Kaal Bhairav Jayanti 2022: साल 2022 में काल भैरव जयंती 16 नवंबर, बुधवार को मनाई जाएगी. इसे भैरव जयंती, भैरव अष्टमी और कालाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भैरवनाथ के मंदिरों में पूजा-अनुष्ठान किए जाते हैं. वहीं इस दिन किए कुछ विशेष उपायों से भैरवनाथ प्रसन्न होते हैं. शास्त्रों में ऐसे कई उपायों के बारे में बताया गया है, जिससे भैरवनाथ को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है. यहां देखें काल भैरव की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, कथा और मंत्र
भैरव जयंती तिथि – 16 नवंबर, 2022 बुधवार
अष्टमी तिथि आरंभ- 16 नवंबर को सुबह 5 बजकर 49 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त – 17 नवंबर को सुबह 07 बजकर 57 मिनट पर
शिव महापुराण में वर्णित ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद में भैरव की उत्पत्ति से जुड़ा उल्लेख मिलता है. एक बार देवताओं ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी से पूछा कि इस संसार का सर्वश्रेष्ठ रचनाकर, विश्व का परम तत्व कौन है? ब्रह्माजी ने अपने द्वारा इस सृष्टि के सृजन की बात कहते हुए स्वयं को सबसे श्रेष्ठ बताया. वहीं भगवान श्रीहरि विष्णु ने कहा कि इस जगत का पालन हार मैं हूं इसलिए मैं ही परम अविनाशी तत्व हूं. ब्रह्मा और विष्णु खुद को ही श्रेष्ठ बता रहे थे ऐसे में देवताओं को जब इस सवाल का सही उत्तर नहीं मिला तो यह काम चारों वेदों को सौंपा गया.
अगहन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन सभी संकटों से उबारने वाले भगवान काल भैरव का आशीर्वाद पाने के लिए प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठें और स्नान-ध्यान के बाद उनके व्रत का संकल्प लें. काल भैरव अष्टमी की पूजा रात के समय अत्यंत ही शुभ मानी गई है. ऐसे में रात्रि के समय भगवान भैरव के सामने चौमुखा दीया जलाकर पुष्प, फल, भोग आदि चढ़ाकर विधि-विधान से पूजा करें. भगवान भैरव की पूजा में उनकी चालीसा या भैरवाष्टकं का विशेष रूप से पाठ करें. अंत में उनकी आरती करते हुए पूजा में हुई गलतियों के लिए माफी और मनोकामना को पूरा करने का आशीर्वाद मांगे.
ॐ कालभैरवाय नम:
ओम भयहरणं च भैरव:
ओम कालभैरवाय नम:
ओम ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं ओम भ्रं कालभैरवाय फट्
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि
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