Gorakhpur News: विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस से प्रकाशित होने वाली श्रीरामचरितमानसऔर भागवत गीता की बिक्री बढ़ी है. यही वजह है कि पिछले 98 वर्षों में सबसे अधिक पिछले 5 महीने का रिकॉर्ड हिंदू धार्मिक किताबें लिखी है. जिसमें सबसे ज्यादा श्रीरामचरितमानस और भागवत गीता की बिक्री है लगातार इसकी मांग बढ़ती जा रही है.
गीता पुलिस के मैनेजर लालमणि तिवारी ने बताया कि गीता प्रेस से प्रकाशित होने वाली पुस्तकों की डिमांड इस समय ज्यादा है. खासकर श्रीरामचरितमानस और भागवत गीता की मांग ज्यादा लोग कर रहे हैं. कोरोना काल के बाद से अयोध्या मसला हल होने और काशी का कायाकल्प होने के बाद लोगों में सनातन धर्म के प्रति और आस्था बढ़ गई है.
लालमणि तिवारी ने आगे बताया कि पिछले कुछ समय से हिंदू धर्म से जुड़ी किताबों की बिक्री तेज हुई है. सबसे अधिक श्रीरामचरितमानस और भागवत गीता की बिक्री है. पिछले 5 महीना में इन किताबों की बिक्री में काफी तेजी आई है.
अप्रैल 2022 – 679.30 लाख
मई 2022 –708.82 लाख
जून 2022 –717.93 लाख
जुलाई 2022 –755.23 लाख
अगस्त 2022 – 782.52 लाख
सितंबर 2022 –1055.67 लाख
अक्टूबर 2022–778.27 लाख
गीता प्रेस के मैनेजर ने आगे बताया कोरोना काल, अयोध्या मंदिर के भवन निर्माण और काशी कॉरिडोर के निर्माण के बाद से वहां तीर्थयात्री और श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ रही है. उसी हिसाब से गीता प्रेस के पुस्तकों की डिमांड भी बढ़ती जा रही है. श्रीरामचरितमानस हमारे सबसे अधिक मूल्य की बिकने वाली पुस्तक है और इसकी भी काफी मांग बढ़ती जा रही है.
हम लोग पहले सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए पुस्तक निकालते थें. लेकिन अब सभी आए वर्ग के लोगों के लिए पुस्तक निकल रहे हैं. अभी हम लोगों ने एक श्रीरामचरितमानस1600 रुपए मूल्य का छापा जिसका विमोचन महामहिम राष्ट्रपति के उपस्थित में सीएम योगी ने किया था. उसका दो संस्करण बिक चुका है और तीसरे संस्करण की छपाई चल रही है. शताब्दी वर्ष में हम लोगों को संभावना है कि इसकी बिक्री लगभग 100 करोड़ रुपए होगी. पिछले वर्ष बिक्री लगभग 78 करोड़ रुपए की थी.
क्या गीता प्रेस की पुस्तक दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तक है इस सवाल पर उन्होंने कहा कि देखिए यह बात कहना हमारे लिए संभव नहीं है इन सब बातों को मैं नहीं कह सकता गीता रामचरितमानस और धार्मिक पुस्तक हम कई भाषाओं में छापते हैं, और मांग के अनुरूप अभी हम लोग उसको पूरा नहीं कर का रहे हैं. इसका मतलब है कि हमारे पुस्तकों के प्रति लोगों की श्रद्धा और निष्ठा बढ़ती ही जा रही है.
रिपोर्ट– कुमार प्रदीप, गोरखपुर