भागलपुर: पीस सेंटर परिधि की ओर से कला केंद्र भागलपुर में दो दिवसीय विरासत के बोल कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ. कार्यक्रम में देशभर के नामचीन कलाकारों व बुद्धिजीवियों ने शिरकत की. उनकी प्रस्तुति से यहां का माहौल सांस्कृतिक हो गया. कार्यक्रम का उद्घाटन डॉ सोहेल ने बुद्ध की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर किया. सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड सेकुलरिज्म के निदेशक इरफान इंजीनियर ने कहा कि डॉ सौहेल हाशमी लगातार साझी संस्कृति के लिए काम करते रहे हैं और यह देश की संस्कृति को एक ही नजर से देखते हैं. हम देश के अलग-अलग प्रांतों में अपने-अपने स्तर से देश की विविधता को बढ़ाने और देश की एकता को मजबूत करने के प्रयास में लगे हैं.
परिधि के निदेशक उदय ने अतिथियों का स्वागत किया. उद्घाटन भाषण में डॉ सौहेल हाशमी ने लोगों को भारतीय संस्कृति से अवगत कराया और विविधता में एकता पर जोर दिया. कोई भी संस्कृति भाषा, बोली, रहन-सहन, खान-पान व लिबास से तैयार होती है. भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है, पर मैं कहता हूं भारत की राष्ट्रभाषा हिंदुस्तानी है. भारत सरकार ने 21 भाषाओं को राष्ट्रभाषा घोषित किया है. अर्थात अस्पष्ट है कि भारत की एक राष्ट्रीय भाषा नहीं है और न हो सकती है. और वह इसलिए नहीं हो सकती कि भारत की जनसंख्या की बहुत बड़ा हिस्सा हिंदी नहीं जानता.
भाषा के नाम पर एकरूपता थोपने की कोशिश हो रही है. उसी प्रकार खानपान के नाम पर भी एक विचार को स्थापित करने की कोशिश हो रही है. क्या हम बिहार के खाने को पंजाबियों पर थोप सकते हैं. विविधता को नकारने की कोशिश हो रही. विविधता में एकता दिखाने के लिए हम धार्मिक चिह्न व प्रतीकों का ही इस्तेमाल करते हैं. हमने धर्म की दृष्टि से ही देश की एकता को प्रस्तुत करने की कोशिश की है. कोई सभ्यता-संस्कृति अपने आप में प्योर नहीं है. हजारों साल की सभ्यता-संस्कृति लगातार परिवर्तित होकर हम तक पहुंची. कोई संस्कृति लगातार अपने में कुछ नया जोड़ती है और पुराने को छोड़ देती है. मेरी नजर में यह कोशिश करना कि हम एक भारतीय पहचान बनाएंगे यह भारत को खत्म करने का बड़ा प्रयास है.
दिल्ली से आयी वेदी सिन्हा व पाखी सिन्हा ने प्रेम को संसार में नहीं बल्कि अंतर्मन में ढूंढ़ने के लिए सूफियाना अंदाज में निर्गुण मैं प्रेमघर भूली री भूली सखी री, सब दियो तन मन लाड लाडूली, अपनी पीर संग लाड़ सब भूली गाकर समां बांध दिया. फिर माया मन का मंदिर घंटा, सबका बड़ा है ज्ञान, क्योंकि बिखरी प्रजा और जनता डरी, यहां सांसत में है जान, देखो सखी राजा लगाये ध्यान…लोकगीत प्रस्तुत कर सामाजिक कुरीतियों व धर्मांधता पर चोट किया.
प्रेरणा कला मंच वाराणसी के कलाकारों ने फादर आनंद के निर्देशन में मुंशी प्रेमचंद रचित कहानी मंदिर-मस्जिद पर आधारित नाटक अमानत का मंचन किया. नाटक में सामंतवाद व धार्मिक विद्वेष पर चोट किया. सामाजिक सद्भाव व भाईचारा को स्थापित करते हुए दिखाया. नाटक में जमींदार इतरत अली का लठैत भजन सिंह है. दोनों एक-दूसरे पर खूब भरोसा करते हैं. मंदिर में मुस्लिम द्वारा विवाद करने पर इतरत अली भजन सिंह को आदेश देता है कि वहां विवाद को खत्म करे. इस दौरान इतरत अली का दामाद भजन सिंह के हाथों भूलवश मारा जाता है. कोर्ट में भजन सिंह को बचाने के लिए खुद इतरत अली आगे आते, लेकिन जब मस्जिद में भजन सिंह विवाद करता है, तो इतरत अली तलवार लेकर कहता है कि अब मामला बराबर होगा. मंदिर में मौत हुई है, तो मस्जिद में भी मौत होगी. भजन सिंह समाज को दंगा से बचाने का अनुरोध किया. फिर घर जाकर अपना सिर काटकर इतरत अली के पास भेज देता है. इतरत अली भजन सिंह का सिर देखकर खुद को सदमे से नहीं रोक पाता और खुद को मौत के घाट उतार देता है. हरिश पाल ने इतरत की भूमिका की, तो अजय पाल ने भजन सिंह की भूमिका की.
मंच का संचालन इलाहाबाद के कवि अंशु मालवीय ने किया तो धन्यवाद ज्ञापन संयोजक राहुल ने किया. कोलकाता से आये कलाकार अंकुर ने एकल नाटक लव स्टोरी का मंचन किया, तो श्वेता भारती ने ताल नृत्य संस्थान के कलाकारों के साथ स्थानीय लोक नृत्य प्रस्तुत किया. कार्यक्रम में एमएलसी डॉ एनके यादव, समाजसेवी रामशरण, डीएसडब्ल्यू प्रो योगेंद्र, प्रकाशचंद्र गुप्ता, उमा घोष, पूर्व डिप्टी मेयर डॉ प्रीति शेखर, संजीव कुमार दीपू, शिव शंकर सिंह पारिजात, तपन सिन्हा, डॉ वसुंधरा, श्वेता प्रियदर्शी, कमल जायसवाल, मनोज मीता, चैतन्य प्रकाश, गौतम मल्लाह, डॉ जयंत जलद, इकराम हुसैन शाद उपस्थित थे.