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Exclusive: सूरज बड़जात्या बोले- फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ नहीं चलती तो सड़क पर आ जाता

निर्देशक सूरज बड़जात्या ने अपनी आने वाली फिल्म ऊंचाई को लेकर बात की. साथ ही उन्होंने बताया कि किस तरह इस फिल्म के लिए उन्होंने अमिताभ बच्चन को मनाया. बता दें कि ये मूवी 11 नवंबर को रिलीज होगी.

राजश्री बैनर की फिल्म ऊंचाई इस शुक्रवार सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली हैं. इस फिल्म के निर्देशक सूरज बड़जात्या कहते हैं कि ये बातें हो रही हैं कि 65 प्लस एक्टर्स की कहानी कौन देखने आएगा. ये नहीं बिकेगी. मैं 65 प्लस की कहानी नहीं उम्मीद और हौंसला इस फिल्म से बेच रहा हूं. जो हर दर्शक को अपील करता है. उनकी इस फिल्म,राजश्री बैनर के 75 साल,सलमान खान सहित कई पहलुओं पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत.

आपके लिए ऊंचाई की परिभाषा क्या है ?

अपने डर और कम्फर्ट जोन से निकलना मेरे लिए ऊंचाई की असल परिभाषा है. ये मैंने सबसे ज़्यादा पेंडेमिक में सीखा , जिसका परिणाम फिल्म ऊंचाई है. एक इंसान के तौर पर मुझे बीमार होने का सबसे ज़्यादा डर रहता था, लेकिन पेंडेमिक ने मुझे सिखाया कि हिम्मत सबसे बड़ा हीरो है. ऊंचाई अलग अलग तरह के डर से लड़ने का नाम है.

ऊंचाई फ़िल्म को बनाने का आईडिया कैसे आया?

२०१६ में मेरे ऑफिस के इसी रूम में एक राइटर कहानी लेकर आए थे , जिसका शीर्षक था मौत. जब उन्होंने मुझे कहानी सुनाई, तो मुझे लगा कि ये तो ज़िन्दगी है. ये लोग इसे मौत क्यों बोल रहे हैं. कहानी सुनी. एवेरेस्ट का बेस कैम्प क्या होता है. मुझे तो ये भी पता नहीं था कहानी पारिवारिक है लेकिन ये मेरे स्टाइल का सिनेमा है ही नहीं, क्योंकि यह पूरी तरह से आउटडोर पर शूट वाली फिल्म थी. मैं ढूंढ रहा था अलग – अलग डायरेक्टर्स को,जो ये फिल्म बना सकें. मैं सलमान भाई के साथ वाली फिल्म के लिए कहानी लिखने में बिजी था. पेंडेमिक आ गया. उस दौरान पता नहीं मुझे क्या हो गया. मुझे लगा कि मुझे वो बनाना हैं , जो मेरे दिल से है. मुझे यह कहानी याद आयी कि चलो इस पर बनाते हैं क्योंकि यह उम्मीद और हौंसले की कहानी है.

अमिताभ बच्चन को इस फ़िल्म के लिए राजी कैसे किया?

जैसे कहानी मिली और मालूम पड़ा कि यह हौंसले की कहानी है. उसी वक़्त तय हो गया कि मुझे इस फिल्म के लिए बच्चन सर चाहिए. मैंने सबसे पहले उन्हें ही स्क्रिप्ट भेजी. 2020 में वह पूरी तरह से केबीसी में बिजी थे,जब मैंने उन्हें अप्रोच किया था. उन्होंने आधे घंटे का जूम टाइम दिया. मैंने बहुत तैयारी की थी,उन्हें स्ट्रक्चर सुनाने के लिए. उन्होंने कहानी सुनी और कहा कि सूरज मुझे तुम्हारी फ़िल्म का ये डायलॉग बहुत अच्छा लगा कि हम सबके अंदर हमारा एवरेस्ट है. जिसके जरिए हम जीवन की हर ऊंचाई को पार कर सकते हैं. उन्होंने पूछा और कौन – कौन हमारे साथ कास्ट में रहेगा.

शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन को इंस्ट्रक्शन देना कितना चुनौतीपूर्ण था?

बच्चन सर के साथ काम करना बहुत आसान है. वे राइटर की बहुत इज़्ज़त करते हैं. वे राइटर से पूछते हैं कि आपने ये जो लाइनें लिखी हैं, लिखते हुए आपके अंदर क्या इमोशन था. वे बहुत बारीकी से किरदार को समझते थे. मैं उनसे आधी उम्र का हूं, लेकिन सेट पर डायरेक्टर एक्टर होते हैं. जो भी डायलॉग होता है. पूरा रटकर आते हैं,सिर्फ अपना नहीं दूसरों का भी रटकर आते हैं. वह अपने कोएक्टर्स को हमेशा क्यू देने के लिए शूटिंग पर मौजूद रहते थे. सबसे आसान रहा उनके साथ काम करना रहा.

शूटिंग के दौरान किस तरह की दिक्कतें आयी?

मैं आउटडोर डायरेक्टर नहीं हूं. जब भी मैं जे पी दत्ता, इम्तियाज़ और मणि रत्नम की फिल्मों को देखता उनके आउटडोर लोकेशंस से मंत्रमुग्ध हो जाता हूं, क्योंकि मैं वैसा सोच ही नहीं पाता हूं. मैं सेट डायरेक्टर हूं. मैं स्टोरी से डायरेक्टर बना हूं, कुछ मेकर्स विजुअल से डायरेक्टर बनते हैं. यह फ़िल्म रोड जर्नी है. दिल्ली से लेकर एवरेस्ट की ऊंचाई को सिनेमा पर लाना मेरी सबसे बड़ी चुनौती थी.

आपकी फ़िल्म के ज़्यादातर एक्टर्स 60 के पार हैं, शूटिंग के दौरान किन बातों का ध्यान रखना पड़ा?

कोविड के दौरान इस एज ग्रुप के एक्टर्स को शूटिंग पर ले जाना अपने आप में एक टास्क था. सबसे पहले मैंने अपने राइटर को भेजा एवरेस्ट बेस के अंदर. बताओ कहां सर दुखता है. कहां नोशिया होता है. क्या प्लंबिंग सिस्टम है. मेरे राइटर एवेरेस्ट बेस कैम्प तक गए. पूरा वीडियो लेकर आए. मुझे उससे आईडिया हुआ कि कहां-कहां ले जा सकते हैं. उसके बाद ट्रैक लीडर्स से डिस्कस हुआ. उसके बाद मैं टेक्निशियंस के साथ गया ताकि पूरे क्रू को ऊपर तक कैसे- कैसे लेकर जाएंगे. उसके बाद मैं 400 के क्रू को लेकर गया. डॉक्टर्स,ऑक्सीजन के साथ. धीरे-धीरे शूट करते हुए हम आगे बढ़ते गए. ओखला एयरपोर्ट वर्ल्ड का तीसरा सबसे खतरनाक एयरपोर्ट है. सिर्फ 1500 मीटर का रनवे है. मौसम ऐसा कि कभी भी बर्फबारी, बारिश और लैंडस्लाइड. रात को लगता वापस चलो, लेकिन सुबह देखकर लगता कि एवरेस्ट और नज़दीक आ गया. उसको देखकर आंखों में आंसू ही आ जाते थर. प्रकृति के अलग अलग रूपों से हम मिले. नेपाल में शूट हुआ है. दिल्ली में 46 डिग्री में भी हमने शूटिंग की है. वो भी कोविड के दौर में.

मुझे ये हमेशा से जानना था कि क्या आपको कभी गुस्सा आता है?

(हंसते हुए)जब आप शुरू करते हैं,तो शुरू के फेज में आपको ईगो रहता है,तो उसमें लोगों को डांटा भी है और ईगो लेकर बैठा भी हूं ,लेकिन फिर मैंने देखा कि इससे फायदा कुछ नहीं है , क्योंकि निर्देशक का काम है कि सेट के माहौल को एकदम फ्रेंडली और खुशनुमा बनाकर रखना है. एक्टर का काम सबसे मुश्किल होता है,क्योंकि उन्हें और किसी के विजन के अनुसार काम करना होता है. ऐसे में सेट पर गरमा गरमी और ईगो हो तो, फिर काम अच्छा नहीं हो पाएगा. मैं बहुत तैयारी करता हूं. सेट पर क्या खाना आनेवाला है. इसकी भी मैं जानकारी रखता हूं, ताकि गलती ना हो,इसके बावजूद भी कभी -कभी झुंझलाहट आ जाती है,तो कंट्रोल कर लेता हूं. इतने सालों में इतनी तो अक्कल आ गयी है.

क्या कभी अतीत में किसी एक्टर को डांट लगायी है?

अभिषेक और करीना को लगानी पड़ी थी. दोनों इतने मस्तीखोर थे. रिहर्सल के बजाय सिर्फ मस्ती और बात कर रहे हैं. मुझे भी गुस्सा आ गया. मैंने माइक- वाईक गुस्से में फेंक दिया. बोला सुबह 4 बजे इसलिए उठा कि रिहर्सल भी नहीं देख पाऊं. उसके बाद चुपचाप उन्होंने रिहर्सल की हालांकि (हंसते हुए) फिर उसके बाद उनकी मस्ती चालू हो गयी थी.

सलमान खान को कभी डांट पड़ी है?

ऐसा मुझे याद तो नहीं आता है. जब पहली बार हम मिले तो 21 का मैं था. साढ़े 20 के वो थे. जब इतना लंबा साथ हो तो आप एक -दूसरे के स्वभाव से पूरी तरह से वाकिफ होते हैं. जानता हूं कि जब वो गर्म तो मैं चुप, जब मैं तो वो चुप हो जाते हैं.

कहते हैं कि सलमान कभी आपको ना नहीं कह सकते हैं?

तभी तो मेरी जिम्मेदारी और ज़्यादा है. जब आप साथ में शुरू करते हैं तो वो रिश्ता एक स्कूल के दोस्त की तरह ही होता है. चाहे कुछ भी हो जाए ,वो टूटता नहीं है. कोई ज़्यादा सफल है. कोई कम. ये सब बात मायने ही नहीं रखती है. मेरे और उनके मूल्य एक ही हैं. वो बोलते हैं कि फैमिली ऑडियंस तुम्हारे साथ हैं,तो वही करते हैं. कुछ अलग करने की क्या ज़रूरत है.

आप जिस तरह की प्रेम कहानियां बनाते आए हैं,मौजूदा दौर में उससे विपरीत प्रेम कहानियां पर्दे पर आ रही हैं?

मैं मानता हूं कि हर किस्म की फिल्में बननी चाहिए. मैं हमेशा से ग्रेसफुल लव स्टोरीज बनाना चाहता हूं जिस दिन मैं सोचूंगा कि मैं आज के दर्शकों को ध्यान में रखकर लव स्टोरी बनाऊं, तो वो गलत होगा. हर तरह की लव स्टोरीज के दर्शक है. मुझे याद है जब मैं 2006 में विवाह बना रहा था. मुझसे पूछा गया था कि लिव इन के इस दौर में आप ये फ़िल्म क्यों बना रहे हैं. मैंने बोला कोई ना कोई भारत में अरेंज मैरिज करता ही होगा. सवाल करने वाले ने कहा कि हां कुछ लोग करते तो हैं. मैंने बोला वही मेरी फिल्म देखेंगे. सिर्फ शहरों से भारत नहीं है. वो भारत काफी अलग भी है. मुझे लगता है कि अपने देश से शर्म, हया, सहजता,अपनापन ये सब कभी नहीं जाएगी. वो भारतीय लड़के-लड़कियों में हमेशा रहेगी. मैं वही बनाऊंगा. जो देखना है वो देखें. मैं बताना चाहूंगा कि मेरी फिल्मों को देखने यंगस्टर्स जाते ही नहीं. एक बस मैंने प्यार किया में गया था. हम आपके हैं कौन में भी नहीं गया था. वो कैसे जाएंगे ? दादी को लेकर,मम्मी को लेकर जाएंगे. उसी बहाने बस वे मेरी फिल्में देखने आते हैं. अब इसमें भी कौन युवा आएगा. हां दादाजी को लेकर ज़रुर आएगा. ऊंचाई के ट्रेलर लॉन्च एक लड़का मेरे पास आया. बोला कि ये फ़िल्म मैं अपनी मां को लेकर जाऊंगा. वो साड़ी पहनेगी और चोटी बनाकर जाएगी.मेरी आंखें नम हो गयी. मेरी पिक्चर से यदि किसी इंसान को तैयार होकर बाहर जाने का मन कर दे, तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है.

आप ओटीटी के लिए क्या ओपन हैं और क्या इसी तरह का कंटेंट लाएंगे?

आज से पांच-छह साल पहले जब हम ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को अप्रोच कर रहे थे,तो उन्होंने कहा कि राजश्री की फिल्मों के लिए हम अभी तैयार नहीं हैं क्योंकि हमारे टारगेट ऑडियंस यूथ है,लेकिन पेंडेमिक के बाद एकदम परिवर्तन हमने पाया. अब वही लोग बोल रहे हैं कि हमें हेल्थी फैमिली एंटरटेनमेंट चाहिए क्योंकि अब यूथ ही नहीं हर वर्ग और उम्र का दर्शक ओटीटी से जुड़ गया है. ऊंचाई के बाद हमारे तीन प्रोजेक्ट्स ओटीटी में लांच होने के लिए तैयार हैं.

आपकी पिछली फिल्म प्रेम रतन धन पायो टिकट खिड़की पर राजश्री वाला करिश्मा नहीं दोहरा पायी थी,ऐसे समय में क्या लगता है कि मुझे अपनी फिल्म मेकिंग में बदलाव लाना चाहिए?

आप देखेंगी तो प्रेम रतन धन पायो टॉप 15 में थी,हां उसे हम आपके या मैंने प्यार किया वाली सफलता नहीं मिली थी,लेकिन ये होगा ही. कुछ चलेंगी, कुछ नहीं चलेगी. विचार- विमर्श इस पर होना ज़रूरी भी है. उससे सीखते हुए दूसरी में हम ध्यान रखेंगे. बस इतना ही कर सकते हैं. अपने फ़िल्म मेकिंग के ट्रैक को बदलने का मैंने कभी सोचा नहीं, क्योंकि मुझे लगता है कि जो आता है. वही बनाओ. दर्शक आपको बता देते हैं कि वो आपसे क्या चाहते हैं. मुझे अभी भी दर्शक मिलते हैं,तो बताते हैं कि उन्हें मुझसे किस तरह की फिल्में चाहिए.

हाल ही में राजश्री बैनर ने अपने 75 साल पूरे कर लिए हैं,इस बैनर की ऊंचाई से हर कोई वाकिफ है लेकिन सबसे मुश्किल फेज कौन सा था?

सबसे टफ टाइम था जब हम लोग मैंने प्यार किया शुरू कर रहे थे,उस वक़्त सबसे बुरे दौर से राजश्री गुज़र रहा था. हमारी आठ से नौ फिल्में नहीं चली थी क्योंकि वीडियो कैसेट का वो दौर था. उस दौर में नए डायरेक्टर के साथ नए एक्टर्स को लांच करना आसान नहीं था. मेरे पिता ने हिम्मत की. सवा तीन घंटे की फ़िल्म थी. वो उस वक़्त की सबसे महंगी फ़िल्म थी. सबलोग बोल रहे थे कि मुग़ल ए आज़म बना रहे हैं. वो ऐसा दौर था कि अगर फ़िल्म नहीं चलती तो हम सड़क पर आ जाते थे.

आपने एनचंद्रा, महेश भट्ट जैसे निर्देशकों को असिस्ट किया है, आपने उनकी फ़िल्म मेकिंग से क्या सीखा है, क्योंकि वे बिल्कुल अलग तरह के निर्देशक रहे हैं?

बहुत कुछ सीखा है. सबसे पहले फ़िल्म के प्रति सच्चाई को सीखी है. एक्टर से कैसे बातचीत करना है. कैमेरा का कैसे इस्तेमाल करना है. चंद्रा जी का हमेशा मैं ग्रेटफुल रहूंगा. मुझे एक घटना याद है. हमलोग फ़िल्म प्रतिकार शूट कर रहे थे. वे ऐसा पिक्चराइज कर रहे थे कि विलेन जो है. वो पुलिस अफसर को मार रहा है चाकू से ,बहुत वीभत्स तरीके से. उस वक़्त मेरे मुंह से निकल गया कि आप ऐसे शूट कर रहे हैं ,क्या सेंसर आपको इस सीन को रखने की परमिशन देगा. उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा कि 100 प्रतिशत क्योंकि मैंने ऐसा दृश्य अपनी आंखों के सामने होते देखा है. उन्होंने अपनी ज़िंदगी के शुरुआत साल चॉल में गुजारा था. मुझे उस समय लगा कि जिस निर्देशक ने इसे देखा है. वो कंविक्शन के साथ करेगा, तो कोई उस पर सवाल नहीं उठाएगा. चंद्रा जी का मैंने वही गुण लिया और अपने अंदर झांका कि मेरा कंविक्शन क्या है. मैंने कैसी ज़िन्दगी जी है और मैंने वही फॉलो किया. मैं हम आपके हैं कौन शूट कर रहा था. पास में भट्ट साहब भी अपनी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. मैं गया उनके पैर छुए, उन्होंने कहा कि क्या बना रहे हो. मैंने बोला शादी का सीक्वेंस शूट हो रहा है. जूते छुपाने वाला. उन्होंने कहा कि जब तक जूते छुपाते रहोगे तब तक सफल होते रहोगे. कहने का मतलब है कि घोड़े ,पक्षी सभी अलग हैं,लेकिन सभी का अपना रोल प्रकृति में होता है.

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