पिछले महीने निजी क्षेत्र द्वारा निर्मित भारत का पहला अंतरिक्ष यान विक्रम-एस का प्रक्षेपण अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक घटना है. अन्य कुछ स्टार्टअप कंपनियां भी इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए तैयार हैं. ये कंपनियां प्रक्षेपण वाहन यानी रॉकेट से लेकर उपग्रहों तक के निर्माण में संलग्न हैं. उल्लेखनीय है कि 2021 में निजी क्षेत्र को स्पेस सेक्टर में आने की मंजूरी दी गयी थी.
इस नीति का उद्देश्य यह है कि स्टार्टअप भी शोध एवं अनुसंधान में योगदान दे सके तथा संबंधित अर्थव्यवस्था को गति मिले. इस नीति के परिणाम अब हमारे सामने आने लगे हैं. आज से चालीस साल पहले हमारी सरकारी अंतरिक्ष संस्था इसरो के लिए ही इस तरह की उपलब्धियां हासिल करना मुश्किल था, पर आज छोटी-छोटी कंपनियां भी प्रक्षेपण और उपग्रह निर्माण करने लगी हैं.
हमारे देश की अंतरिक्ष यात्रा में यह एक महत्वपूर्ण चरण है. इसका दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह प्रगति देश के लिए बहुत बड़ा व्यावसायिक अवसर भी है. स्पेस सेक्टर में बहुत तरह के काम और एप्लिकेशन हैं. उम्मीद है कि निजी क्षेत्र नये-नये अन्वेषण से इस क्षेत्र को समृद्ध करेंगे. हम अमेरिका में देख रहे हैं कि स्पेस एक्स और ब्लू ओरिजिन जैसी निजी कंपनियां तेजी से बढ़ोतरी कर रही हैं. ये कंपनियां अलग-अलग एप्लिकेशनों पर काम कर रही है.
यह समझना जरूरी है कि निजी कंपनियां केवल इसलिए इस क्षेत्र में नहीं आ रही है कि उन्हें अंतरिक्ष अनुसंधान करना है या इंजीनियरिंग से संबंधित आयामों को विकसित करना है, वे इसलिए भी आ रही हैं कि आगे के लिए स्पेस सेक्टर में बहुत सारे अवसर पैदा होंगे. इसे इसी नजरिये से देखना चाहिए कि निजी उद्यम और निवेशक कई कारोबारी संभावनाओं को देख रहे हैं.
यह उत्साहजनक बात है कि हमारे यहां इंजीनियरिंग प्रतिभाओं की कमी नहीं है और उन्हें जब सही मौका मिलेगा, तो वे अच्छा काम कर सकते हैं. विक्रम-एस के सफल प्रक्षेपण से यह साबित भी हुआ है तथा इससे बड़ा प्रोत्साहन भी मिलेगा. इसरो पहले से ही कई देशों के उपग्रहों को अपने रॉकेटों के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजता रहा है. बहुत सारे देशों के पास प्रक्षेपण की सुविधा या क्षमता नहीं है. निजी क्षेत्र के आने से इस व्यावसायिक क्षेत्र का भी विस्तार होगा.
आज जो स्पेस एप्लिकेशन हैं, चाहे वह संचार से संबंधित हो, सैटेलाइट इमेजरी हो, मौसम से संबंधित सूचनाएं हों, कृषि क्षेत्र में उपयोगिता हो, लॉजिस्टिक के लिए हो, उनका बहुत इस्तेमाल किया जा रहा है. विकासशील देशों में एक समय तक इन उपयोगिताओं का व्यावसायिक महत्व नहीं था, लेकिन आज जैसे-जैसे उन देशों की आमदनी में बढ़ोतरी हो रही है और जरूरतों में वृद्धि हो रही है, बाजार में मांग बढ़ रही है, तो उन्हें इन एप्लिकेशनों की जरूरत भी पड़ रही है.
उदाहरण के लिए, बांग्लादेश को देखें. आज से दो दशक पहले उसकी आर्थिक क्षमता ऐसी नहीं थी कि वह ऐसे एप्लिकेशन की मांग करे. पर आज वह ऐसी सुविधाओं को खरीद रहा है. ऐसे देशों में अपने रॉकेट छोड़ने, सैटेलाइट भेजने या एप्लिकेशन विकसित करने की क्षमता नहीं है. ऐसे में वे उन देशों के पास जायेंगे, जहां अच्छे और सस्ते में उनकी जरूरतें पूरी हो सकें. अफ्रीका, एशिया और लातिनी अमेरिका में ऐसे बहुत सारे देश हैं.
तो एक तो यह बात है कि स्पेस सेक्टर में आने वाली मांग नयी मांग है, जो पहले मुख्य रूप से विकसित देशों या बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से आती थीं. यह बाजार बहुत विस्तृत हो चुका है और लंबे समय तक यह विस्तार जारी भी रहेगा. दूसरी बात यह है कि जो विकासशील देश हैं, उनके लिए खर्च बहुत बड़ा कारक है. भारत की कंपनियां और सर्विस प्रोवाइडर पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम दाम में इन देशों को तकनीकी और एप्लिकेशन मुहैया कराने की क्षमता रखते हैं. इस लिहाज से भी स्टार्टअप का स्पेस के क्षेत्र में आना हमारे लिए बड़ा अवसर है.
स्पेस नवोन्मेष का क्षेत्र है. स्पेस तकनीक के कई एप्लिकेशन का पता हमें पहले से है, जैसे- मौसम का पूर्वानुमान लगाना, किसानों को जानकारी मुहैया कराना, भूमि और मिट्टी का आकलन, खनन क्षेत्र में, लॉजिस्टिक में इस्तेमाल, संचार आदि. अब यह बात आ रही है कि सैटेलाइट के माध्यम से हम पूरे यातायात नेटवर्क को जोड़ सकते हैं. जीपीएस तकनीक का उपयोग आम बात हो गयी है.
अब जो आगे नवोन्मेष होंगे, वे बहुत से एप्लिकेशन लायेंगे, जिनमें कई ऐसे हो सकते हैं, जिनका अभी हमें अनुमान तक नहीं है. यह भी ध्यान में रहे कि हाल तक जो सैटेलाइट से सेवाएं मिलती थीं, उनका इस्तेमाल मुख्य रूप से सरकारी संस्थाओं या बड़े कॉरपोरेट द्वारा होता था. जैसे कि मौसम के पूर्वानुमान से संबंधित सूचनाएं मौसम विभाग लेता था. अब सबके हाथ में स्मार्ट फोन हैं और एप बने हुए हैं.
ऐसे में स्पेस तकनीक और सेवाओं का उपभोक्ता साधारण नागरिक भी हो सकता है. कोई छोटा किसान भी बीस रुपये मासिक भुगतान कर एप के जरिये सूचना हासिल कर सकता है. रियल टाइम में हमें जरूरी जानकारियां मिल सकती हैं. छोटे ट्रांसपोर्टर भी अपने ट्रकों की स्थिति देख पायेंगे. इस तरह अभी तक जो तकनीक विशिष्ट थी, अब आम जन की पहुंच में होगी. इसे तकनीक का लोकतंत्रीकरण कहा जा सकता है.
स्टार्टअप कंपनियों को यह पता है कि सैटेलाइट सेवाओं का बाजार बहुत बड़ा है और इसका लगातार विस्तार होता जायेगा. विकासशील देश और उनके नागरिक कुछ समय पहले तक बहुत सारी सेवाओं के इस्तेमाल के बारे में सोच भी नहीं सकते थे, पर अब स्थिति बदल रही है. इनका लाभ निजी क्षेत्र की कंपनियां उठा सकेंगी. कहने की आवश्यकता नहीं है कि व्यवसाय बढ़ने के साथ इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे तथा सहायक उद्यमों का विकास भी होगा. नयी प्रतिभाओं के प्रयासों से नवाचार का नया वातावरण पैदा होने की उम्मीद की जा सकती है.
समुचित नियमन के साथ इस क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोलने की जो आवश्यकता थी, उसे सरकार ने पूरा कर दिया है. सरकार के स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं के माध्यम से इस क्षेत्र का समर्थन किया जाना चाहिए. ऋण और निवेश उपलब्ध कराने में कुछ सहूलियत दी जाए, तो बेहतर होगा.
स्पेस तकनीक का जो इकोसिस्टम हमारे देश में बना हुआ है, चाहे टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर हो, बड़ी प्रयोगशालाएं हों, विशेषज्ञता हो, पांच-छह दशक का जो सरकारी संस्थाओं का अनुभव है, यह सब तकनीक और विशेषज्ञता अगर निजी क्षेत्र को भी उपलब्ध हों, विकास में बहुत तेजी आ सकती है.