बचपन में वर्णमाला याद कराने के लिए रटायी एक कविता की पंक्ति बुढ़ापे में अक्सर याद आती है, ‘छप्पर पर बैठे लाचार चने चबाते हैं हम यार.’ मजेदार बात यह है कि चने का आनंद लेने के लिए किसी लाचारी की दरकार नहीं. शायद ही कोई ऐसा खाद्य पदार्थ हो, जो चने का मुकाबला कर सकता हो.
एक बार एक मित्र के यहां हरे चने की सब्जी मेज पर सजी थी. मुलायम मीठे चने छौंकी मटर को मात दे रहे थे. इस मौसमी ‘हरी सब्जी’ को इंदौर की मशहूर खाऊ गली सर्राफा बाजार में हमने अंगारों की मद्धिम आंच में भुंजा भी खाया है. चाहें तो इसे हल्के तरी वाले निमोनानुमा अवतार में (मसालेदार बड़ी के साथ) भी पेश किया जा सकता है. इसका मीठा हलवा कम देखने को मिलता है. बिल्कुल दूसरे छोर पर हैं सूखे सफेद काबुली चने. अपने देश में पंजाब से आये शरणार्थियों ने मसाले में लिपटे ‘पिंडी’ चने को लोकप्रिय बनाया है. अहंकार से फूल कर कुप्पा हुए गरम भटूरों का साथ ये बखूबी निभाते हैं. हैदराबाद तथा अवध में शाकाहारी सूफियाना मिजाज वाला पुलाव काबूली इन्हीं से तैयार किया जाता है. टमाटर, आलू आदि मिला कर इसे राजमा की तरह चावल के साथ दाल के विकल्प में भी चाव से खाया जाता है.
भूमध्य सागरीय देशों में काबुली चनों को उबालने के बाद सफेद तिल, लहसुन और नींबू तथा जैतून के तेल को पीस कर चटनी सरीखे ‘ताहिनी’ सौस के साथ मिला कर ‘हुम्मस’ बनायी जाती है, जिसकी जुगलबंदी ‘पीटा’ नाम की रोटी के साथ साधी जाती है. ‘डिप’ के रूप में इसका इस्तेमाल हाल में बढ़ा है. यूरोप के कई देशों में चिकपी सलाद की बुनियाद काबुली चनों पर ही होती है.
आकार में छोटे और पक्के रंग वाले काले चनों को नजरंदाज न करें. चनाजोर गरम के अलावा देहात में गुड़ के साथ खाया जाने वाला चबैना यही हैं. कच्चे चनों को अंकुरित कर पौष्टिक नाश्ता आसानी से तैयार किया जाता रहा है. सत्तू के रूप में भी चना पैर पसारता है. उत्तराखंड में काले चनों की रसदार ‘चडंजी’ या ‘चैस’ पकाने का चलन है. ‘छोलार दाल’ की बड़ी प्रतिष्ठा बंगाल में है. वहां भले छेने की मिठाई को चाहने वाले बेशुमार हैं, अन्य प्रदेशों में चने से बने बेसन की मिठाइयां ललचाती हैं. बर्फी, लड्डू ही नहीं, मोहन थाल, पतीशे, सोनपापड़ी, मैसूर पाक जैसी टिकाऊ मिठाइयां चने की ही संतानें हैं.
राजस्थान में बेसन के गट्टों तथा बेसन की सब्जी की किस्में सालभर तैयार की जाती रही हैं. कढ़ी, पकौड़े, मिर्ची बड़े सब याद दिलाते हैं कि अदृश्य चना भी कितना असरदार होता है. बीकानेरी भुजिया का संसार विविधता से भरपूर है, पर बेसन से झारी सेवों की नमकीन को न भूलें. आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में चने को तीखी लाल मिर्च के साथ आम के एक अचार में खुले हाथ से डाला जाता है, तो केरल में काले चने की ‘कड़ला करी’ बनायी जाती है. चना मजेदार भी है और सेहत के लिए फायदेमंद भी.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.