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बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी 5 फरवरी, 1900 काे हुई थी, 3 फरवरी काे नहीं, सइल रकब गाेलीबारी में 15 हुए थे शहीद

बिरसा मुंडा महानायक हैं, जिन्हाेंने 1895-1900 तक अंगरेजाें के खिलाफ जाे उलगुलान किया था, उसने छाेटानागपुर से अंगरेजाें के पांव उखाड़ने का आधार तैयार कर लिया था. अंगरेज बिरसा मुंडा की ताकत काे पहचानते थे

बिरसा मुंडा महानायक हैं, जिन्हाेंने 1895-1900 तक अंगरेजाें के खिलाफ जाे उलगुलान किया था, उसने छाेटानागपुर से अंगरेजाें के पांव उखाड़ने का आधार तैयार कर लिया था. अंगरेज बिरसा मुंडा की ताकत काे पहचानते थे. यही कारण था कि अंगरेजाेंं ने बिरसा मुंडा काे पकड़ने या उनके आंदाेलन काे कुचलने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी. कुछ दुर्लभ दस्तावेजाें में बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी की असली तिथि, सइल रकब पर हुए संघर्ष में मारे गये आदिवासियाें की असली संख्या और कई ऐसी घटनाओं का जिक्र है,

जिनके बारे में अभी तक बहुत जानकारी सार्वजनिक नहीं हाे सकी है. ऐसा ही एक दस्तावेज (भारत से उन दिनाें भेजी गयी एक फाइल) लंदन में उपलब्ध है. इसके अलावा कई ऐसे दस्तावेज माैजूद हैं, जिनके अध्ययन से पता चलता है कि बिरसा मुंडा और उनके आदिवासी सहयाेगियाें-शिष्याें का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कितना बड़ा याेगदान रहा है.

इन दस्तावेजाें से पता चलता है कि बिरसा मुंडा काे इसी माटी के कुछ गद्दाराें ने लाेभ के कारण पकड़ने या पकड़वाने में बड़ी भूमिका अदा की थी. सच यह है कि शहादत (9 जून, 1900) के कई साल बाद तक बिरसा मुंडा और उनके याेगदान काे याद तक नहीं किया गया. 1939 में जयपाल सिंह ने और 1940 के रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन ने बिरसा मुंडा काे याद किया. अब बिरसा मुंडा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के राष्ट्रीय नायक बन चुके हैं और पूरा देश उनके जन्मदिन (15 नवंबर) काे जनजातीय गाैरव दिवस के रूप में मनाता है.

बिरसा मुंडा से जुड़े दस्तावेज झारखंड की सरकारी फाइलाें में उपलब्ध नहीं हैं. उन्हें दाे बार गिरफ्तार किया गया था. 1895 में पहली बार गिरफ्तार कर उन्हें रांची जेल में रखा गया था. फिर हजारीबाग जेल भेज दिया गया था. 1900 में दूसरी बार गिरफ्तार कर रांची जेल में रखा गया था. दाेनाें जेलाें में काेई भी रिकार्ड नहीं है. लेकिन बिरसा मुंडा की दूसरी गिरफ्तारी के कुछ दस्तावेज ब्रिटेन में हैं.

आम जानकारी यह रही है कि बिरसा मुंडा काे 3 फरवरी, 1900 काे गिरफ्तार किया गया था. लेकिन 8 फरवरी, 1900 काे गृह विभाग (भारत) के जेपी हेवेट ने ब्रिटेन में विदेश मंत्री (भारत के प्रभार में) सर आर्थर गाेडले काे एक पत्र भेजा था, जिसमें उन्हाेंने लिखा था कि छाेटानागपुर में मुंडाओं के रिंगलीडर बिरसा मुंडा और उनके कई प्रमुख सहयाेगियाें काे गिरफ्तार कर लिया गया है. यह सूचना उन्हें बंगाल से टेलीग्राम के जरिये मिली थी. हेवेट ने टेलीग्राम की कॉपी भी भेजी थी.

टेलीग्राम में 6 फरवरी, 1900 की तिथि अंकित है जिसमें लिखा गया है कि बिरसा मुंडा काे कल (यानी एक दिन पहले 5 फरवरी) काे गिरफ्तार कर लिया गया है. यह पहला दस्तावेज सामने आया है जिसमें बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी की प्रामाणिक तिथि का पता चलता है.

इसी फाइल में कुछ हाथ से लिखे कुछ पत्र हैं जिनमें सइल रकब पर हुई गाेलीबारी और उसमें मारे गये आदिवासियाें का जिक्र है. 9 जनवरी, 1900 काे सइल रकब पहाड़ी पर जमा बिरसा मुंडा के समर्थकाें पर पुलिस ने फायरिंग की थी. इस घटना में कितने आदिवासी मारे गये, इसका असली आंकड़ा आज तक सामने नहीं आया है. चार आदिवासी युवक और तीन महिलाओं के मारे जाने की ही बात उस समय प्रशासन ने की थी. इधर आंदाेलन समर्थकाें का दावा था कि चार साै बिरसा समर्थकाें की पुलिस ने हत्या कर उनके शवाें काे या ताे पहाड़ी से नीचे फेंक दिया गया था या वहीं दफना दिया था.

काेलकाता से प्रकाशित स्टेट्समैन ने 25 मार्च, 1900 के अंक में इस बात का जिक्र किया था कि सइल रकब पहाड़ी पर हुई कार्रवाई में लगभग चार साै मुंडा मारे गये थे. रांची के डिप्टी कमिश्नर स्ट्रीलफील्ड ने इस संख्या पर आपत्ति करते हुए कहा था कि 11 लाेग ही मारे गये थे. इस संदर्भ में सइल रकब अभियान का नेतृत्व करनेवाले कैप्टन राेसे द्वारा घटना के दूसरे दिन यानी 10 जनवरी, 1900 काे बुरजू कैंप से लिखा वह पत्र उपलब्ध है जिससे कई जानकारियां मिलती हैं.

इस पत्र में कैप्टन राेसे ने लिखा है कि उनके अभियान में छाेटानागपुर के कमिश्नर फाेरबेस भी रास्ते में उनके साथ शामिल हाे गये थे. कैप्टन राेसे ने पूरे गाेलीकांड का जिक्र किया है. पत्र में उसने लिखा है-मैं नहीं बता सकता कि वास्तव में कितने लाेग मारे गये हैं. लेकिन मैंने वहां 15 शवाें काे देखा था. सरकार ने कभी यह स्वीकार नहीं किया था कि 15 आदिवासी मारे गये. लेकिन कैप्टन राेसे ने उस पत्र में 15 लाेगाें के शवाें की पुष्टि की थी. कैप्टन राेसे का पत्र यह साबित करता है कि रांची के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ने मृतकाें की जितनी संख्या बतायी थी, उससे कहीं ज्यादा लाेग मारे गये थे.

इसी पत्र में कैप्टन राेसे ने स्वीकार किया था कि पहाड़ी से तीन महिलाओं के शव भी मिले थे. महिलाओं के मारे जाने पर उसने अपने सीनियर अधिकारियाें काे लिखा था कि पहाड़ी पर महिलाओं के हाेने की उसे जानकारी नहीं थी. उसने तर्क दिया था कि मुंडा युवक बड़े-बड़े बाल रखते थे, इसलिए दूर से मुंडा पुरुष और महिलाओं में फर्क कर पाना मुश्किल था. दस्तावेज बताता है कि जाे लाेग मारे गये थे, उनमें से एक काे छाेड़ कर बाकी की पहचान कर ली गयी थी.

लेकिन कैप्टन राेसे के पत्र में मृतकाें का नाम नहीं दिया गया था. (बाद में पता चला कि मारी गयी तीन महिलाओं में जियूरी गांव निवासी मझिया मुंडा, डुडांग मुंडा और बंकन मुंडा की पत्नी शामिल थीं. इतिहास में इन तीनाें महिलाओं के नाम का जिक्र नहीं है).

बिरसा मुंडा से संबंधित कुछ दस्तावेज बिहार के आर्काइव्स और काेलकाता में माैजूद हैं. इन दस्तावेजाें में इस बात का जिक्र है कि बिरसा मुंडा काे पकड़ने के लिए सरकार ने पांच साै रुपये का इनाम घाेषित कर रखा था. इसी इनाम के लालच में कुछ लाेगाें ने अपनी माटी से गद्दारी करते हुए बिरसा मुंडा काे पकड़वाने में मदद की थी और इनाम की राशि काे आपस में बांट लिया था. जाे भी दस्तावेज बचे हुए हैं और कहीं न कहीं सुरक्षित हैं, उनमें कई और जानकारियां छिपी हैं,

जाे अभी तक सार्वजनिक नहीं हाे सकी हैं. अब बिरसा मुंडा के जन्मदिन काे देश जनजातीय गाैरव दिवस के माैके पर मना रहा है, ऐसे में ऐतिहासिक दस्तावेजाेें काे झारखंड लाने पर गंभीरता से विचार हाेना चाहिए ताकि पता चल सके कि आजादी की लड़ाई में बिरसा मुंडा और उनके किन-किन साथियाें का बड़ा याेगदान था. गुमनाम नायकाें काे सम्मान हर हाल में मिलना चाहिए.

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