झारखंड को बने 22 साल हो गये. 15 नवंबर को झारखंड अपना 22वां स्थापना दिवस (Jharkhand Foundation Day) मनाने जा रहा है. 22 साल के इस कालखंड में झारखंड के किसानों के लिए सरकारों ने कई योजनाएं बनायीं. उस पर करोड़ों रुपये खर्च किये. खेतों की पैदावार भी बढ़ी. लेकिन, कुछ ऐसे काम सरकार नहीं कर सकी, जिसकी वजह से किसानों को कुछ फसलों की बुआई बंद कर देनी पड़ी.
झारखंड के गुमला जिला में लगभग 200 एकड़ भूमि को सिंचित करने वाली लिफ्ट इरिगेशन सिस्टम (Lift Irrigation System) पिछले 14 सालों से बेकार पड़ी है. मशीन के बेकार हो जाने की वजह से गेहूं, मटर व मिर्च की खेती लगभग बंद हो गयी है. सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है गेहूं की खेती. अब क्षेत्र के किसान बरसात के पानी के भरोसे सिर्फ धान की बुआई करते हैं. यह हाल है, गुमला जिला के सिसई प्रखंड के नागफेनी गांव का.
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श्री जगन्नाथ मंदिर के सामने सरकारी योजना से लिफ्ट इरिगेशन की शुरुआत हुई थी. कृषि कार्य को बढ़ावा देने और किसानों को सिंचाई की सुविधा मुहैया कराने के उद्देश्य से वर्ष 1980 में लिफ्ट इरिगेशन मशीन लगायी गयी थी. इसमें 25-25 एचपी की इलेक्ट्रिक मशीन लगी थी. इसके साथ ही पाइपलाइन भी लगायी गयी थी. नहर बनी थी. मशीन वाले भवन के सामने एक सरकारी क्वार्टर भी बनाया गया, जिसमें दो सरकारी कर्मचारी रहते थे. एक मशीन ऑपरेटर और एक चौकीदार भी था.
सिंचाई की सुविधा मिलने से क्षेत्र के किसान काफी खुश थे. कृषि कार्य को बढ़ावा मिला और किसानों ने गेहूं, मटर व मिर्च की बड़े पैमाने पर खेती शुरू कर दी. सबसे ज्यादा गेहूं की बुआई होती थी. मशीन लगने के बाद कई बार मशीन खराब भी हुई. जब भी मशीन खराब होती, उसकी मरम्मत करायी जाती. वर्ष 1991 में मशीन खराब हुई, तो फिर दोबारा नहीं चली.
वर्ष 1991 में दो-तीन माह तक मशीन से पानी की आपूर्ति नहीं हो पायी. इसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के गुमला आगमन का कार्यक्रम बना. राजीव गांधी के आगमन से पहले आनन-फानन में खराब मशीन को बदलकर नयी मशीन लगा दी गयी. नयी मशीन लगी, तो फिर से किसानों के खेतों तक पानी पहुंचने लगा. इसके बाद फिर से वर्ष 1997 में एक मशीन जल गयी. मशीन जलने के लगभग एक साल बाद वर्ष 1998-99 में मशीन की मरम्मत के लिए टेंडर हुआ. मरम्मत पर करीब 10 लाख रुपये खर्च हुआ.
इसमें इलेक्ट्रिक मशीन की जगह डीजल मशीन लगायी गयी. इसके साथ ही पाइपलाइन व नहर का भी मरम्मत की गयी. चूंकि शुरुआती समय में मशीन बिजली से चलती थी. इसलिए किसानों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं हुई. 10 लाख रुपये खर्च करके इलेक्ट्रिक की जगह डीजल मशीन लगने से किसानों के समक्ष परेशानी हो गयी. किसान डीजल का खर्च वहन करने में असमर्थ थे. इस वजह से मशीन का उपयोग बंद हो गया. इसकी वजह से मशीन फिर से खराब हो गयी.
इसके बाद वर्ष 2007-08 में फिर से मशीन की मरम्मत के लिए टेंडर हुआ. एमआई विभाग ने टेंडर निकाला और मरम्मत पर 20 लाख रुपये खर्च किये. इसके तहत डीजल मशीन को हटाकर फिर से इलेक्ट्रिक मशीन लगा दी गयी. इलेक्ट्रिक मशीन से किसानों के खेतों तक फिर से पानी पहुंचने लगा, लेकिन एक साल बाद ही दोनों कर्मचारी (मशीन ऑपरेटर और चौकीदारी) रिटायर हो गये. इनकी सेवानिवृत्ति के बाद किसी की बहाली नहीं हुई. फलस्वरूप, मशीन फिर से बंद हो गयी. पड़े-पड़े मशीन खराब हो गयी. क्वार्टर भी जर्जर स्थिति में है.
बाबूलाल साहू, कृष्णा साहू, हरि साहू, लालमोहन साहू, जगरनाथ साहू, अनिल कुमार पंडा, रीझु साहू, महावीर साहू, बाबूराम उरांव, महली उरांव ने बताया कि मरम्मत के नाम पर लाखों रुपये खर्च होने के बाद भी मशीन बेकार पड़ी है. 14 सालों से मशीन खराब है. मशीन ठीक थी, तो 200 एकड़ से भी अधिक भूमि सिंचित होती थी. गेहूं, मटर और मिर्च की खेती किसान करते थे. अब सिंचाई की सुविधा नहीं मिल रही है. इसलिए गेहूं, मटर और मिर्च की खेती भी नहीं होती है. बारिश के पानी के भरोसे सिर्फ धान की खेती कर रहे हैं.
गुमला से जगरनाथ पासवान की रिपोर्ट