23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

स्मृति विशेष…पिंड्राजोरा में पहली बार समरेश सिंह ही लेकर आये थे अटलजी को

झारखंड के कद्दावर नेता समरेश सिंह का गुरुवार को निधन हो गया. शुक्रवार को चंदनकियारी में उनका अंतिम संस्कार किया जायेगा. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को 1984 में बोकारो जिला के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र पिंड्राजोरा में सर्वप्रथम लाने वाले समरेश सिंह ही थे.

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को 1984 में बोकारो जिला के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र पिंड्राजोरा में सर्वप्रथम लाने वाले समरेश सिंह ही थे. दादा एवं वीर समरेश की उपाधि उन्हें ऐसे ही नहीं मिली. समरेश सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में कई ऐसेअद्भुत कारनामे दिखाये, जिसकी वजह से उन्हें दादा और वीर की उपाधि मिली. समरेश सिंह ने पहली बार 1984 को तीन हजार बैल गाड़ियों के साथ बोकारो एडीएम बिल्डिंग का घेराव का काम किया था. उनके राजनीतिक साथी पूर्व सरपंच मनोहर दुबे, पूर्व मुखिया परीक्षित माहथा, पूर्व सरपंच गया राम सिंह चौधरी, राधू राय ने नम आंखों से बताया कि समरेश सिंह को वीर की उपाधि ऐसे ही नहीं मिली.

Also Read: स्मृति विशेष… राजनीति में समरेश सिंह का था अंदाज-ए-बयां, बंगाली पाड़ा से शुरू हुआ था सियासी सफर

1993 में संसदीय क्षेत्र गिरिडीह से उन्होंने चुनाव लड़ा और चुनाव हार गये. उन्होंने अपनी चुनावी सभा में कहा था कि मैं चुनाव एक वीर की भांति लड़ना चाहता हूं और एक वीर की तरह चुनाव भी लड़ कर दिखाये. उन्होंने उग्रवाद प्रभावित पीरटांड़ से टुंडी तक पूरे घने जंगली क्षेत्र में सैकड़ों लोगों के साथ अस्त्र-शस्त्र के साथ भ्रमण किया था.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दी थी ‘वीर’ की उपाधि

क्षेत्र के ग्रामीणों एवं समरेश समर्थकों ने बताया कि पिंड्राजोरा में चुनावी सभा के दौरान समरेश सिंह को वीर समरेश कह कर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने संबोधित किया था. उसी दिन से पूरे एकत्रित बिहार-झारखंड में वीर समरेश के नाम से जाना जाने लगे. बोकारो की धरती पर पहली बार पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलाम को लाने वाले पूर्व मंत्री समरेश सिंह ही थे. पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलाम ने भी चिन्मया विद्यालय में अपने संबोधन में कहा था कि ‘लीडर लाइक ए समरेश सिंह’ तात्पर्य यह था नेता अगर हो तो समरेश के ही जैसा.

वनांचल का मुद्दा उठाकर झारखंड में दिया था भाजपा को विस्तार

झारखंड में भाजपा के विस्तार में भी समरेश सिंह का अहम योगदान रहा है. 1980-90 के दशक में समरेश अविभाजित बिहार में भाजपा के कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते थे. इन्होंने भाजपा को अलग राज्य के आंदोलन से जोड़कर अविभाजित बिहार के इस हिस्से में पार्टी के विस्तार में भूमिका निभायी थी. जबकि, उन दिनों मुख्यतः झारखंड मुक्ति मोर्चा ही अलग झारखंड राज्य की लड़ाई के लिए जाना जाता था और इसके चलते झामुमो को राज्य में सांगठनिक विस्तार में काफी मदद मिलती थी. उसी दौर में 1980 में भाजपा का अधिवेशन गया (बिहार) में हुआ था. इसमें समरेश ने अलग वनांचल राज्य के निर्माण की जोरदार वकालत की. इस मुद्दे पर इन्हें इंदर सिंह नामधारी जैसे नेता का सहयोग भी मिला.

समरेश ने तत्कालीन संयुक्त बिहार के भाजपा अध्यक्ष कैलाशपति मिश्र को बिहार बंटवारा के अपने तर्क से संतुष्ट किया. इसके बाद पार्टी में इस मुद्दे पर सहमति बनी और इसके लिए बनी समिति में करिया मुंडा अध्यक्ष बनाये गये. भाजपा ने वनांचल के नाम पर अलग राज्य की मांग तेज कर दी. इसके परिणामतः भाजपा झारखंड में तेजी से पांव पसारने लगी. थोड़े समय में ही झारखंड के हिस्से में यह भाजपा का भी मुख्य मुद्दा बन चुका था और उस आंदोलन को तेज करने में समरेश सिंह का भी अहम योगदान था. समरेश ने करीब डेढ़ दशक तक वनांचल निर्माण के लिए पार्टी के प्रत्येक आंदोलनों और कार्यक्रमों को सफल बनाने में महती भूमिका निभाई. वह वनांचल की लड़ाई में इस कदर जुड़ चुके थे कि 1990 के चुनाव के बाद जब भाजपा छोड़ी तब भी ”वनांचल” को नहीं छोड़ सके. उसे इस रूप में भी देखा जा सकता है कि इन्होंने अलग राज्य के निर्माण के बाद जब अपनी खुद की पार्टी बनाई तब भी उसका नाम ”झारखंड-वनांचल कांग्रेस” रखा.

रिपोर्ट : ब्रह्मदेव दुबे, पिंड्राजोरा

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें