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ऐसे हुआ था भारत में मुगलों का आगमन, जानें मुगल वंश के संस्‍थापक बाबर के बारे में

मुगल शासन 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ. आपको बता दें मुगल वंश का संस्थापक बाबर था, यहां देखें उसके बारे में सबकुछ

मुगल साम्राज्य 1526 में शुरू हुआ, मुगल वंश का संस्थापक बाबर था, अधिकतर मुगल शासक तुर्क और सुन्नी मुसलमान थे. मुगल शासन 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ.

बाबर का शुरुआती जीवन

बाबर पर अपने परिवार की जिम्मेदारी बहुत कम उम्र में ही आ गई थी. अपने पैतृक स्थान फरगना को वे जीत तो गए थे, लेकिन ज्यादा दिन तक वहां राज नहीं कर पाए, वे इसे कुछ ही दिनों में हार गए. जिसके बाद उसे बहुत कठिन समय देखना पड़ा, और उन्होंने बहुत मुश्किल से जीवन यापन किया. लेकिन इस मुश्किल समय में भी वे उनके कुछ वफादारों ने उनका साथ नहीं छोड़ा. कुछ सालों बाद जब उसके दुश्मन एक दुसरे से दुश्मनी निभा रहे थे, तब इस बात का फायदा बाबर ने उठाया और वे 1502 में अफगानिस्तान के काबुल को जीत लिए. इसके साथ ही उन्होंने अपना पैतृक स्थान फरगना व समरकंद को भी जीत लिया. बाबर की 11 बेगम थी, जिससे उसको 20 बच्चे हुए थे. बाबर का पहला बेटा हुमायूँ था, जिसे उसने अपना उत्तराधिकारी बनाया था.

बाबर का भारत आना

मध्य एशिया में जब बाबर अपना सामराज्य नहीं फैला पाया, तब उसकी नजर भारत पर हुई. उस समय भारत की राजनीतीक स्थिति बाबर को अपना साम्राज्य फैलाने के लिए उचित लग रही थी. उस समय दिल्ली के सुल्तान बहुत सी लड़ाईयां हार रहे थे, जिस वजह से विघटन की स्थिति उत्पन्न हो गई थी. भारत के उत्तरी क्षेत्र में कुछ प्रदेश अफगान और राजपूत के अंदर थे, लेकिन इन्ही के आस पास के क्षेत्र स्वत्रंत थे, जो अफगानी व राजपूतों के क्षेत्र में नहीं आते थे. इब्राहीम लोदी जो दिल्ली का सुल्तान था, एक सक्षम शासक नहीं था. पंजाब के गवर्नर दौलत खान इब्राहीम लोदी के काम से बहुत असंतुष्ट था. इब्राहीम के एक अंकल आलम खान जो दिल्ली की सलतनत के लिए एक मुख्य दावेदार थे, बाबर को जानते थे. तब आलम खान और दौलत खान ने बाबर को भारत आने का न्योता भेजा. बाबर को ये न्योता बहुत पसंद आया, उसे ये अपने फायदे की बात लगी और वो अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए दिल्ली चला गया.

पानीपत की लड़ाई

आलम खान और दौलत खान ने बाबर को पानिपत की लड़ाई के लिए बुलाया था. बाबर ने लड़ाई में जाने से पहले 4 बार पूरी जांच पड़ताल की थी. इसी दौरान कुछ गुस्से में बैठे अफगानी लोगों ने बाबर को अफगान में आक्रमण करने के लिए बुलाया. मेवार के राजा राना संग्राम सिंह ने भी बाबर को इब्राहीम लोधी के खिलाफ खड़े होने के लिए बोला, क्यूंकि राना जी की इब्राहीम से पुराणी रंजिश थी. इन्ही सब के चलते बाबर ने पानीपथ में इब्राहीम लोधी को युध्य के लिए ललकारा. अप्रैल 1526 में बाबर पानीपत की लड़ाई जीत गया, अपने को हारता देख इस युद्ध में इब्राहीम लोधी ने खुद को मार डाला . सबको ये लगा था कि बाबर इस लड़ाई के बाद भारत छोड़ देगा लेकिन इसका उल्टा हुआ. बाबर ने भारत में ही अपना साम्राज्य फ़ैलाने की ठान ली. भारत के इतिहास में बाबर की जीत पानीपत की पहली जीत कहलाती है इसे दिल्ली की भी जीत माना गया. इस जीत ने भारतीय राजनीती को पूरी तरह से बदल दिया, साथ ही मुगलों के लिए भी ये बहुत बड़ी जीत साबित हुई.

खनवा की लड़ाई

पानीपत की जीत के बाद भी बाबर की स्थिति भारत में मजबूत नहीं थी. राना संग्राम ने ही बाबर को भारत का न्योता दिया था, उन्हें लगा था वो वापस काबुल चला जायेगा. लेकिन बाबर का भारत में रहने के फैसले ने राना संग्राम को मुसीबत में डाल दिया. अपने आप को और मजबूत बनाने के लिए बाबर ने मेवार के राना संग्राम को चुनोती दी और उन्हें खनवा में हरा दिया. राना संग्राम सिंह के साथ कुछ अफगानी शासक भी जुड़ गए थे, जिसके बाद उन्होंने अफगान चीफ को भी हरा दिया. 17 मार्च 1527 में खनवा में दो विशाल सेना एक दुसरे से भीढ़ गई. राजपूतों ने हमेशा की तरह अपनी लड़ाई लड़ी, लेकिन बाबर की सेना के पास नए उपकरण थे, जिसका सामना राजपूत नहीं कर पाए और वे बहुत बुरी तरह से हार गए. राजपूत की पूरी सेना को बाबर की सेना ने मार डाला. राना संग्राम अपने आप को हारता देख भाग गए और खुदखुशी कर ली. राना संग्राम के मरने के साथ राजपूतों को अपना भविष्य खतरे में दिखाई देने लगा. इस जीत के साथ लोगों ने उसे घाज़ी की उपाधि दी.

घागरा की लड़ाई

राजपूतों को हराने के बाद भी बाबर को अफगानी शासक जो बिहार व बंगाल में राज्य कर रहे थे, उनके विरोध का सामना करना पड़ा. मई 1529 में बाबर ने घागरा में सभी अफगानी शासकों को हरा दिया.

बाबर अब तक एक मजबूत शासक बन गया था, जिसे कोई भी हरा नहीं सकता था. इसके पास एक विशाल सेना तैयार हो गई थी, कोई भी राजा बाबर को चुनौती देने से डरता था. ऐसे में बाबर ने भारत में तेजी से शासन फैलाया, वो देश के कई कोनों में गया और वहां उसने बहुत लूट मचाई. बाबर बहुत धार्मिक प्रवत्ति का नहीं था, उसने भारत में कभी भी किसी हिन्दू पर इस्लाम अपनाने के लिए दबाब नहीं डाला. आगरा, उत्तर्प्रदेश में उसने अपनी जीत की खुशी में एक सुंदर सा गार्डन बनवाया वहां उसने कुछ भी धार्मिकता को दर्शाने वाली वास्तु नहीं लगाई. इसे आराम बाग नाम दिया गया.

बाबर की मृत्यु

मरने से पहले बाबर पंजाब, दिल्ली, बिहार जीत चूका था. मरने से पहले उसने खुद की किताब भी लिखी थी जिसमें उसके बारे में हर छोटी बड़ी बात थी. बाबर का बीटा हुमायूँ था, कहते है जब वो 22 वर्ष का था तब एक भयानक बीमारी ने उसे घेर लिया, बड़े से बड़े वैद्य हकीम उसकी बीमारी को ठीक नहीं कर पा रहे थे सबका कहना था अब भगवान ही कुछ कर सकते है. बाबर हुमायूँ को बहुत चाहते थे, वे अपने उत्तराधिकारी को ऐसे मरते नहीं देख पा रहे थे. तब उन्होंने एक दिन हुमायूँ के पास जाकर भगवान से प्राथना की कि वो चाहें तो उसकी जान ले ले लेकिन हुमायूं को ठीक कर दे. उसी दिन से हुमायूं की हालत सुधरने लगी. जैसे जैसे हुमायूँ ठीक होते गया बाबर बीमार होते गया. सबने इसे भगवान का चमत्कार ही समझा. 1530 में हुमायूँ जब पूरा ठीक हुआ बाबर को मौत हो गई. बाबर का अफगानिस्तान ले जाकर अंतिम संसस्कार हुआ. हुमायूँ इसके बाद मुग़ल शासक बने और दिल्ली की गद्दी पर राज्य किया.

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