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Harihar Kshetra Sonpur Fair: देशभर में प्रसिद्ध है हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला, क्यों है यह चर्चित

Harihar Kshetra Sonpur Fair: हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला पूरे देशभर में प्रसिद्ध है. गंगा व गंडक के संगम पर स्थित हरिहर क्षेत्र का अपना विशेष धार्मिक महत्व है. हरिहर क्षेत्र मेला' और 'छत्तर मेला' के नाम से भी जाने जाना है. आइये जानते हैं आखिर क्यों प्रसिद्ध है हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला...

Harihar Kshetra Sonpur Fair: धर्म, कर्म, अर्थ, व्यापार की उत्सव यात्रा का प्रतीक हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला का स्वर्णिम अतीत सम्मेलन प्रधान रहा है. आस-पास के लोगों की रोजमर्रा की जीवनशैली में यह मेला सिर्फ उत्सवी माहौल ही लेकर नहीं आता, बल्कि धर्म और अध्यात्म को भी अपने में समाहित करने के लिए आता है. यहां भारतीय विचारधाराओं का सतरंगी वैभव, सूरज की प्रथम किरणों की तरह उदित होता रहा है. गंगा व गंडक के संगम पर स्थित हरिहर क्षेत्र का अपना विशेष धार्मिक महत्व है.

राणों में वर्णित इस जगह के बारे में कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के पुरोहितों में यहां देवताओं ने एक यज्ञ का आयोजन किया. कोई कारणवश यह यज्ञ विध्वंस हुआ, फिर देवताओं ने हर की स्थापना की और यज्ञ को सफल बनाया. तब से हरिहर क्षेत्र लोक के रूप में चर्चित हुआ. पद्म पुराण में यह भी वर्णन है कि साल ग्रामीण उत्तर हिमालय के दक्षिण की पृथ्वी महाक्षेत्र है. यहां बाबा हरिहरनाथ का मंदिर है. उसी स्थान पर भगवती, शालिग्रामी पतीत पावनी गंगा में आकर नारायण नदी मिलती है. अत: संगम क्षेत्र होने के कारण इस महाक्षेत्र का माहात्मय बहुत बढ़ जाता है. यह भी कथा है कि नारायणी नदी तथा गंगा का संगम होने एवं महाक्षेत्र के अंतिम भाग होने के कारण ही यहां हरि और हर की स्थापना हुई.

वैष्णव-शैव मतों के संघर्ष का साक्षी

प्राचीन भारत वैष्णवों और शैव भक्तों के बीच सदियों से चलने वाली लड़ाई का साक्षी रहा था. इस विवाद की समाप्ति के लिए गुप्त वंश के शासन काल में कार्तिक पूर्णिमा को वैष्णव और शैव आचार्यों का एक विराट सम्मेलन सोनपुर गंडक तट पर आयोजित हुआ. यह दोनों संप्रदायों के बीच समन्वय की विराट कोशिश थी, जिसमें विष्णु और शिव दोनों को ईश्वर के ही दो रूप मानकर विवाद का सदा के लिए अंत कर दिया गया. उसी दिन की स्मृति में यहां देश में पहली बार विष्णु और शिव की संयुक्त मूर्तियों के साथ हरिहर नाथ मंदिर की स्थापना हुई. तब से हिंदुओं द्वारा हर साल कार्तिक पूर्णिमा को नदियों के संगम में स्नान कर हरिहर नाथ मंदिर में श्रद्धा निवेदित करने की परंपरा चली आ रही है.

उत्तर वैदिक काल से शुरुआत

‘हरिहर क्षेत्र मेला’ और ‘छत्तर मेला’ के नाम से भी जाने जाना वाला सोनपुर मेले की शुरुआत कब से हुई, इसकी कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है, परंतु यह उत्तर वैदिक काल से माना जाता है. महापंडित राहुल सांकृत्यान ने इसे शुंगकाल का माना है. शुंगकालीन कई पत्थर और अन्य अवशेष सोनपुर के कई मठ-मंदिरों में उपलब्ध रहे हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह स्थल ‘गजेंद्र मोक्ष स्थल’ के रूप में भी चर्चित है.

गज-ग्राह की कथा

पुराणों में गज-ग्राह की विभिन्न कथाएं प्राप्त होती हैं. एक यह भी कथा है कि स्वेत दीप के सरोवर में श्री देवमुनि एक बार स्नान कर रहे थे, तभी एक गंदर्भ ने कौतुहलवश उनका पैर पकड़ लिया. मुनी ने क्रुध होकर श्राप दिया- तू ग्राह (घड़ियाल) हो जा व तत्क्षण ग्राह हो गया. दूसरी ओर इंद्रधवण नामक एक राजा किसी गुफा में घोर तपस्या में लीन थे. संयोग से वहां ऋषिवर अगस्त जी पहुंच गये. तपस्या में लीन स्वाभिमानी राजा ने ऋषी का स्वागत-सत्कार नहीं किया. क्रोधवश मुनि ने उन्हें श्राप दिया तू गज (हाथी) हो जा. एक समय वह गज गंडक के संगम पर पानी पीने गया. उक्त श्रापित ग्राह ने उनका पैर पकड़ लिया. चीर काल तक दोनों के बीच युद्ध होता रहा.

अंत में हरि ने स्वयं आकर दोनों का उद्धार किया और उसी की परिणीति में हरिहर की स्थापना हुई. वह दिन कार्तिक पूर्णिमा का था. इसके अलावस सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य महाभारत में भी वेदव्यास ने गज और ग्राह की कथा का वर्णन विस्तार से किया है. इसमें सुव्याख्त गजग्राह युद्ध का स्थल हरिहर क्षेत्र ही चिन्हित किया गया है. महामुनी नारद ने राजा पृथु को पद्मपुराण में 145 श्लोकों में हरिहर क्षेत्र की महत्ता, उत्पति इसकी साधना ने गया और प्रयाग से इसकी तुलना किया गया है. हरिहर क्षेत्र शालिग्राम क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है. पुराणों के अनुसार, शालिग्राम क्षेत्र के चारों दिशाओं में बारह-बारह योजना है. पद्मपुराण के पताल खंड में भी शालिग्राम महास्थल तथा शालिग्राम उत्पति का वर्णन देवी भागवत व ब्रह्मा प्राकृतिक खंड में दर्ज है.

विश्व प्रसिद्ध है यहां का मेला

कार्तिक पूर्णिमा के दिन गज-ग्राह युद्ध होने की वजह से हर वर्ष यहां करीब एक महीने तक मेले का आयोजन किया जाता है, जिमसें देश के विभिन्न भागों से नहीं, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं. इसकी ऐतिहासिकता धार्मिक महत्व की वजह से यह मेला विश्व का प्रसिद्ध मेला कहा जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन देश के विभिन्न भागों से सैकड़ों की संख्या में साधु-संत के अलावे विभिन्न धर्मालंबी यहां टेंट और तंबू लगाते हैं और पांच दिनों तक सनातन धर्म के अनुसार भजन, कीर्तन, कबीर पंथ के अनुयायी, सिख धर्म के अनुयायी आकर इस मेले की महत्ता में चार चांद लगाते हैं. हरिहर क्षेत्र मेला में ही कई मठ-मंदिरों की शृंखला है, जहां श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा के दिन जलाभिषेक करते हैं. मुख्य जलाभिषेक का आयोजन बाबा हरिहरनाथ मंदिर में होता है. कार्तिका पूर्णिमा के दिन गंगा व गंडक का संगम स्थल होने के कारण यहां स्नान की पवित्रता को लेकर भी लोग श्रद्धा-भाव से जुटते हैं और यहां आकर खुद को धन्य समझते हैं.

ठाकुर संग्राम सिंह

(लेखक प्रभात खबर, पटना से संबद्ध हैं)

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