बोकारो के गोमिया प्रखण्ड अंतर्गत लुगू पहाड़ के तलहटी कैयरा झरना आज भी गुमनामी के अंधेरे में है. कैयरा झरना की खूबसूरती देखते ही बनती है. पहाड़ से गिरता पानी पर्यटकों का मन मोह लेती है. लेकिन इसके विकास के लिए आज न जिला प्रशासन कदम उठा रही है और न ही स्थानीय प्रशासन. नक्सल प्रभावित इलाका होने की वजह से वहां पुलिस भी जाने से कतराती है. अगर इसके विकास पर ध्यान दिया जाये तो यहां भी देश विदेश से सैलानियों की भीड़ उमड़ेगी जिससे सरकार के राजस्व में वृर्द्धि होगी.
कैयरा झरना नाम पड़ने की बड़ी वजह है पहाड़ के इर्द गिर्द केले के बगान का होना है. जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. इस झरने की एक और खासियत ये है कि ये कभी सूखता नहीं. ऐसा कहा जाता है कि इस केले के बगान को किसी ने नहीं लगाया है बल्कि अपने आप उपजा है जो आम केले से भिन्न है. वहां पर रह रहे संताली ग्रामीणों का कहना है कि उस केले के फल को कोई और बाहर लेकर नहीं जा सकता.
लुगू पहाड़ में बंदर और अन्य जंगली जानवर खूब दिखाई पड़ता है. इस जंगल में हर साल हरियाली रहने का सबसे बड़ा कारण ये भी है कि वहां पानी निरंतर बहता रहता है. हमेशा नमी बने रहने के कारण वहां केला काफी मात्रा में मिलता है. वहीं पंछियों की चहचाहट और कोयले की मधुर आवाज वातावरण को और खूबसूरत बना देता है.
अगर आप कभी इस स्थान पर जाना चाहते है तो आपको गोमिया-ललपनिया मुख्यपथ से बिरहोर डेरा जाने के रास्ते में आगे बढ़ना होगा. ये झरना ललपनिया पथ से महज सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बोकारो नदी से पानी बडे़ बडे पत्थरों से टकरा कर नीचे गिरता है, जो पर्यटकों को और भी रोमांचित करता है.
कैयरा झरना पथ के किनारे लुगू बाबा का मान्य स्थल है, जहां पर संताली पूजा करते हैं. ऐसा नहीं है कि वहां केवल उसी समुदाय के लोगों की भीड़ उमड़ती है. गैर संतालियों की आस्था भी उस जगह से बनीं हुई है. ऐसी मान्यता है कि वहां पर मांगी गयी हर मनोकामना पूरी होती है. मन्नत पूरी होने के बाद लोग वहां पर बकरे की बलि चढ़ाते हैं. ग्रामीणों के आराम के लिए वहां पर शेड व चबूतरे का निर्माण किया गया है. आपको बता दें कि यहां हर साल कार्तिक पूर्णिमा में मेला भी लगता है.
रिपोर्ट- नागेश्वर कुमार