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जलवायु परिवर्तन से हुई तबाही

विकसित और विकासशील दोनों श्रेणी के देशों को ऐसी प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता है, जो वार्मिंग की चरम सीमा को सीमित करने के लिए वातावरण से गर्मी-ट्रैपिंग उत्सर्जन को तेजी से कम करती हैं

यह स्थापित तथ्य है कि जलवायु परिवर्तन अमीर देशों के कारण हुआ है और इसीलिए गरीब देशों ने जलवायु परिवर्तन के लिए मुआवजे की मांग करनी शुरू कर दी है, जिसने उन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. मिस्र में चल रही संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता गरीब देशों के लिए क्षतिपूर्ति प्रणाली को निर्धारित कर सकती है. विभिन्न संयुक्त राष्ट्र और स्वतंत्र रिपोर्टों द्वारा पुष्टि की गयी है कि पिछले 25 वर्षों में जलवायु परिवर्तन ने बहुत नुकसान पहुंचाया है, जिसमें सूखा, बढ़ती गर्मी, कम या अधिक बारिश, उष्णकटिबंधीय चक्रवात और अधिक क्रमिक परिवर्तन, जैसे मरुस्थलीकरण और बढ़ते समुद्र शामिल हैं.

यह भी साबित हो गया है कि इन परिवर्तनों के लिए वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की उपस्थिति को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. अधिकांश उत्सर्जन के लिए समृद्ध औद्योगिक देश जिम्मेदार हैं. गरीब देश, जो अतीत में दूसरों द्वारा किये गये इन परिवर्तनों को कम करने के लिए समय पर सुधारात्मक उपाय करने में असमर्थ हैं, पहले जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों का सामना करते हैं. इस प्रकार, ‘नुकसान और क्षति’ की नयी अवधारणा ने उनके बीच जड़ें जमाना शुरू कर दिया है.

इस अवधारणा के तहत औद्योगिक राष्ट्रों के कारण हुए इन परिवर्तनों को कम करने के लिए उपाय करने के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता की मांग कर रहे हैं. अब वे इसे किसी विशेष प्राकृतिक आपदा के बाद सहायता के बजाय दायित्व और मुआवजे के मामले के रूप में परिभाषित कर रहे हैं. न्यूनीकरण (उत्सर्जन को कम कर समस्या के मूल कारण से निपटना) और अनुकूलन (वर्तमान और भविष्य के प्रभावों की तैयारी) के बाद नुकसान और क्षति को जलवायु परिवर्तन की राजनीति के ‘तीसरे स्तंभ’ के रूप में भी जाना जाता है.

हालांकि 1990 के दशक से, जब जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन का पाठ तैयार हो रहा था, विकसित देशों ने इसके खिलाफ जोर दिया है और इसे असंभव करार दिया है. द्वीपीय देशों के एक समूह ने प्रस्तावित किया था कि समुद्र के बढ़ते स्तर से होने वाले नुकसान के लिए निचले देशों को क्षतिपूर्ति करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय बीमा कोष बनाया जाए.

साल 2015 के सम्मेलन में, जिसका समापन पेरिस समझौते को अपनाने के साथ हुआ था, विकासशील देशों ने फिर से नुकसान और क्षति के वित्तपोषण पर एक मजबूत खंड की मांग की थी, लेकिन वार्ता इस मुद्दे के केवल एक अस्पष्ट संदर्भ के साथ समाप्त हो गयी और इसे भविष्य की चर्चा के लिए छोड़ दिया गया. ऐसे में मिस्र जलवायु सम्मेलन ठोस नीति और कार्य योजना तैयार करने का अवसर है.

डेनमार्क ने हाल में विकासशील देशों को 13 मिलियन डॉलर से अधिक देने का वादा किया है. पिछले नवंबर में ग्लासगो में हुए सम्मेलन में स्कॉटलैंड की प्रथम मंत्री निकोला स्टर्जन ने एकमुश्त नुकसान और क्षति भुगतान के रूप में 2.7 मिलियन डॉलर देने का वादा किया था. उम्मीद थी कि अन्य अमीर देश भी ऐसा करेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, पर उन पर दबाव बढ़ता जा रहा है.

पिछले महीने 46 सदस्यों वाले कम विकसित देशों के गठबंधन के मंत्रियों ने इस सम्मेलन में ‘मौलिक प्राथमिकता’ के रूप में नुकसान और क्षति के लिए एक वित्तीय तंत्र के निर्माण की मांग की थी. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने पिछले महीने सुझाव दिया कि जीवाश्म ईंधन कंपनियों पर अप्रत्याशित कर लगा कर धन उपलब्ध कराया जा सकता है.

इस तरह के भुगतान के लिए विकसित देशों में उत्साह की कमी है. कुछ विकासशील देश अंतरराष्ट्रीय कानून के माध्यम से अस्थायी रूप से निवारण की मांग कर रहे हैं. सितंबर में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने ऑस्ट्रेलियाई सरकार को टोरेस जलडमरूमध्य के द्वीपों पर रहने वाले मूल निवासियों को मुआवजा देने का आदेश दिया था, जो बढ़ते समुद्री जलस्तर से नष्ट हो रहे हैं. शायद यह पहली बार है कि ऐसे भुगतान का आदेश दिया गया है.

ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वीप वासियों की दुर्दशा के प्रति सहानुभूति रखती थी, लेकिन क्या यह नगदी में तब्दील होगा, यह देखा जाना बाकी है. दायित्व की महंगी संस्कृति की क्या बात करना! इसलिए, हानि और क्षति के लिए एक वैश्विक ढांचा बन पाने की संभावना बहुत दूर दिखती है. विकसित दुनिया भी जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से सुरक्षित नहीं है.

तूफान इयान जैसी प्राकृतिक आपदाएं अमेरिका में बढ़ रही हैं. इस तूफान ने फ्लोरिडा और दक्षिण कैरोलिना में अरबों डॉलर का नुकसान किया है. साल 1980 और 2021 के बीच की अवधि को देखें, तो इस तरह की घटनाओं का जो औसत 7.7 था, पिछले पांच वर्षों में प्रतिवर्ष इस तरह की घटनाओं में 17.8 की वृद्धि देखी गयी है. पिछले साल ने लगातार सातवें वर्ष को चिह्नित किया, जिसमें दस या अधिक अरब डॉलर का नुकसान अमेरिका में हुआ.

मई, 2022 में वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा उस स्तर पर पहुंच गयी, जो लाखों वर्षों में नहीं देखी गयी और यह पूर्व-औद्योगिक युग की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक है. कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों ने दुनिया के औसत तापमान को बढ़ा दिया है. यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन मौसम की चरम सीमाओं की ‘बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता की सुपरचार्जिंग’ कर रहा है.

यह अधिक वर्षा परिवर्तनशीलता को जन्म देता है, अमेरिकी पश्चिम में जंगल की आग के मौसम को लंबा करता है, सूखे की चपेट में लाता है और समुद्र के स्तर में वृद्धि के रूप में बड़े तूफान को बढ़ाता है. वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के निरंतर संचय को देखते हुए भविष्य में मौसम के और अधिक हिंसक होते जाने की आशंका है. बार-बार होने वाली प्राकृतिक दुर्घटनाओं को कम करने के लिए विकसित और विकासशील दोनों श्रेणी के देशों को ऐसी प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता है, जो वार्मिंग की चरम सीमा को सीमित करने के लिए वातावरण से गर्मी-ट्रैपिंग उत्सर्जन को तेजी से कम करती हैं और हटाती हैं.

उन्हें जीवाश्म ईंधन के बजाय ऊर्जा के हरित स्रोतों की ओर देखना होगा. उन्हें अपना बोझ कम करने के लिए केवल एकमुश्त सहायता की पेशकश की बजाय, उन नीतियों को अपनाना और व्यवहार में लाना होगा, जो गरीब देशों में नुकसान को कम करती हैं. मिस्र जलवायु सम्मेलन को खोखले वादों के बजाय जलवायु परिवर्तन आपदाओं का मुकाबला करने के लिए एक नया व्यवहार्य दृष्टिकोण खोजने का प्रयास करना चाहिए, जैसा पिछले सम्मेलनों में हुआ है.

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