आसानी से इमरान इंटरव्यू के लिए तैयार हो गए. यह मेरा पहला इंटरव्यू था और संयोग से इसे आफ्टरनून न्यूज पेपर ने छाप दिया. उसके बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली. पहली नौकरी भी 1989 में मिड डे में ही मिली.

खेल के क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

जब मैं छोटी थी, तब हमारा परिवार मुंबई के भांडुप में रहता था. पिताजी जिस फैक्ट्री में काम करते थे, उस कंपनी ने अपने वर्कर्स के लिए कॉलोनी बनाई थी. हम भी वहीं रहते थे. वहां सभी प्रकार के खेल की व्यवस्था थी. हम घंटो क्रिकेट, बैडमिंटन, स्वीमिंग, वॉलीबॉल, फुटबॉल जैसे खेल का आनंद लिया करते थे. इसके साथ ही, बचपन से ही मुझे खेल देखने का शौक था. कहीं भी कोई भी खेल होता था, तो उसे देखने पहुंच जाती थी. क्रिकेट शुरू से ही मेरी पहली पसंद थी. टीवी पर देखा करती थी. लोकल स्तर भी क्रिकेट होता था, तो मैदान में उसे भी देखने पहुंच जाती थी. क्रिकेट के मैगजीन पढ़ा करती थी. पिताजी भी कुश्ती के साथ-साथ कई खेल में माहिर थे. इस वजह से इस क्षेत्र की पत्रकारिता में आना हुआ.

अब तक आपको कितने संस्थानों में काम करने का मौका मिला?

मेरे करियर की शुरुआत ‘मिड डे’ से हुई. इस संस्थान के सहकर्मियों ने काफी सहयोग किया और इस संस्थान में मैंने 1989 से 1993 तक काम किया. एक प्रकार से यह मेरी मातृसंस्था है. मुंबई मेरी वर्कप्लेस रही, लेकिन इस दौरान मुझे विदेश भी जाने का मौका मिला. विदेश में मेरा पहला कवरेज विंबलडन टेनिस था. उसके बाद मैंने ‘द हिंदू’ में काम करना शुरू किया. वहां 1993 से 2000 तक काम किया. इस संस्थान में भी ऑफिस में मुझे काफी बढ़िया माहौल मिला और मैंने इस मौका का पूरा फायदा उठाते हुए अपने करियर पर पूरा फोकस किया. इसमें काम करते हुए ज्यादातर भारत में ही होने वाले खेल कार्यक्रमों को कवर किया. उसके बाद ‘इंडिया टूडे’ ग्रुप से जुड़ी. इसमें 2000 से 2010 तक काम किया. इस ग्रुप ने मुझे काम करने की पूरी आजादी दी और यहां काम करते हुए मुझे कई बार विदेश जाने का मौका मिला. इसके बाद साल 2010 में ईएसपीएन क्रिकइंन्फो से जुड़ी. यहां तकरीबन 2020 तक काम किया. उसके बाद अब मैं एक स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर काम करती हूं. ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ और वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त की ‘मोजो स्टोरी’ के लिए कॉलम लिखती हूं. एक ‘किताब’ पर भी काम कर रही हूं.

किस-किस बड़े आयोजनों में कवरेज का मौका मिला

2008 समर ओलिंपिक में जब अभिनव बिंद्रा ने गोल्ड जीता था, तब मैं वहां थी. वह मेरे लिए बहुत बड़ा क्षण था. उसके बाद एमएस धोनी की अगुवाई में जब 2007 में भारत ने आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप का पहला संस्करण जीता था, मैं उसकी भी गवाह बनी थी. इंडिया टूडे की ओर से विश्वनाथन आनंद के इवेंट को कवर करने का मौका मिला था. तब आनंद ने तेहरान में अपना पहला वर्ल्ड टाइटल जीता था. 2004 में भारत के पाकिस्तान टूर को भी कवर करने के लिए मुझे पाकिस्तान भेजा गया. इसके अलावा क्रिकेट के कई दिग्गजों का इंटरव्यू करने का भी मौका मिला. कुल मिलाकर अपने अब तक के 30 साल के करियर में मैंने खेल पत्रकारिता को भरपूर जीया. अब तक किताब लिखना चाहती हूं. उसपर काम जारी है.

महिला होने की वजह से क्या मुश्किलें आयीं

जिस समय मैंने खेल पत्रकारिता में कदम रखा, उस समय गिनती की ही महिला खेल पत्रकार हुआ करती थी. ऐसे में मीडिया बॉक्स में पुरुषों के बीच बैठकर काम करने में कुछ परेशानी तो होती थी, लेकिन मैंने पूरा फोकस अपने काम पर किया. अपने काम के अलावा मैंने किसी और चीज पर कभी ध्यान ही नहीं दिया. दिक्कतें आती थीं, लेकिन मैंने हार नहीं मानी. बाद में जैसे ही आप अनुभवी हो जाते हैं तो ये सब चीजें आपके लिए कोई मायने नहीं रखती. कई आयोजनों में तो मैं अकेली महिला पत्रकार होती थी, लेकिन मैंने खुद को काफी मजबूत बनाकर रखा था और मेरा एक ही लक्ष्य था, इस क्षेत्र में कुछ कर गुजरना है. न्यूज रूम में भी कई बार ऐसा हुआ कि सहयोगियों से कई दिनों तक मेरी बात भी नहीं होती थी. मैं पुरुषों से संवाद करने से दूर ही रहती थी. मेरा फोकस केवल मेरे काम पर होता था. हां 30 साल के अब तक के सफर में दफ्तर में कुछ सीनियर महिला सहयोगी भी मिलीं, जिनसे काफी सहयोग मिला.

एमएस धोनी के शहर में आकर कैसा लगा, धोनी के बारे में आपके क्या विचार हैं

एमएस धोनी क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में ऑल टाइम ग्रेट हैं. जब भी क्रिकेट की सबसे बेस्ट टीम की बात होगी तो धोनी के बिना वह अधूरी होगी. हम टेस्ट, वनडे या टी20, जिसकी भी बात करें तो धोनी के पास सभी फॉर्मेट के लिए अलग-अलग प्लान होता था. वह एक बेहतरीन खिलाड़ी तो हैं ही उनकी नेतृत्व कुशलता की पूरी दुनिया कायल है. आज भी आप देखते होंगे कि जब भी टीम इंडिया किसी बड़े टूर्नामेंट से बाहर होती है तो लोग धोनी को याद करने लगते हैं. मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे 2007 टी20 वर्ल्ड कप के कवरेज का मौका मिला और मैंने मीडिया बॉक्स में बैठकर भारत को वर्ल्ड कप जीतते देखा है. जहांतक धोनी के शहर की बात है तो मैं रांची पहले भी आ चुकी हूं. झारखंड ने देश को विभिन्न खेलों में कई बेहतरीन खिलाड़ी दिये हैं. मैं यहां और काम करना चाहती हूं. अपने किताब के काम के सिलसिले में या उसे पूरा करने के बाद मैं झारखंड में कुछ दिन गुजरना चाहूंगी और यहां के खिलाड़ियों पर और अधिक काम करना चाहूंगी.

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