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देवघर कॉलेज के राष्ट्रीय सेमिनार में वक्ताओं ने कहा – आदिवासियों के इतिहास को सिलेबस में लाने की जरूरत

भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के वित्तीय सहयोग से देवघर कॉलेज में ट्रायबल्स ऑफ झारखंड एंड फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया विषय पर सेमिनार आयोजित किया गया. जहां शोधार्थियों द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किया गया.

भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के वित्तीय सहयोग से देवघर कॉलेज में ट्रायबल्स ऑफ झारखंड एंड फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया विषय पर सेमिनार आयोजित किया गया. जहां शोधार्थियों द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किया गया. इसके बाद पैनल डिस्कशन हुआ. मौके पर मुख्य अतिथि बिहार के पूर्व मंत्री कृष्णानंद झा ने कहा कि संगोष्ठी में जितनी वार्ताएं हुई निश्चय ही महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होंगे. उन्होंने पहाड़िया जनजाति के स्वभाव और संस्कृति से संथालों के अंतर को बताया. उन्होंने शोधकर्ताओं से स्वार्थहित से ऊपर उठकर प्रामाणिक और निष्कलंक लेखन की अपील की. साथ ही कहा कि आदिवासियों के इतिहास को पाठ्यक्रम में लाने की जरूरत है.

स्वतंत्रता के संघर्षों को फिर से करें अध्ययन

विशिष्ठ अतिथि नीदर लैंड के डॉ मोहन कांत गौतम ने कहा स्वतंत्रता संघर्षों को फिर से अध्ययन करें. साथ ही शोध कार्य करें. उनकी लिखी गयी बातों का अनुवाद करें. एक प्रामाणिक पुस्तक के रूप में सम्मुख लाने के प्रयास की आवश्यकता है, तभी इस संगोष्ठी की सार्थकता होगी. डॉ मनीष कुमार झा ने दो दिवसीय संगोष्ठी की विविध गतिविधियों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत किया. डॉ अजय कुमार सिन्हा ने अतिथियों का स्वागत किया. वहीं धन्यवाद ज्ञापन प्राचार्य डॉ बसंत कुमार गुप्ता ने किया. कार्यक्रम का संचालन संयोजक डॉ अंजनी शर्मा ने किया. मौके पर एनसीसी पदाधिकारी डॉ राजेश कुमार सिंह व अन्य मौजूद थे.

टेक्निकल सेशन रहा विशेष

संगोष्ठी का टेक्निकल सत्र खास रहा. जहां प्रो मोहन कांत गौतम ने अध्यक्षता की. उन्होंने कहा कि विविध माध्यम से किये रिसर्च और शोधों की संदिग्धता से बचते हुए इतिहासकारों को आगे इन विषयों पर कार्य करने होंगे. साक्ष्यों को संरक्षित करने का सार्थक कार्य इतिहासकार ही कर सकते हैं. एन्थ्रोपलोजी लखनऊ विश्वविद्यालय के सेवा निवृत प्रो डॉ अजय प्रताप ने बिरसा मुंडा, सिदो कान्हू मुर्मू के स्वतंत्रता संघर्ष में योगदान पर चर्चा की. दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो डॉ अमरनाथ झा ने पहाड़िया मूवमेंट्स पर किये शोध और पुस्तकों के बारे में बताया. उन्होंने कहा इन विषयों पर शोध हुए हैं. किताबें भी लिखी गयी हैं. आवश्यकता है उस शोध को ढूंढने की, जो संताल परगना के इतिहास को समझने में कारगर सिद्ध होगा.

विरहोर जाति की शिक्षा दर सर्वाधिक न्यूनतम

शोध सामग्री की चर्चा के क्रम में उन्होंने पहाड़िया जनजाति पर बीएचयू के डॉ अजय प्रताप सिंह की पुस्तक के बारे में भी बताया. कल्याणी यूनिवर्सिटी के प्रो जयंत मेटे ने एडुकेशन ऑफ ट्रायबल चिल्ड्रेन झारखंड पर चर्चा करते हुए संताल परगना की शिक्षा दर से अवगत कराया, जिसमें विरहोर जाति की शिक्षा दर सर्वाधिक न्यूनतम है. शिक्षा दर की कमी पर उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए उनके विकास में बाधक कहा. पाकुड़ कॉलेज की प्रभारी प्राचार्य डॉ सुशीला हेम्ब्रम ने संताल परगना की वीरांगनाओं की चर्चा की. पूजा झा ने शोध पेपर प्रस्तुत की. इसके साथ ही प्रश्नोत्तरी सत्र में रोचक विमर्श किया गया. चौथे सत्र के मुख्य वक्ता डॉ मोहन कांत गौतम ने दीवानी के बाद विभिन्न अंचलों पर अंग्रेजों का आधिपत्य और वहां के आदिवासियों की तत्कालीन स्थिति को बताया. उन्होंने आदिवासियों की सोच और लड़ाई को जमीनी स्तर पर तो देखा ही. साथ ही अंग्रेजों के साथ आदिवासियों के संघर्षों को व्यापकता से प्रकाश डाला.

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