पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव (Patna University Students Union Election 2022) में पांच में से चार पदों पर जदयू ने अपना कब्जा कर लिया. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (Lalan Singh) ने रविवार को छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि छात्रसंघ चुनाव का परिणाम यह दर्शाता है कि मुख्यमंत्री नीतीश आज भी छात्रों में पॉपुलर हैं. इधर, छात्र संघ के चुनाव में एवीबीपी (ABVP) की करारी हार पर संगठन में बवाल मच गया है. छात्र संघ से जुड़े नेताओं ने इसके लिए संगठन प्रभारी को कठघरे में खड़ा कर दिया है.उनपर जात- पात और पक्षपात करने का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रत्याशियों के बीच आपसी समन्वय नहीं था. इसके कारण हम लोग यह चुनाव हार गए.
पटना विश्वविद्यालय में ABVP की सबसे ज्यादा पकड़ है. इसके बावजूद संगठन को पांच में से मात्र एक सीट (महासचिव) मिला. इसके बाद संगठन में इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर संगठन क्यों पटना विश्वविद्यालय में चुनाव हार गई ? संगठन से जुड़े छात्र इसको लेकर काफी आक्रोशित भी हैं. उनका कहना है कि हम इसदफा अपनी गलती के कारण चुनाव हार गए. प्रगति समेत प्रदेश के अन्य पद पर खड़े प्रत्याशी पर सवाल खड़ा करते हुए प्रदेश संगठन मंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि हर किसी को पता है कि बिहार में जातिगत समीकरण (caste equation) के आधार पर वोटिंग होता है. फिर पार्टी ने अपने परपंरागत वोटर (भूमिहार) को छोड़कर प्रगति को किस आधार पर प्रत्याशी बनाया. बताते चलें कि पटना विश्वविद्यालय में भूमिहार और यादव वोटरों की सबसे ज्यादा वोटर हैं. लेकिन, एवीबीपी ने उनको प्रत्याशी नहीं बनाया. छात्र नेताओं का कहना है कि आखिर क्यों? क्या एवीबीपी में इन दोनों जाति के छात्र नेता नहीं थे या फिर संगठन में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए एकतरफा फैसला किया गया.
छात्र नेताओं का कहना है कि पांच पदों पर चुनाव लड़ रहे जदयू के सभी प्रत्याशी एक साथ चुनाव प्रचार कर रहे थे.जबकि ABVP में इसका घोर अभाव दिखा. जदयू के सभी प्रत्याशी जहां एक साथ प्रचार करते दिखे वहीं ABVP सभी प्रत्याशी अलग- अलग चुनाव प्रचार कर रहे थे. ABVP में हर कोई अपने लिए प्रचार कर रहा था . जबकि जदयू के प्रत्याशी पांच पद पर खड़े अपने सभी प्रत्याशी के चुनाव प्रचार कर वोट मांग रहे थे.
ABVP के प्रत्याशी धनबल में पीछे रह गए. जबकि जदयू प्रत्याशियों ने चुनाव में नामांकन के बाद से ही कॉलेज और छात्रावास के सामने लगने वाले गोलगप्पा और मोमो के सभी के लिए फ्री कर दिया था. जबकि ABVP प्रत्याशी यहां पर पिछड़ गए. यह भी एक बड़ा कारण रहा कि पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ का ABVP चुनाव हार गई.