मिस्र जलवायु सम्मेलन में भारत ने सभी जीवाश्म ईंधनों के उपयोग को धीरे-धीरे कम करने पर सहमति बनाने का आह्वान किया है. अभी तक मुख्य रूप से कोयले पर वैश्विक निर्भरता घटाने और अंतत: समाप्त करने पर जोर दिया जाता रहा है. लेकिन पेट्रोलियम पदार्थ भी ग्रीनहाउस गैसों के भारी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. इसलिए भारतीय प्रतिनिधियों ने जलवायु वार्ता के अध्यक्ष तथा सम्मेलन के मेजबान मिस्र से औपचारिक रूप से अनुरोध किया है कि सम्मेलन के संकल्प पत्र में हर तरह के जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को रोकने के प्रयास करने संबंधी प्रावधान शामिल किया जाना चाहिए.
भारत ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए बहुत हद तक कोयले पर निर्भर है. हालांकि देश में स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और उपभोग को बढ़ाने के लिए गंभीर प्रयास हो रहे हैं तथा दुनियाभर में इसकी सराहना भी हो रही है, परंतु कोयले से जल्दी छुटकारा पाना संभव नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो में हुए पिछले सम्मेलन में कहा भी था कि भारत 2070 तक अपने उत्सर्जन को शून्य के स्तर पर लाने के लिए प्रतिबद्ध है. भारत और फ्रांस के साझा नेतृत्व में चल रहे अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में सौ से अधिक देश शामिल हो चुके हैं.
विभिन्न बहुपक्षीय समूहों में भी भारत जलवायु परिवर्तन को लेकर सहकार बढ़ाने के लिए प्रयत्न करता रहा है. इसके बावजूद कोयले के उपयोग को लेकर भारत की आलोचना होती है, जबकि बड़ी मात्रा में पेट्रोलियम ईंधनों का इस्तेमाल करने वाले देश भी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. यदि सम्मेलन में जीवाश्म ईंधनों को लेकर आम राय बनती है, तो हर स्तर पर उत्सर्जन घटाने की कोशिशें तेज होंगी. जलवायु परिवर्तन एक देश की समस्या नहीं है, उससे समूची धरती के अस्तित्व को खतरा है.
इसलिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिए हर स्तर पर कोशिशें होनी चाहिए. आशंका है कि पेट्रोलियम ईंधन पर आश्रित देश भारत के प्रस्ताव का विरोध कर सकते हैं. इनमें कई विकासशील देश भी हो सकते हैं. भारत, चीन, सऊदी अरब समेत विकासशील देशों का समूह अनेक जलवायु मुद्दों पर विकसित देशों पर साझा दबाव बनाने में सफल रहा है. आशा है कि ये देश भारत के पक्ष को सकारात्मक ढंग से समझने का प्रयास करेंगे.
संयुक्त राष्ट्र जलवायु समिति भी सभी जीवाश्म ईंधनों को समयबद्ध तरीके से हटाने की सिफारिश कर चुकी है. यदि जीवाश्म ईंधनों तथा आपदाओं की क्षतिपूर्ति को लेकर इस सम्मेलन में सहमति नहीं बनती है, तो अभी किये जा रहे उपायों को बड़ा झटका लगेगा. व्यापक वैश्विक सहयोग से ही जलवायु संकट का निवारण हो सकता है.