नई दिल्ली : विधानसभा चुनावों से ऐन पहले मुख्यमंत्री को बदल देने वाली भाजपा की रणनीति ने गुजरात में अपना रंग दिखा दिया है. जनता के बीच पैदा हुई सत्ता विरोधी लहर को शांत करने के लिए भाजपा ने प्रयोग के तौर पर इस साल की शुरुआत में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड में मुख्यमंत्री को बदल दिया. तीरथ सिंह रावत को उनके पद से हटाकर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन कराया गया. भाजपा ने इसी प्रकार की रणनीति गुजरात में भी अपनाई और आज उसका नतीजा सबके सामने नजर आ रहा है और भाजपा ने पिछले सभी रिकॉर्डों को तोड़ते हुए प्रचंड जीत हासिल की है. खबर यह भी है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए इसी रणनीति पर काम कर दिया है. इसके लिए उसने कर्नाटक और त्रिपुरा में पहले ही यह प्रयोग कर दिया है.
राजनीतिक विश्लेषकों और मीडिया की रिपोर्ट्स की मानें, तो गुजरात विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भाजपा ने पहले ही अपनी रणनीति तैयार कर ली थी. भाजपा ने पिछले साल के सितंबर में पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को गुजरात चुनाव से महज एक साल पहले विजय रूपाणी के स्थान पर गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया था. इतना ही नहीं, उस समय भाजपा ने न केवल मुख्यमंत्री को बदला, बल्कि पूरे गुजरात मंत्रिमंडल को ही बदल दिया था. भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के एक वरिष्ठ नेता ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि परिणाम साफ है कि उत्तराखंड और गुजरात में मुख्यमंत्री बदलने से भाजपा को सत्ता विरोधी लहर को बेअसर करने में मदद मिली. गुजरात में मुख्यमंत्री (पाटीदार) की जाति भी काम आई.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, विपक्ष मुख्यमंत्री बदलने को लेकर भाजपा पर अक्सर हमलावर रही है. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये बदलाव दर्शाते हैं कि भाजपा का नेतृत्व जमीनी स्तर से मिले फीडबैक के अनुसार फैसला लेने से कभी पीछे नहीं हटता. इसी तरह, उत्तराखंड में भाजपा ने इस साल की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनावों से पहले दो बार मुख्यमंत्री बदले थे. चुनाव में पार्टी को तो जीत मिली, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को हार का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद पहाड़ी राज्य में उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया. इस भाजपा नेता ने सवाल उठाया कि हिमाचल प्रदेश में भी यही कवायद क्यों नहीं की गई, जब पार्टी को पिछले साल उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा था.
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बताते चलें कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा खुद हिमाचल प्रदेश के हैं और उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान वहां जमकर प्रचार भी किए थे. हैरान करने वाली बात यह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को उनके ही प्रदेश से मुख्यमंत्री को लेकर सही फीडबैक नहीं मिला. भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले दो-तीन साल में मुख्यमंत्रियों को बदलने के इन फैसलों के पीछे मुख्य रूप से तीन कारक रहे हैं. इनमें जमीनी स्तर पर काम का असर, संगठन के साथ सामंजस्य और नेता की लोकप्रियता शामिल है. भाजपा शासित कर्नाटक, मध्य प्रदेश और त्रिपुरा में भी 2023 के दौरान विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा ने कर्नाटक और हाल ही में त्रिपुरा में अपने मुख्यमंत्री बदले हैं.