झारखंड के पहले गृहमंत्री व उपमुख्यमंत्री रहे आजसू प्रमुख सुदेश महतो शुक्रवार को ‘प्रभात खबर संवाद’ कार्यक्रम में पहुंचे. श्री महतो ने झारखंड आंदोलन से जुड़े अनुभव साझा किये, वहीं 25 वर्ष में विधायक बनने के बाद बिहार विधानसभा से जुड़े रोचक संस्मरण सुनाये़ राज्य के वर्तमान राजनीतिक हालात, स्थानीयता व ओबीसी के मुद्दे और भाजपा के साथ गठबंधन पर अपनी बेबाक राय दी.
राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री व आजसू नेता सुदेश कुमार महतो ने कहा कि यह सरकार अगर स्थानीयता व ओबीसी आरक्षण के हल के लिए आगे बढ़ती, तो धन्यवाद जरूर देता, लेकिन सरकार ने इसे उलझाने का काम किया है. सरकार ईमानदार नहीं रही, इसलिए इतने दिनों तक हल नहीं किया़. यह एक राजनीतिक पहल है. झामुमो कभी इसे लेकर ईमानदार नहीं रहा है, अलग राज्य को लेकर भी नहीं.
श्री महतो प्रभात खबर संवाद में अपनी बात रख रहे थे. उन्होंने कहा कि इसे नौवीं अनुसूची में डालने की जरूरत नहीं थी. दूसरी बड़ी बात, इसमें दूसरी कमी छोड़ दी. 1932 का खतियान आधार बनाने की बात कही, लेकिन भूमिहीन लोगों के लिए ग्रामसभा को अधिकार दे दिया. यह बड़ी गड़बड़ी है. इसके माध्यम से बाहरी लोगोंं की इंट्री होगी. यह सरकार अनुसूचित जाति को 10 से 12 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को 26 से 28 व ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की बात कह रही है.
दूसरी तरफ पंचायत चुनाव में ओबीसी के 9400 पदों को अनारक्षित कर दिया. अभी निकाय चुनाव में हजारों पद अनारक्षित रह जायेंगे. कोर्ट ने कहा था कि चुनाव में आरक्षण देने के लिए सर्वे होना चाहिए. इसके लिए आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक सर्वे होना चाहिए. सरकार ने यह कराया नहीं और सीधे चुनाव में चली गयी. इससे आपने ओबीसी का हक छीन लिया.
पांच साल तक उनका नेतृत्व पंचायतों व निकायों में अब नहीं आ सकता. उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना होनी चाहिए. आपको जातीय जनगणना में जाना ही होगा. कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्य ऐसा करा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट भी ऐसा है. अगर किसी को आरक्षण या अन्य लाभ देना चाहते हैं, तो ऐसा करना ही होगा. कुड़मी को एसटी का दर्जा दिये जाने के सवाल पर श्री महतो ने कहा कि यह तो कुड़मी का हक है. एसटी का दर्जा कुड़मियों को आजादी के पहले से मिला हुआ था. कुड़मी 1913 के गजट में आदिम जनजाति की सूची में शामिल थे.
इसमें कुरमी और कुड़मी शामिल थे. 1931 में भी यह भारत सरकार के गजट में थे. 1951 में यह गजट से गायब हो गये. इसके पीछे कोई तर्क नहीं था. यह कुड़मियों की जायज लड़ाई है. पिछले विधानसभा चुनाव में गठबंधन नहीं होने को लेकर उन्होंने कहा कि राजनीति में कई कारण होते हैं. जब आप सीट बंटावारे की बात करेंगे, तो हो सकता है कि राज्य के लिए आप कुछ और चाहते होंगे, जिस पर सहमति नहीं बन पायी हो. सीट बंटवारे की कुछ बातें ऐसी हुई, जो उस समय राज्य की परिस्थिति के अनुकूल नहीं थी. इसके अलावा भी कुछ कारण थे, जिससे हमारे विचारों में भेद हुआ और हम अलग-अलग चुनाव लड़े.
हम आंदोलन को चरम पर ले गये, लेकिन संस्था को सुरक्षित नहीं रख पाये. हां! पर आज आजसू छात्रावास से निकलकर 260 प्रखंडों तक पहुंच चुकी है.
राज्य में चर्चा है अगर पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा और आजसू साथ लड़तीं, तो आज राज्य की यह स्थिति नहीं होती. यह चर्चा दिल्ली तक है.
रघुवर दास जी से मेरी कोई व्यक्तिगत खटास नहीं थी.
राज्यपाल का पद संवैधानिक है. चुनाव आयोग में शिकायत पर निर्णय आना है. निर्णय देने के लिए किसी को बाध्य नहीं कर सकते हैं. यह भी एक कोर्ट है.