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नक्शा पास मामले में सरकार देगी झारखंड हाईकोर्ट को रिपोर्ट, जांच के लिए उच्चस्तरीय कमेटी का गठन

हाइकोर्ट ने रांची नगर निगम और आरआरडीए में नक्शा पास करने के लिए 20 से लेकर 30 रुपये प्रति वर्गफीट अवैध राशि वसूली को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज मामले की सुनवाई की.

नक्शा मामले की जांच को लेकर नगर विकास व आवास विभाग के एडिशनल सेक्रेटरी श्रीकांत किशोर मिश्र की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है. यह समिति पूरे मामले की जांच कर शीघ्र रिपोर्ट देगी, जिससे कोर्ट को अवगत कराया जायेगा. यह जानकारी बुधवार को राज्य सरकार की ओर से हाइकोर्ट को दी गयी.

हाइकोर्ट ने रांची नगर निगम और आरआरडीए में नक्शा पास करने के लिए 20 से लेकर 30 रुपये प्रति वर्गफीट अवैध राशि वसूली को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज मामले की सुनवाई की. जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के आग्रह को स्वीकार करते हुए समय प्रदान किया. खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट पेश करने को कहा.

वहीं आरआरडीए व रांची नगर निगम को एक जनवरी 2022 से लेकर 30 नवंबर 2022 तक किसी आपत्ति के आधार पर लौटाये गये नक्शों और लंबित नक्शों के बारे में विस्तृत जानकारी शपथ पत्र के माध्यम से देने का निर्देश दिया. हालांकि प्रतिवादी की ओर से लिखित रूप में आंकड़ा लाया गया था.

खंडपीठ ने रांची नगर निगम व आरआरडीए में नक्शा स्वीकृत करने की प्रक्रिया पर लगी रोक को बरकरार रखा. मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने 15 दिसंबर की तिथि निर्धारित की. सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन व अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार ने पक्ष रखा.

प्रभात खबर में प्रकाशित खबर पर कोर्ट ने लिया है संज्ञान :

निर्धारित शुल्क के अलावा भवनों का नक्शा पास करने के लिए अवैध राशि मांगी जाती है. अवैध राशि नहीं देने पर नक्शा स्वीकृत नहीं होता है. नक्शा लंबित रहता है. छोटे मकान के लिए 30 से 50 हजार तथा अपार्टमेंट का नक्शा पास करने के लिए 20-30 रुपये तक प्रति वर्ग फीट अवैध राशि वसूली जाती है.

प्रभात खबर में 29 नवंबर को इससे संबंधित खबर प्रकाशित होने पर झारखंड हाइकोर्ट ने उसे रिट याचिका में तब्दील कर दिया था. पिछली सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा था कि खबर प्रकाशित होने के बाद रांची नगर निगम व आरआरडीए में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ क्या कार्रवाई की गयी है. क्यों नहीं इन संस्थानों के भ्रष्टाचार की जांच सीबीआइ से करायी जाये.

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