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Chandra Grahan: ग्रहण के दौरान बंद होते हैं मंदिर के कपाट, लेकिन इन मंदिरों में होती है पूजा, जानें वजह

Chandra Grahan 2022: चंद्र ग्रहण हो या सूर्य ग्रहण ऐसे समय में धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ नहीं की जाती है. इसके साथ ही मठ-मन्दिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, तो कई ऐसे मदिंर भी है जिनके कपाट खुले भी रहते हैं. आइए इन दोनों बातों के पीछे की वजह को जानें

Chandra Grahan 2022: चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण एक भौगोलिक घटना है, लेकिन ज्योतिष शास्त्र में भी इसका बेहद खास महत्व है. ज्योतिष के अनुसार आज साल 2022 का दूसरा और अंतिम चंद्र ग्रहण भारतीय समय के अनुसार मंगलवार को करीब दोपहर 2:39 से शुरू होगा और सायं 6:19 बजे तक ग्रहण का असर रहेगा. चंद्र ग्रहण से कुछ समय पहले सूतक काल शुरू प्रारंभ हो जाता है, जिसमें सभी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ नहीं की जाती है. इसके साथ ही मठ-मन्दिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, तो कई ऐसे मदिंर भी है जिनके कपाट खुले भी रहते हैं.

मंदिर के कपाट क्यों बंद किए जाते हैं

शास्त्रों में चंद्र ग्रहण से जुड़े कई नियमों का उल्लेख किया गया है. मान्यता है कि पूजा-पाठ, भगवान की मूर्तियों का स्पर्श, ग्रहण के दौरान सोना वर्जित माना जाता है. ऐसे में इस दौरान मंदिर के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं, वहीं घर में मौजूद पूजा स्थल को भी वस्त्र से या परदे लगा दिए जाते हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है कि किसी भी ग्रहण के दौरान असुरीय शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है और दैवीय शक्तियां कम होने लगती है. इसलिए ग्रहण काल में मौन अवस्था में मंत्रों का उच्चारण करना उचित होता है और भगवान को ध्यान करना चाहिए.

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ग्रहण के दौरान नहीं करने चाहिए ये कार्य

चंद्र ग्रहण हो या सूर्य ग्रहण, माना जाता है कि ग्रहण के दौरान खान-पान के लिए मनाही होती है, क्योंकि इस दौरान वातावरण में हानिकारक किरणों का रिसाव होता है. जिसकी वजह से खाना भी अशुद्ध हो जाते हैं. यही कारण है कि लोग ग्रहण से पहले खाने में तुलसी या कुश डालते हैं. इसके साथ ग्रहण के पूर्ण रूप से खत्म होने के बाद ही मन्दिर के कपाट खोले जाते हैं और मूर्तियों का शुद्धिकरण किया जाता है, जिसके बाद पूजा पाठ पहले की तरह शुरू हो जाते हैं.

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किन मदिंरों के कपाट ग्रहण में भी नहीं होते बंद


विष्मुपद मंदिर

बिहार के गया का विष्णुपद मंदिर पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता. माना जाता है कि ग्रहण के दिन मंदिर की मान्यता काफी बढ़ जाती है, क्योंकि ग्रहण के दौरान यहां पिंडदान जैसे कार्य किए जाते हैं. जो करना शुभ माना जाता है.

महाकाल मंदिर

उज्जैन में स्थित महाकाल मंदिर भी ग्रहण के दौरान खुला रहता है. इस मंदिर में ग्रहण काल में मंदिर के दर्शन करने से भक्तों को किसी तरह की मनाही नहीं है. ऐसे में मंदिर के पट बंद नहीं किए जाते हैं. हालांकि पूजा-पाठ और आरती के समय में थोड़ा अंतर जरूर होता है. ग्रहण लगते ही आरती का समय बदल दिया जाता है.

लक्ष्मीनाथ मंदिर

प्राचीन लक्ष्मीनाथ मंदिर का पट भी सूतक काल में खुला ही रहता है. दरअसल इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा है….एक बार सूतक लगने पर पुजारी ने लक्ष्मीनाथ मंदिर के पट बंद कर दिए. उस दिन भगवान की पूजा नहीं की गई थी, न हीं उन्हें भोग लगाया गया थी. उसी रात एक बालक मंदिर के सामने हलवाई की दुकान पर जाकर कहा भूख लगी है और एक पाजेब देकर प्रसाद मांगा. वहीं अगले दिन मंदिर से पाजेब गायब होने की खबर फैल गई. तब हलवाई ने पिछले रात की पूरी बात पुजारी को बताई. तब ये ये माना जा रहा कि जिस बालक को भूख लगी थी वो स्वंय लक्ष्मीनाथ महाराज थे. इस घटना के बाद से ही ग्रहण के सूतक में इस मंदिर के पट बंद नहीं किए जाते हैं. बल्कि यहां आरती होती है और भगवान को भोग भी लगाया जाता है. केवल ग्रहण काल में मंदिर के पट बंद कर दिया जाता है.

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