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Sunday Special: गुमला के आदिम जनजाति के युवा पेश कर रहे उदाहरण, शिक्षक और सेना का जवान बन दिखा रहे राह

गुमला के जंगल व पहाड़ों में असुर, बिरहोर, बृजिया, कोरवा जनजाति रहते हैं. ये विलुप्त जनजाति हैं. अब ये जनजाति अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित हैं. अब इस जनजाति के लोग शहरों में बसने लगे हैं. कंद-मूल खाकर जीने वाले इन लोगों की सोच बदली है. खेतीबारी कर रहे हैं. शिक्षा पर फोकस है. नौकरी भी कर रहे हैं.

गुमला जिले के जंगल व पहाड़ों में असुर, बिरहोर, बृजिया, कोरवा जनताति रहते हैं. ये विलुप्त जनजाति हैं. परंतु अब ये जनजाति अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित हैं. इसलिए अब इस जनजाति के लोग शहरों में बसने लगे हैं. वर्षो तक जंगलों के कंद-मूल खाकर जीने वाले इन लोगों की सोच बदली है. खेतीबारी कर रहे हैं. शिक्षा पर फोकस है. नौकरी भी कर रहे हैं. खासकर वर्तमान युग के युवा पीढ़ी गांव से ज्यादा शहर में रहना पसंद कर रहे हैं. यही वजह है. इनमें शिक्षा का स्तर बढ़ गया है.

उच्च शिक्षा पर दे रहे हैं जोर

आज से 15 साल पहले कुछ बहुत ही लोग पढ़े लिखे थे. मैट्रिक पास के बाद स्कूल छोड़ देते थे. परंतु अब ये उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. हर घर के बच्चे स्कूल जाते हैं. कई लोग सरकारी नौकरी में हैं. कई आदिम जनजाति शिक्षक हैं. दर्जनों युवक सेना में हैं. करीब 100 युवक-युवती शहर व प्रखंड मुख्यालय के अच्छे स्कूल व कॉलेज में अभी पढ़ रहे हैं. हालांकि आज भी इनके गांवों की स्थिति ज्यादा नहीं बदली है, परंतु बदलते युग के साथ इनकी सोच बदल रही है. कई आदिम जनजाति अब मुखिया, पंचायत समिति सदस्य व वार्ड सदस्य बनकर गांवों के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं.

संस्कृति व परंपरा आज भी जीवित है

अभिराम असुर, रविंद्र असुर, महीप असुर, धर्मेंद्र असुर, चमरू असुर, सुधीर असुर, प्रवीण असुर, सुरेंद्र असुर, विश्राम असुर, विलसन असुर, रजनी असुर, सुखमनिया असुर, विजेता असुर सहित कई युवक सेना में हैं. इसके अलावा भदवा असुर, महावीर असुर, टिपुन असुर, सुमित्रा असुर टीचर हैं जो आदिम जनजाति बहुल गांव के सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाते हैं. इन लोगों का कहना है. जंगल व पहाड़ों की जिंदगी से वर्तमान पीढ़ी निकलने लगी है. बुजुर्ग लोग हैं. वे गांव में रहते हैं. इन लोगों का कहना है. गांव से निकलकर जरूर शहर में बस रहे हैं. परंतु हमारी संस्कृति व परंपरा नहीं बदली है.

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आदिम जनजाति बहुल पंचायत के नाम

बिशुनपुर प्रखंड के बिशुनपुर, बनारी, गुरदरी, अमतीपानी, सेरका, निरासी, नरमा, हेलता, चीरोडीह, घाघरा, डुमरी व जारी प्रखंड के जरडा, डुमरी, सिकरी, जुरहू, करनी, गोविंदपुर, मेराल, मझगांव, अकासी, उदनी, जैरागी, खेतली, पालकोट प्रखंड के डहूपानी, कुल्लूकेरा, कामडारा प्रखंड के रेड़वा, गुमला के घटगांव, आंजन, रायडीह प्रखंड के ऊपरखटंगा, कांसीर, पीबो, जरजट्टा, सिलम, कोंडरा, केमटे, कोब्जा, नवागढ़, घाघरा प्रखंड के विमरला, घाघरा, रूकी, सेहल, आदर, दीरगांव, सरांगो, चैनपुर प्रखंड के बामदा, जनावल, छिछवानी, कातिंग, मालम व बरडीह पंचायत में सबसे अधिक आदिम जनजाति निवास करते हैं.

गुमला में रहते हैं ये आदिम जनजाति

असुर, कोरवा, बृजिया, बिरहोर, परहैया आदिम जनजाति के लोग गुमला में रहते हैं. कुल 49 पंचायत के 164 गांवों में आदिम जनजातियों का डेरा है. कुल परिवारों की संख्या 3954 है. आबादी करीब 30 हजार है.

शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है : टिपुन

शिक्षक टिपुन असुर ने कहा कि एक समय था. जब पोलपोल पाट गांव के सभी लोग अनपढ़ थे. परंतु समय बदला. गांव के युवक पढ़ लिखकर अपने भविष्य के बारे में सोच रहे हैं. सेना, टीचर सहित कई क्षेत्रों में नौकरी कर रहे हैं. धीरे-धीरे गांव की तस्वीर भी बदल रही है.

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कल्याण विभाग भी कर रहा मदद

सरकार द्वारा आदिम जनजातियों के लिए कई योजना चल रही है. कल्याण विभाग द्वारा उसका लाभ दिया जा रहा है. पक्का आवास बन रहा है. इस जनजाति के लिए महेशपुर डीपाटोली, तुसगांव व जेहनगुटुवा तीन स्कूल भी है. पहले की अपेक्षा अब यह जनजाति सभ्य नजर आता है. शिक्षा का स्तर भी बढ़ गया है. सेना में कई युवक हैं.

गणेशराम महतो, बीडब्ल्यूओ, बिशुनपुर

असुर जनजाति के 22200, कोरवा, बृजिया, बिरहोर जनजाति के करीब आठ हजार लोग हैं. आज भी 50 साल के ऊपर के जितने लोग हैं. वे अंगूठा छाप हैं. परंतु वर्तमान पीढ़ी अब शिक्षा के महत्व को समझ चुके हैं. अच्छे स्कूल व कॉलेज में बच्चे पढ़ रहे हैं. मैं खुद लोगों को पढ़ाई के लिए बच्चों व अभिभावकों को प्रेरित करता हूं.

विमलचंद्र असुर, अध्यक्ष, असुर जनजाति

रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला

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