International Day Of Abolition For Slavery 2022: संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1986 से 2 दिसंबर को प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस (International Day for the Abolition of Slavery) मनाया जाता है. इस दिन का फोकस गुलामी के समकालीन रूपों, जैसे व्यक्तियों की तस्करी, यौन शोषण, बाल श्रम के सबसे खराब रूप, जबरन विवाह और सशस्त्र संघर्ष में बच्चों की जबरन भर्ती के उन्मूलन पर है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2 दिसंबर 1949 को रेजोल्यूशन 317 (IV) पारित हुआ, जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस को अडॉप्ट किया गया, इसमें मुख्य उद्देश्य मानव तस्करी रोकना और दूसरों के वेश्यावृत्ति के शोषण को रोकना था .
18वीं शती में पश्चिम में दासप्रथा उन्मूलन संबंधी वातावरण बनने लगा था. अमरीकी स्वातंत्र्य युद्ध का एक प्रमुख नारा मनुष्य की स्वतंत्रता था और फलस्वरूप संयुक्त राज्य के उत्तरी राज्यों में सन् 1804 तक दासताविरोधी वातावरण बनाने में मानवीय मूल अधिकारों पर घोर निष्ठा रखनेवाली फ्रांसीसी राज्यक्रांति का अधिक महत्व है. अमरीकी महाद्वीपों के सभी देशों में दासताविरोधी आंदोलन प्रबल होने लगा.
संयुक्त राज्य अमरीका के उदारवादी उत्तर राज्यों में दासता का विरोध जितना प्रबल होता गया उतनी ही प्रतिक्रियावादी दक्षिण के दास राज्यों में दासों के प्रति कठोरता बरती जाने लगी तथा यह तनाव इतना बढ़ा कि अंतत: उत्तरी तथा दक्षिणी राज्यों के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया. इस युद्ध में अब्राहम लिंकन के नेतृत्व में दासविरोधी एकतावादी उत्तरी राज्यों की विजय हुई. सन् 1888 के अधिनियम के अनुसार संयुक्त राज्य में दासता पर खड़े पुर्तगाली ब्राजील साम्राज्य का पतन हुआ.
शनै: शनै: अमरीकी महाद्वीपों के सभी देशों से दासता का उन्मूलन होने लगा. 1890 में ब्रसेल्स के 18 देशों के सम्मेलन में हब्श दासों के समुद्री व्यापार को अवैधानिक घोषित किया गया. 1919 के सैंट जर्मेन संमेलन में तथा 1926 के लीग ऑव नेशंस के तत्वावधान में किए गए संमेलन में हर प्रकार की दासता तथा दासव्यापार के संपूर्ण उन्मूलन संबंधी प्रस्ताव पर सभी प्रमुख देशों ने हस्ताक्षर किए. ब्रिटिश अधिकृत प्रदेशों में सन् 1833 में दासप्रथा समाप्त कर दी गई . अन्य देशों में कानूनन इसकी समाप्ति इन वर्षों में हुई – भारत 1846, स्विडेन 1859, ब्राजिल 1871, अफ्रिकन संरक्षित राज्य 1897, 1901, फिलिपाइन 1902, अबीसीनिया 1921. इस प्रकार 20वीं शती में प्राय: सभी राष्ट्रों ने दासता को अमानवीय तथा अनैतिक संस्था मानकर उसके उन्मूलनार्थ कदम उठाए.
दक्षिण एशिया विशेष रूप से भारत, पाकिस्तान और नेपाल में ग़रीबी से तंग लोग ग़ुलाम बनने पर मजबूर हुए. भारत में भी बंधुआ मज़दूरी के तौर पर दास प्रथा जारी है. हालांकि सरकार ने वर्ष 1975 में राष्ट्रपति के एक अध्यादेश के जरिए बंधुआ मज़दूर प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था, किंतु इसके बावजूद यह सिलसिला आज भी जारी है. भारत के ‘श्रम व रोजगार मंत्रालय’ की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार देश में 19 प्रदेशों से दो लाख 86 हज़ार 612 बंधुआ मज़दूरों की पहचान की गई और उन्हें मुक्त कराया गया. उत्तर प्रदेश के 28 हज़ार 385 में से केवल 58 बंधुआ मज़दूरों को पुनर्वासित किया गया.