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देवघर सदर अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में सात महीने में 506 का इलाज, नहीं बचाये जा सके 47 नवजात

स्वास्थ्य विभाग की ओर से नवजात शिशुओं के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सदर अस्पताल के लेबर वार्ड के समीप एसएनसी ( स्पेशल न्यू बोर्न केयर ) यूनिट का संचालन किया जा रहा है. इस एसएनसीयू में सात महीने में 47 नवजात की मौत हो गई है.

Deoghar Sadar Hospital News: स्वास्थ्य विभाग की ओर से नवजात शिशुओं के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से देवघर सदर अस्पताल (Deoghar Sadar Hospital) के लेबर वार्ड के समीप एसएनसी ( स्पेशल न्यू बोर्न केयर ) यूनिट का संचालन किया जा रहा है. इस एसएनसीयू में सात महीने में 506 नवजात शिशु भर्ती किये गये. जिनमें से 406 नवजात इलाज के बाद स्वस्थ होकर घर चले गये. जबकि 47 नवजातों को बचाया नहीं जा सका.

क्या कहते हैं आंकड़े

आंकड़ों के मुताबिक इलाजरत 506 नवजातों में 41 शिशुओं की स्थिति गंभीर देखकर उन्हें रेफर कर दिया गया. जबकि 12 शिशुओं को उनके परिजन बिना डिस्चार्ज कराये ही लेकर लोट गये. इस क्रम में कुल 506 शिशुओं में 47 नहीं बच सके. बता दें कि शिशु मृत्यु दर रोकने के लिए विभाग करोड़ों खर्च कर बेहतर संसाधन मुहैया करा रहा है. इसके लिए सदर अस्पताल में एसएनसीयू भी खोला गया, मगर अब भी यहां तकरीबन नौ फीसदी शिशुओं की जान नहीं बच पा रही है. यह थोड़ी चिंताजनक स्थिति है. अप्रैल से अक्तूबर माह तक हर माह करीब सात से आठ शिशुओं की मौत हो रही है. ऐसे में हर माह एक-एक कर आंकड़ा बढ़ते जा रहा है. हालांकि, इस यूनिट शिशुओं के इलाज में चिकित्सक व नर्स लगे हुए हैं.

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एसएनसीयू का आंकड़ा

माह भर्ती रेफर मौत

अप्रैल 70 10 08

मई 71 05 09

जून 68 04 04

जुलाई 80 07 05

अगस्त 74 03 07

सितंबर 71 06 07

अक्टूबर 72 06 07

क्या कहते हैं एसएनसीयू प्रभारी

शिशुओं की मौत के कई कारण होते हैं. इसमें जन्म के बाद शिशु का देर से रोना, कम वजन, संक्रमण व प्रसव से पहले शिशु का जन्म हो जाना भी इसके कारण हैं. साथ ही सांस लेने में परेशानी भी हो सकती है. सदर अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में भर्ती होने वाले वैसे शिशुओं की अधिक हैं, जो बाहर से आये हैं. कुछ शिशुओं को बाहर के निजी क्लिनिक में भर्ती रखा जाता है. स्थिति में सुधार नहीं होने के बाद वहां के डॉक्टरों से मरीज को रेफर कर देते हैं. स्थिति खराब होने के बाद परिजनाें को इलाज के लिए सदर लाते हैं. ऐसे में उन बच्चों को संभालना मुश्किल हो जाता है. गंभीर अवस्था में बाहर से आने वाले करीब 75 प्रतिशत शिशुओंं की मौत हो जाती है.

डॉ प्रेमप्रकाश, शिशु रोग विशेषज्ञ सह एसएनसीयू प्रभारी

रिपोर्ट : राजीव रंजन, देवघर

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